प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि भूमि अधिग्रहण के मामले में लोक अदालत द्वारा पुनर्निर्धारित मुआवजे का लाभ उसी अधिसूचना के तहत अधिग्रहित की गई अन्य भूमि स्वामियों को भी मिलेगा, भले ही वह स्वयं लोक अदालत नहीं गए हो. कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 28ए में स्पष्ट प्रावधान है कि मुआवजे के पुनर्निर्धारण का लाभ उन सभी को मिलेगा, जिनकी जमीन एक ही अधिसूचना द्वारा अधिग्रहित की गई है.
कोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर के दादरी तहसील के अलीवर्दीपुर गांव के शमशाद अली और कई अन्य किसानों की याचिकाएं मंजूर करते हुए दिया है. कोर्ट ने जिलाधिकारी गौतमबुद्ध नगर को निर्देश दिया है कि, वह याचिकाकर्ताओं को लोक अदालत द्वारा बढ़ा हुआ मुआवजा 297.50 रूपये प्रति वर्ग मीटर की दर से देने के मामले में तीन माह में नए सिरे से आदेश पारित करें.
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साथ ही कोर्ट ने जिलाधिकारी के 19 मई 2018 के आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें उन्होंने याचीगण को बढ़ा हुआ मुआवजा देने से इनकार कर दिया था. यह आदेश न्यायमूर्ति अमित बी स्थालेकर और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने दिया है. याची का कहना था की उनकी जमीनें नोएडा के विकास के लिए 20 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर पर 1984 में अधिगृहीत की गई. एक किसान यूनुस ने मुआवजे की राशि पर असंतोष जताते हुए जिलाधिकारी गौतमबुद्ध नगर को भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 18 के तहत रिफरेंस के लिए अर्जी दी. डीएम ने मामला सिविल कोर्ट को अग्रसारित कर दिया. सिविल कोर्ट ने इसे लोक अदालत को रेफर करते हुए तय करने के लिए कहा. लोक अदालत ने दोनों पक्षकारों के बीच सहमति के आधार पर मुआवजे की राशि बढ़ाकर 297.50 रुपये प्रति वर्ग मीटर कर दी.
याचीगण को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने लोक अदालत द्वारा पुनर्निर्धारित दर पर मुआवजा दिए जाने के लिए जिलाधिकारी गौतमबुद्ध नगर को अर्जी दी. जिलाधिकारी ने यह कहते हुए उनकी अर्जी खारिज कर दी कि लोक अदालत का आदेश उनके लिए नहीं है और यह सेक्शन 18 के तहत रिफरेंस दाखिल करने वाले व्यक्ति को ही मिलेगा. इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि स्थाई लोक अदालत की अधिकारिता सिविल कोर्ट के समान है. उसके द्वारा पारित डिक्री अंतिम होती है, जिसके खिलाफ अपील नहीं दाखिल हो सकती. इस आदेश का लाभ याची भी पाने का अधिकारी है, क्योंकि उनकी भी जमीनें उसी अधिसूचना के द्वारा अधिगृहीत की गई हैं, जबकि प्रदेश सरकार की ओर से कहा गया की स्थाई लोक अदालत अदालत नहीं है और उसके द्वारा पारित आदेश का लाभ याची गण को नहीं मिलेगा.