प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण कानून के तहत केस कायम करने के आदेश एवं कार्यवाही की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है.
कहा कि याची केस की ग्राह्यता सहित सभी मुद्दे अधीनस्थ अदालत में उठा सकता है. याचिका खारिज होने से याची का पक्ष रखने का अधिकार प्रभावित नहीं होगा.
याची ने कहा था कि वह विपक्षी महिला के साथ एक घर में निवास नहीं कर रहा है. इसलिए घरेलू हिंसा कानून उसके खिलाफ लागू नहीं होगा. इसलिए केस की कार्यवाही रद्द की जाय. यह आदेश न्यायमूर्ति डाॅ. वाई के श्रीवास्तव ने निवेश गुप्ता उर्फ अंकुर गुप्ता व दो अन्य की याचिका पर दिया है.
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7 नवंबर 20 को शांभवी केसरवानी ने निवेश गुप्ता के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत इस्तगासा (प्रार्थना-पत्र ) दायर किया. इसे पंजीकृत कर कोर्ट सुनवाई की तारीख तय की गयी. इसी बीच केस कायम करने की वैधता को चुनौती दी गई.
कोर्ट ने कहा कि कानून के तहत शारीरिक, मौखिक, भावनात्मक व आर्थिक रूप से जैसे दहेज उत्पीड़न से संरक्षण की व्यवस्था की गई है. मजिस्ट्रेट को संरक्षण के आदेश देने का अधिकार है. विशेष स्थिति में एक पक्षीय आदेश भी दे सकता है. उसका दायित्व है कि महिला को संविधान के अनुच्छेद 14,15 व 21के तहत मिले मूल अधिकारों की रक्षा करे.
सरकारी वकील ने कहा कि याचिका समय पूर्व दाखिल की गयी है. अभी केस ही पंजीकृत हुआ है. यह माना कि परिवार के बीच सुरक्षा कानून हैं. कोर्ट ने कहा कि वियेना समझौता 94, बीजिंग घोषणा 95 में घरेलू हिंसा को मानवाधिकार के खिलाफ माना गया. संयुक्त राष्ट्र संघ ने संरक्षण देने की सलाह दी है. परिवार में अकेली रह रही महिला को संरक्षण देने का कानून है. वह साथ रह रही हो या साथ रह चुकी हो, दोनों स्थितियों में कानून महिला को संरक्षण प्रदान करता है.