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प्रदेश में करोड़ों का खाद्यान वितरण घोटाला, सैकड़ों डीलरों की याचिकाएं HC ने की खारिज

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश के 43 जिलों के सैकड़ों सस्ते गल्ले के दुकानदारों के लाइसेंस निरस्त करने के जिलाधिकारी के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. इन पर लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियों का फायदा उठाकर करोड़ों के खाद्यान वितरण घोटाले का आरोप है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट
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Published : Feb 6, 2022, 11:00 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के 43 जिलों के सैकड़ों सस्ते गल्ले के दुकानदारों के लाइसेंस निरस्त करने के जिलाधिकारी के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. प्रदेश में कोरोड़ों के खाद्यान वितरण घोटाले का आरोप है. इस घोटाले की जांच साइबर सेल कर रही है.

कोर्ट ने कहा है कि डीलरों ने अपनी बेगुनाही साबित करने के बजाय अधिकारियों के खिलाफ निराधार आरोप ही लगाये हैं. सच्चाई यह है कि हाईब्रिड तकनीकी से राशन कार्डों को आधार कार्ड के साथ फीडिंग की जिम्मेदार डीलरों को सौंपी गई थी. इसी दौरान चंद आधार से सैकड़ों मृत राशन कार्डों को जोड़ कर घोटाले की बुनियाद तैयार कर ली गई थी. मेरठ में दो आधार कार्ड पर 311 राशन कार्ड जुड़े पाये गये. इसी तरह से अन्य जिलों में जुलाई 18 में खाद्यान्न वितरण घोटाला पकड़ में आया और व्यापक कार्रवाई करते हुए एफआईआर दर्ज कराई गई है. जिसकी साइबर सेल जांच कर रही है.

कोर्ट ने घोटाले करने के आरोपी डीलरो (सस्ते गल्ले के दुकानदारों) के लाइसेंस निरस्त करने की चुनौती देने वाली सैकड़ों याचिकाओं को खारिज कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति आर आर अग्रवाल ने मेरठ के अवधेश कुमार सहित 108 याचिकाओं पर दिया है.

कोर्ट ने कहा है कि आधुनिक साइंस व तकनीकी करोड़ों लोगों के जीवन का हिस्सा बन गई है. 21 सदी में तकनीकी से समाज के कमजोर व गरीब तबके के जीवन को सुधारने में मददगार साबित हो रही है. केंद्र सरकार की तमाम लाभकारी योजनाओं को तकनीकी के जरिए जोड़ा गया है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू कर मामूली कीमत पर जरूरतमंद लोगों तक पौष्टिक आहार पहुंचाया जा रहा है. ताकि लोग गरिमा मय जीवन जी सकें. इसी कड़ी में सरकार ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए राशन कार्ड धारकों को खाद्यान्न वितरित कर रही है. कानून में लोगों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न पाने का अधिकार दिया गया है. राशन कार्डों को बायोमेट्रिक मशीन से जोड़ा गया है. ताकि पात्र व्यक्तियों तक सरकार की योजनाएं पहुंच सके.

ये है आंकड़े-

2016 में प्रदेश की अनुमानित आबादी 20 करोड़ आंकी गई. जिसमें से 15.51करोड ग्रामीण क्षेत्र व 4.45 करोड़ शहरी क्षेत्र की आबादी थी. 79.56 फीसदी यानि 12.34 करोड़ ग्रामीण, 64.43 फीसदी यानि 2.87 करोड़ शहरी लोगों की सूची तैयार की गई. राशन कार्ड बनाये गए. यूनिट फीड हुए.

ये भी पढ़ें- भाजपा के किसी नेता पर नहीं है भ्रष्टाचार का मामला : रक्षामंत्री राजनाथ सिंह

दुर्भाग्य से यह कवायद विफल हो गई. बहुत कम नाम मात्र के राशन कार्डों को फीड किया जा सका. 4जुलाई 17 के शासनादेश से नये सिरे से राशन कार्ड जारी किए गए. पुराने हजारों राशन कार्डों को रद्द कर दिया गया. राशन कार्डों को आधार से मशीन में फीड करने की जिम्मेदारी दुकानदारों को सौंपी गई. सुबह से दिनभर डाटा फीडिंग के बाद शाम को जिला आपूर्ति कार्यालय से लॉक कर दिया जाता था. इस दौरान मशीन में डाटा फीडिंग कार्य किया जाता रहा. तुरंत ओ पी पी या अन्य तरीकों से सत्यापन की व्यवस्था नहीं की गई. जिसका फायदा उठाकर फीडिंग में घपला किया गया. रद्द हुए सैकड़ों राशन कार्डों को कुछ आधार कार्ड से फीड कर दिया गया. एक आधार पर राशन कार्ड से खाद्यान्न वितरण कर भारी घोटाले को अंजाम दिया गया.

