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High Court News: सरकारी वकील के मुकदमों में स्थगन मांगने से हाईकोर्ट नाराज - सरकारी वकील के मुकदमों में स्थगन मांगने

हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड उपलब्ध न होने के नाम पर सरकारी वकीलों द्वारा मुकदमे में स्थगन आदेश मांगने की रवायत पर नाराजगी जाहिर की है.

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Published : Feb 2, 2023, 9:19 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड उपलब्ध न होने के नाम पर सरकारी वकीलों द्वारा मुकदमे में स्थगन आदेश मांगने की रवायत पर गहरी नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा कि आजकल फैशन हो गया है कि रिकॉर्ड न होने के नाम पर या निर्देश और जवाबी हलफनामा दाखिल करने के नाम पर मुकदमों में स्थगन की मांग सरकारी वकील की ओर से की जाती है. ऐसा करने से अदालत का बहुमूल्य समय तो बर्बाद होता ही है वादकरियो के लिए भी दिक्कत होती है.

सदीम और दो अन्य की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने कहा कि इस अदालत में कुल 115 केस लिस्ट में थे, जिनमें से 62 मुकदमों में अंतिम आदेश पारित किया गया और 35 मुकदमों में अंतरिम आदेश दिए गए. जबकि 20 मुकदमे ऐसे हैं, जिनमें अपर शासकीय अधिवक्ता ने रिकॉर्ड उपलब्ध न होने की बात कह कर स्थगन की मांग की. जबकि इन मुकदमों की लिस्ट 2 दिन पूर्व जारी हो गई थी. राज्य की ओर से इस प्रकार की लापरवाही स्वीकार्य नहीं है बल्कि वह कोर्ट को विवश करती है कि इस प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए कदम उठाएं.

कोर्ट ने कहा कि ऐसे मौकों पर जब राज्य प्राधिकारियों की वजह से रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होता है. सरकारी वकील सबसे ज्यादा असुरक्षित हो जाता है. कोर्ट ने कहा कि भविष्य के लिए ऐसा ना हो इसका निर्देश या हलफनामा प्रस्तुत किया जाए कि मुकदमे राज्य के अधिकारियों की गलती से स्थगित नहीं किए जाएंगे. यदि ऐसा होता है तो अदालत भारी हर्ज़ाना लगायेगी. कोर्ट ने इस आदेश की कॉपी महाधिवक्ता और प्रमुख सचिव न्याय को भेजने का निर्देश दिया है.

यह भी पढ़ें- Video Viral : बिना कपड़ों के महिला रात में लोगों के घर की बजाती है घंटी, जानिए क्यों

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड उपलब्ध न होने के नाम पर सरकारी वकीलों द्वारा मुकदमे में स्थगन आदेश मांगने की रवायत पर गहरी नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा कि आजकल फैशन हो गया है कि रिकॉर्ड न होने के नाम पर या निर्देश और जवाबी हलफनामा दाखिल करने के नाम पर मुकदमों में स्थगन की मांग सरकारी वकील की ओर से की जाती है. ऐसा करने से अदालत का बहुमूल्य समय तो बर्बाद होता ही है वादकरियो के लिए भी दिक्कत होती है.

सदीम और दो अन्य की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने कहा कि इस अदालत में कुल 115 केस लिस्ट में थे, जिनमें से 62 मुकदमों में अंतिम आदेश पारित किया गया और 35 मुकदमों में अंतरिम आदेश दिए गए. जबकि 20 मुकदमे ऐसे हैं, जिनमें अपर शासकीय अधिवक्ता ने रिकॉर्ड उपलब्ध न होने की बात कह कर स्थगन की मांग की. जबकि इन मुकदमों की लिस्ट 2 दिन पूर्व जारी हो गई थी. राज्य की ओर से इस प्रकार की लापरवाही स्वीकार्य नहीं है बल्कि वह कोर्ट को विवश करती है कि इस प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए कदम उठाएं.

कोर्ट ने कहा कि ऐसे मौकों पर जब राज्य प्राधिकारियों की वजह से रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होता है. सरकारी वकील सबसे ज्यादा असुरक्षित हो जाता है. कोर्ट ने कहा कि भविष्य के लिए ऐसा ना हो इसका निर्देश या हलफनामा प्रस्तुत किया जाए कि मुकदमे राज्य के अधिकारियों की गलती से स्थगित नहीं किए जाएंगे. यदि ऐसा होता है तो अदालत भारी हर्ज़ाना लगायेगी. कोर्ट ने इस आदेश की कॉपी महाधिवक्ता और प्रमुख सचिव न्याय को भेजने का निर्देश दिया है.

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