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पितृ अमावस्या पर पितरों की विदाई, प्रयागराज में पिंडदान को उमड़े लोग

पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानी पितृ अमावस्या पर लोगों ने पितरों को विदाई दी. इस मौके पर संगम नगरी प्रयागराज में पिंडदान के लिए लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा. विधि विधान पूर्वक पिंडदान कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की गई.

प्रयागराज में पिंडदान को उमड़े आस्थावान.
प्रयागराज में पिंडदान को उमड़े आस्थावान.
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Published : Oct 6, 2021, 8:10 PM IST

प्रयागराजः 15 दिनों तक चले पितृ पक्ष के अंतिम दिन (पितृ अमावस्या) पितरों को विदा किया गया. सर्वपितृ श्राद्ध और पितृ विसर्जन की तिथि होने के कारण प्रयागराज के संगम तट पर दिनभर पिंडदान और दान-पुण्य होता रहा. मान्यता है कि पितृ अमावस्या के दिन पितृ अपने लोक लौट जाते हैं. ऐसे में उन्हें विदा कर वशंज परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.


बुधवार को प्रयागराज में दूर-दूर से आए लोगों ने सिर मुड़वा कर गंगा में स्नान किया और विधिपूर्वक पूर्वजों का पिंडदान किया. संगम के किनारे पिंडदान करने का विशेष महत्व होता है, इसीलिए दूरदराज से यहां यात्री पिंडदान के लिए आए.

प्रयागराज में पिंडदान को उमड़े आस्थावान.
तीर्थपुरोहित मनोज पंडा ने बताया कि पितृ पक्ष का आखिरी दिन पितृ अमावस्या है. बुधवार को पितृ अमावस्या के मौके पर पितृ पक्ष का समापन हो गया. इस दिन लोग अपने पूर्वजों के आत्मा की शान्ति के लिए पितृ विसर्जन करते हैं. संगम किनारे यह विधि करने से उनको पुनः शांति मिलती है. इसके साथ पूर्वजों के आशीर्वाद से परिवार में भी खुशहाली आती है. संगम घाट को त्रिवेणी कहा जाता है इसीलिए यहां पिंडदान का विशेष महत्व है.
प्रयागराज में पितृ पक्ष के अंतिम दिन पिंडदान करने उमड़े लोग.
प्रयागराज में पितृ पक्ष के अंतिम दिन पिंडदान करने उमड़े लोग.

यह भी पढ़ेंः सीतापुर से राहुल गांधी, प्रियंका के साथ लखीमपुर खीरी के लिए रवाना

उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि भूल जाता है. वह विशेष रूप से पितृ अमावस्या के दिन संगम में आकर दिवंगत माता-पिता और पूर्वजों का पिंडदान करता है. ऐसा करने से उनकी आत्मा को शान्ति मिलती है. उन्होंने यह भी बताया कि जो व्यक्ति गया श्राद्ध नहीं कर सकते हैं वे पितृ अमावस्या के दिन संगम किनारे आकर पिंडदान करते हैं. मान्यता है कि संगम किनारे पिंडदान विसर्जन करने से पूर्वज खुश होते हैं, जब घर के पितृ खुश रहते हैं तो परिवार कष्टों से दूर रहता है. इस कारण दूर-दूर से लोग संगम आकर पितृ विसर्जन करते हैं. उधर, आस्थावानों का कहना था कि पितरों को तृप्त करने के लिए ही वह प्रयागराज के संगम तट पर पिंडदान के लिए आए हैं. विधि-विधान से पूजन के बाद पितरों से परिवार की सुख-समृद्धि के लिए कामना की है.

प्रयागराजः 15 दिनों तक चले पितृ पक्ष के अंतिम दिन (पितृ अमावस्या) पितरों को विदा किया गया. सर्वपितृ श्राद्ध और पितृ विसर्जन की तिथि होने के कारण प्रयागराज के संगम तट पर दिनभर पिंडदान और दान-पुण्य होता रहा. मान्यता है कि पितृ अमावस्या के दिन पितृ अपने लोक लौट जाते हैं. ऐसे में उन्हें विदा कर वशंज परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.


बुधवार को प्रयागराज में दूर-दूर से आए लोगों ने सिर मुड़वा कर गंगा में स्नान किया और विधिपूर्वक पूर्वजों का पिंडदान किया. संगम के किनारे पिंडदान करने का विशेष महत्व होता है, इसीलिए दूरदराज से यहां यात्री पिंडदान के लिए आए.

प्रयागराज में पिंडदान को उमड़े आस्थावान.
तीर्थपुरोहित मनोज पंडा ने बताया कि पितृ पक्ष का आखिरी दिन पितृ अमावस्या है. बुधवार को पितृ अमावस्या के मौके पर पितृ पक्ष का समापन हो गया. इस दिन लोग अपने पूर्वजों के आत्मा की शान्ति के लिए पितृ विसर्जन करते हैं. संगम किनारे यह विधि करने से उनको पुनः शांति मिलती है. इसके साथ पूर्वजों के आशीर्वाद से परिवार में भी खुशहाली आती है. संगम घाट को त्रिवेणी कहा जाता है इसीलिए यहां पिंडदान का विशेष महत्व है.
प्रयागराज में पितृ पक्ष के अंतिम दिन पिंडदान करने उमड़े लोग.
प्रयागराज में पितृ पक्ष के अंतिम दिन पिंडदान करने उमड़े लोग.

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उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि भूल जाता है. वह विशेष रूप से पितृ अमावस्या के दिन संगम में आकर दिवंगत माता-पिता और पूर्वजों का पिंडदान करता है. ऐसा करने से उनकी आत्मा को शान्ति मिलती है. उन्होंने यह भी बताया कि जो व्यक्ति गया श्राद्ध नहीं कर सकते हैं वे पितृ अमावस्या के दिन संगम किनारे आकर पिंडदान करते हैं. मान्यता है कि संगम किनारे पिंडदान विसर्जन करने से पूर्वज खुश होते हैं, जब घर के पितृ खुश रहते हैं तो परिवार कष्टों से दूर रहता है. इस कारण दूर-दूर से लोग संगम आकर पितृ विसर्जन करते हैं. उधर, आस्थावानों का कहना था कि पितरों को तृप्त करने के लिए ही वह प्रयागराज के संगम तट पर पिंडदान के लिए आए हैं. विधि-विधान से पूजन के बाद पितरों से परिवार की सुख-समृद्धि के लिए कामना की है.

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