याचियों का कहना था कि एनआईसी व अधिकारियों ने डाटा फीड कराया. अधिकारियों को बचाने के लिए डीलरों को बलि का बकरा बनाया गया है. प्रदेश के 43 जिलों में 1लाख 86 हजार 737 लेन-देन किये गए. अकेले मेरठ जिले में 108 आधार पर 27 हजार 323 लेन-देन किया गया. याचियों ने अधिकारियों पर घपले का आरोप लगाया किन्तु उन पर लगे आरोपों का जवाब नहीं दे सके. कोर्ट ने सरकारी कार्रवाई पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया.

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के 43 जिलों के सैकड़ों सस्ते गल्ले के दुकानदारों के लाइसेंस निरस्त करने के जिलाधिकारी के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. प्रदेश में कोरोड़ों के खाद्यान वितरण घोटाले का आरोप है. इस घोटाले की जांच साइबर सेल कर रही है.

कोर्ट ने कहा है कि डीलरों ने अपनी बेगुनाही साबित करने के बजाय अधिकारियों के खिलाफ निराधार आरोप ही लगाये हैं. सच्चाई यह है कि हाईब्रिड तकनीकी से राशन कार्डों को आधार कार्ड के साथ फीडिंग की जिम्मेदार डीलरों को सौंपी गई थी. इसी दौरान चंद आधार से सैकड़ों मृत राशन कार्डों को जोड़ कर घोटाले की बुनियाद तैयार कर ली गई थी. मेरठ में दो आधार कार्ड पर 311 राशन कार्ड जुड़े पाये गये. इसी तरह से अन्य जिलों में जुलाई 18 में खाद्यान्न वितरण घोटाला पकड़ में आया और व्यापक कार्रवाई करते हुए एफआईआर दर्ज कराई गई है. जिसकी साइबर सेल जांच कर रही है.

कोर्ट ने घोटाले करने के आरोपी डीलरो (सस्ते गल्ले के दुकानदारों) के लाइसेंस निरस्त करने की चुनौती देने वाली सैकड़ों याचिकाओं को खारिज कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति आर आर अग्रवाल ने मेरठ के अवधेश कुमार सहित 108 याचिकाओं पर दिया है.

कोर्ट ने कहा है कि आधुनिक साइंस व तकनीकी करोड़ों लोगों के जीवन का हिस्सा बन गई है. 21 सदी में तकनीकी से समाज के कमजोर व गरीब तबके के जीवन को सुधारने में मददगार साबित हो रही है. केंद्र सरकार की तमाम लाभकारी योजनाओं को तकनीकी के जरिए जोड़ा गया है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू कर मामूली कीमत पर जरूरतमंद लोगों तक पौष्टिक आहार पहुंचाया जा रहा है. ताकि लोग गरिमा मय जीवन जी सकें. इसी कड़ी में सरकार ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए राशन कार्ड धारकों को खाद्यान्न वितरित कर रही है. कानून में लोगों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न पाने का अधिकार दिया गया है. राशन कार्डों को बायोमेट्रिक मशीन से जोड़ा गया है. ताकि पात्र व्यक्तियों तक सरकार की योजनाएं पहुंच सके.

ये है आंकड़े-

2016 में प्रदेश की अनुमानित आबादी 20 करोड़ आंकी गई. जिसमें से 15.51करोड ग्रामीण क्षेत्र व 4.45 करोड़ शहरी क्षेत्र की आबादी थी. 79.56 फीसदी यानि 12.34 करोड़ ग्रामीण, 64.43 फीसदी यानि 2.87 करोड़ शहरी लोगों की सूची तैयार की गई. राशन कार्ड बनाये गए. यूनिट फीड हुए.

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दुर्भाग्य से यह कवायद विफल हो गई. बहुत कम नाम मात्र के राशन कार्डों को फीड किया जा सका. 4जुलाई 17 के शासनादेश से नये सिरे से राशन कार्ड जारी किए गए. पुराने हजारों राशन कार्डों को रद्द कर दिया गया. राशन कार्डों को आधार से मशीन में फीड करने की जिम्मेदारी दुकानदारों को सौंपी गई. सुबह से दिनभर डाटा फीडिंग के बाद शाम को जिला आपूर्ति कार्यालय से लॉक कर दिया जाता था. इस दौरान मशीन में डाटा फीडिंग कार्य किया जाता रहा. तुरंत ओ पी पी या अन्य तरीकों से सत्यापन की व्यवस्था नहीं की गई. जिसका फायदा उठाकर फीडिंग में घपला किया गया. रद्द हुए सैकड़ों राशन कार्डों को कुछ आधार कार्ड से फीड कर दिया गया. एक आधार पर राशन कार्ड से खाद्यान्न वितरण कर भारी घोटाले को अंजाम दिया गया.

याचियों का कहना था कि एनआईसी व अधिकारियों ने डाटा फीड कराया. अधिकारियों को बचाने के लिए डीलरों को बलि का बकरा बनाया गया है. प्रदेश के 43 जिलों में 1लाख 86 हजार 737 लेन-देन किये गए. अकेले मेरठ जिले में 108 आधार पर 27 हजार 323 लेन-देन किया गया. याचियों ने अधिकारियों पर घपले का आरोप लगाया किन्तु उन पर लगे आरोपों का जवाब नहीं दे सके. कोर्ट ने सरकारी कार्रवाई पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया.

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