प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण में तैनात रहे अलीगढ़ की खैर के तहसीलदार के खिलाफ 85.49 करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप में अभियोग चलाने की अनुमति आदेश की वैधता की चुनौती याचिका खारिज कर दी है. याची का कहना था कि कोर्ट ने पुलिस चार्जशीट पर संज्ञान लेने के बाद अभियोग चलाने की अनुमति देने में विवेकाधिकार का प्रयोग नहीं किया गया. साथ ही बिना विभागीय जांच पूरी किए एफआईआर दर्ज किया जाना उचित नहीं है. कोर्ट ने दोनों तर्कों को निराधार और कानूनी उपबंधों के विपरीत मानते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. यह आदेश न्यायमूर्ति एम एन भंडारी तथा न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने रणवीर सिंह की याचिका पर दिया है.
कोर्ट ने कहा कि शासनादेश कानूनी उपबंध को आक्षादित नहीं कर सकता. दंड प्रक्रिया संहिता और भ्रष्टाचार निरोधक कानून में कहीं नहीं है कि पहले विभागीय जांच करने के बाद एफआईआर दर्ज हो. अपराध हुआ है तो कार्रवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि विभागीय जांच और आपराधिक कार्रवाई दोनों साथ-साथ चल सकती है. यह कहना कि विभागीय जांच में दोषी पाये बगैर आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती, विधिसम्मत नहीं है.
मालूम हो कि 4जून 18 को घोटाले की शिकायत की याची व अन्य अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू हुई. एफआईआर भी दर्ज हुई. पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और बिना सरकार से अभियोग चलाने की अनुमति लिए सीजेएम ने संज्ञान ले लिया. जिसे हाईकोर्ट ने विधि विरूद्ध मानते हुए रद्द कर दिया. इसके बाद सरकार से अभियोग चलाने की अनुमति ली गयी और कोर्ट ने आरोप निर्मित किये. याची का कहना था कि सरकार ने 28 जनवरी 20 को अनुमति देते समय एफआईआर का जिक्र नहीं किया, जिससे लगता है विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया.
दूसरी बात पहले विभागीय जांच में दोषी पाये जाते, फिर एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए थी. शासनादेश है कि विभागीय जांच करने के बाद कार्रवाई की जाये. उसका उल्लंघन किया गया है. कोर्ट ने कहा कि अपराध है तो एफआईआर दर्ज होगी. विभागीय जांच करना एफआईआर दर्ज कराने के लिए जरूरी नहीं है.
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