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जानिए कैसे एक किसान बना करोड़ों का मालिक... - मत्स्य पालन का खर्च

यूपी के प्रयागराज जिले के कौड़िहार विकासखंड में नागेंद्र सिंह गांव के किसानों के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं. इन्होंने मत्स्य पालन कर न सिर्फ अपनी तकदीर बदली, बल्कि गांव के किसानों को कृषि विविधीकरण के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

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मछली पालन.
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Published : Oct 31, 2020, 4:37 PM IST

प्रयागराजः समय के साथ कृषि विविधीकरण पर अब किसान केंद्रित हो रहे हैं. अनाज उत्पादन के साथ-साथ मछली पालन के व्यवसाय से किसान जुड़ रहे हैं. ऐसे ही जिले के कौड़िहार विकासखंड क्षेत्र सेरांवा गांव के किसान नागेंद्र सिंह हैं, जिन्होंने साल भर पहले मछली पालन का व्यवसाय शुरू किया और आज वह करोड़ों के मालिक हैं. बगैर किसी सरकारी मदद के लगभग नौ बीघे से अधिक जमीन पर बनाए हुए तालाब में मछली पालन कर रहे हैं.

मत्स्य पालन.

मछली पालन से होने वाली आय से वह आसपास के किसानों के लिए नजीर बन चुके हैं. मत्स्य पालन से मिलने वाले लाभ को देखते हुए अब नागेंद्र सिंह के अलावा आस-पास के अन्य किसानों ने भी इसे अपनाना शुरू किया है. विभिन्न बीमारियों में चिकित्सक के द्वारा मछली खाने की सलाह के चलते बाजार में उन्नत किस्म की मछलियों की भारी मांग है.

लोग उड़ाते थे मजाक

नागेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने यह कार्य वर्ष 2018 में फरवरी माह शुरू किया. जानकारी के अभाव में शुरू में थोड़ी कठिनाई हुई थी. जिसके चलते उत्पादन में फर्क पड़ा, लेकिन अब अच्छा मुनाफा हो रहा है. नागेंद्र बताते हैं कि अपने रिश्तेदार कमलेश के साथ बाराबंकी देवा शरीक गए थे. जहां पर उन्हें इस व्यवसाय के बारे में जानकारी मिली. वापस आने के बाद उन्होंने इस कार्य को शुरू किया.

नागेंद्र सिंह ने बताया कि इनको मछली पालन के दौरान कौड़िहार विकासखण्ड में कार्यरत पशु चिकित्सक डॉ. विनय कुमार द्विवेदी से काफी मदद मिली. बतौर नागेंद्र सिंह कौड़िहार विकास खण्ड पूर्णतया सब्जियों की खेती के लिए जानी जाती है. ऐसे में शुरू में जब मछली पालन का कार्य शुरू किया तो आस-पास के किसान इनके कार्य पर हंसते थे. आज वही किसान मछली पालन के लिए जमीन तलाश रहे हैं. इसमें मिल रहे मुनाफे को देख इनका कहना है कि मछली पालन से बड़ा व्यवसाय कोई व्यवसाय नहीं है. हमें इसमें सालाना एक से सवा करोड़ रुपये की बचत हो रही है.

तालाब के पानी से आस-पास के किसान कर रहे जैविक खेती

कहावत है आम के आम गुठलियों के दाम. यह कहावत यहां के किसानों पर बिल्कुल सटीक बैठती है. इसमें खास बात यह है कि मछली पालन के दौरान समय-समय पर तालाब के पानी को बदला जाता है. तालाब से निकलने वाला पानी जैविक होता है जो फसल की सिंचाई में बहुत लाभदायक है. तालाब से निकलने वाले पानी को आस-पास के खेतों में किसानों को मुफ्त में दिया जाता है.

