प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से वन विभाग विभाग में वन रक्षकों की भर्ती 2018 के रिक्त पदों का ब्योरा तलब किया है। भर्ती में बचे हुए पदों को मेरिट में नीचे रह गए अभ्यर्थियों से भरे जाने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की गई है। विश्वजीत सिंह चौहान और अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने सुनवाई करते हुए आयोग को रिक्त पदों का ब्योरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
ये है मामला
याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहना था कि 2018 में 620 पदों पर वन रक्षकों की नियुक्ति का विज्ञापन जारी किया गया था। याची लिखित परीक्षा, साक्षात्कार और शारीरिक दक्षता परीक्षा आदि सभी चरणों में सफल रहे। लेकिन, अंतिम चयन सूची में उनका नाम नहीं आया। आरटीआई से जानकारी करने पता चला कि सामान्य वर्ग की कट ऑफ मेरिट 132 अंक थी। याची ठीक इसके नीचे हैं। आरटीआई से ही यह भी चला कि कई सफल अभ्यर्थियों के ज्वॉइन न करने के कारण 25 पद अभी भी रिक्त हैं। कहा गया कि याचीयों का नाम कट ऑफ मेरिट से ठीक नीचे है। वह सभी चरणों की परीक्षा में सफल भी रहे हैं। इसलिए रिक्त पदों पर उनको नियुक्ति दी जाए। कोर्ट ने चयन आयोग को रिक्त पदों का ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई 18 दिसंबर को होगी।
निदेशक के आदेश को हाईकोर्ट मेंं चुनौती दी
प्रयागराज। बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में कार्यरत संविदा और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों ने विनियमितीकरण को लेकर जारी निदेशक के आदेश को हाईकोर्ट मेंं चुनौती दी है। याचियों ने विनियमितिकरण करने में भेदभाव का आरोप लगाते हुए समूह ग एवं घ पर कार्यरत संविदा कर्मचारियों को विनियमित करने की मांग की है। राजेंद्र प्रसाद और 70 अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने इस मामले में राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। याचिका पर फरवरी 2021 में सुनवाई होगी।
विनियमितिकरण की मांग की मांग की गई थी
याचीयों के अधिवक्ता अनिल सिंह बिसेन का कहना था कि सरकारी विभागों में समूह ग और घ के पदों पर संविदा पर कार्यरत हैं। उन्होंने विनियमितिकरण की मांग की थी. इसे निदेशक बाल विकास एवं पुष्टाहार ने 26 जुलाई 2019 के आदेश से यह कहते हुए रद़्द कर दिया कि याचीगण लोक सेवा क्षेत्र से बाहर सरकारी विभागों में दैनिक मजदूर और संविदाकर्मी के तौर पर कार्य कर रहे हैं। विनियमितीकरण नियमावली के तहत उनका विनियमितिकरण नहीं किया जा सकता है। जबकि निदेशक ने स्वयं एक संविदाकर्मी राजेश कुमार तिवारी को विनियमित किया है जो याचीगण के ही पद पर कार्यरत है। कोर्ट ने इस मामले में प्रदेश सरकार को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।