जिससे किसानों को बगैर खाद युक्त पानी मिलता है. इससे उनकी फसल का उत्पादन बढ़ रहा है. बता दें कि खेती किसानी में बढ़ रही, कृषि विविधीकरण की मांग ने किसानों को नए अवसर प्रदान किए हैं. जिससे किसान अनाज उत्पादन के अलावा मत्स्य पालन और पशुपालन की ओर भी रुख करना शुरू किया है.

प्रयागराजः समय के साथ कृषि विविधीकरण पर अब किसान केंद्रित हो रहे हैं. अनाज उत्पादन के साथ-साथ मछली पालन के व्यवसाय से किसान जुड़ रहे हैं. ऐसे ही जिले के कौड़िहार विकासखंड क्षेत्र सेरांवा गांव के किसान नागेंद्र सिंह हैं, जिन्होंने साल भर पहले मछली पालन का व्यवसाय शुरू किया और आज वह करोड़ों के मालिक हैं. बगैर किसी सरकारी मदद के लगभग नौ बीघे से अधिक जमीन पर बनाए हुए तालाब में मछली पालन कर रहे हैं.

मत्स्य पालन.

मछली पालन से होने वाली आय से वह आसपास के किसानों के लिए नजीर बन चुके हैं. मत्स्य पालन से मिलने वाले लाभ को देखते हुए अब नागेंद्र सिंह के अलावा आस-पास के अन्य किसानों ने भी इसे अपनाना शुरू किया है. विभिन्न बीमारियों में चिकित्सक के द्वारा मछली खाने की सलाह के चलते बाजार में उन्नत किस्म की मछलियों की भारी मांग है.

लोग उड़ाते थे मजाक

नागेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने यह कार्य वर्ष 2018 में फरवरी माह शुरू किया. जानकारी के अभाव में शुरू में थोड़ी कठिनाई हुई थी. जिसके चलते उत्पादन में फर्क पड़ा, लेकिन अब अच्छा मुनाफा हो रहा है. नागेंद्र बताते हैं कि अपने रिश्तेदार कमलेश के साथ बाराबंकी देवा शरीक गए थे. जहां पर उन्हें इस व्यवसाय के बारे में जानकारी मिली. वापस आने के बाद उन्होंने इस कार्य को शुरू किया.

नागेंद्र सिंह ने बताया कि इनको मछली पालन के दौरान कौड़िहार विकासखण्ड में कार्यरत पशु चिकित्सक डॉ. विनय कुमार द्विवेदी से काफी मदद मिली. बतौर नागेंद्र सिंह कौड़िहार विकास खण्ड पूर्णतया सब्जियों की खेती के लिए जानी जाती है. ऐसे में शुरू में जब मछली पालन का कार्य शुरू किया तो आस-पास के किसान इनके कार्य पर हंसते थे. आज वही किसान मछली पालन के लिए जमीन तलाश रहे हैं. इसमें मिल रहे मुनाफे को देख इनका कहना है कि मछली पालन से बड़ा व्यवसाय कोई व्यवसाय नहीं है. हमें इसमें सालाना एक से सवा करोड़ रुपये की बचत हो रही है.

तालाब के पानी से आस-पास के किसान कर रहे जैविक खेती

कहावत है आम के आम गुठलियों के दाम. यह कहावत यहां के किसानों पर बिल्कुल सटीक बैठती है. इसमें खास बात यह है कि मछली पालन के दौरान समय-समय पर तालाब के पानी को बदला जाता है. तालाब से निकलने वाला पानी जैविक होता है जो फसल की सिंचाई में बहुत लाभदायक है. तालाब से निकलने वाले पानी को आस-पास के खेतों में किसानों को मुफ्त में दिया जाता है.

जिससे किसानों को बगैर खाद युक्त पानी मिलता है. इससे उनकी फसल का उत्पादन बढ़ रहा है. बता दें कि खेती किसानी में बढ़ रही, कृषि विविधीकरण की मांग ने किसानों को नए अवसर प्रदान किए हैं. जिससे किसान अनाज उत्पादन के अलावा मत्स्य पालन और पशुपालन की ओर भी रुख करना शुरू किया है.

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