प्रयागराज: कोरोना महामारी की वजह से अंतिम संस्कार करना काफी चुनौती पूर्ण बन गया है. महामारी के इस दौर में अंतिम संस्कार के लिए चार कंधों के साथ चिता की लकड़ी तक का इंतजाम करना आसान नहीं रहा. आपदा की इस घड़ी में अस्पताल से लेकर श्मसान तक ज्यादातर लोग कमाई का कोई अवसर छोड़ नहीं रहे हैं. सरकार ने इलाज व एम्बुलेंस के किराए से लेकर अंतिम संस्कार तक के रेट तय कर दिए हैं. उसके बावजूद लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने का अवसर कोई नहीं छोड़ रहा है. हालांकि इसी आपदा में जहां परिवार वालों ने साथ छोड़ा तो वहीं दूसरों ने मदद करने की कई मिसालें पेश की हैं.
तंबुओं की नगरी में लगा कब्रों का मेला
संगम नगरी को तंबुओं की नगरी भी कहा जाता है, क्योंकि माघ और कुम्भ मेले में यहां तंबुओं का शहर बसाया जाता है. उसी शहर में जिस धरती पर तंबुओं की नगरी बसाई जाती थी, आज वहां रेती में शवों की भरमार है. गंगापार और यमुनापार इलाके में नदी के किनारे लोगों ने बड़ी संख्या में शवों को दफना दिया है, लेकिन घाटों के पास इतने शव दफना दिए गए हैं कि लोग अब इन घाटों पर स्नान करने जाने से भी कतराने लगे हैं. फाफामऊ, श्रृंगवेरपुर, देवरख ऐसे गंगा घाट हो गए हैं, जहां पर हजारों की संख्या में शव दफनाए जा चुके हैं. घाट किनारे कब्रिस्तान बनने की जानकारी मिलने के बाद जिला प्रशासन ने नदी किनारे शव दफनाने पर पाबंदी लगा दी है, जिसके बाद अब शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. इन घाटों पर इतनी भारी संख्या में रेती में शव दफनाए गए हैं, जिसको देखकर लोग भी सहम जा रहे हैं.
रेती में दफन शवों को कुत्तों ने नोचा
घाट किनारे रेती में दफनाये गए शवों की मुश्किलें भी बढ़ने लगी हैं. तौकते तूफान की वजह से तीन दिनों तक मौसम खराब रहा. इस दौरान तेज हवा चलने से जहां कब्रों से बालू उड़ गई, वहीं रही सही कसर लगातार हुई बरसात ने पूरी कर दी. इससे कब्रें खुल गईं, जिन्हें खूंखार कुत्तों ने अपना निशाना बना लिया और शवों को बाहर खींचकर खाने लगे जिससे इन घाटों पर जाने वाले इस भयानक मंजर को देखकर डर जा रहे हैं. शवों को जानवरों द्वारा नोंचे जाने की जानकारी मिलने के बाद शवों पर मिट्टी भी डलवाई गई, लेकिन सभी शवों पर प्रशासन के लिए मिट्टी डलवाना आसान नहीं है और न ही गंगा के किनारे खुले में दफन किए गए शवों को कुत्तों से बचा पाना उनके लिए आसान है.
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एम्बुलेंस वालों ने शवों को घाट तक पहुंचाने के बदले लिए हजारों रुपये
प्रयागराज में पिछले दिनों शव को लेकर घाट तक जाने के लिए लोगों से एम्बुलेंस वालों ने मनमर्जी वसूली की. अस्पताल से श्मसान तक जाने के बदले हजारों रुपये वसूले गए. इसके साथ ही शव कोरोना संक्रमितों के शव को एम्बुलेंस में रखने और घाट पर उतारने तक के बदले वसूली की गई. लगातार एम्बुलेंस वालों की मनमानी वसूली की शिकायत मिलने के बाद जिला प्रशासन ने घाटों तक एम्बुलेंस ले जाने का किराया तय कर दिया, जिसके तहत एसी एम्बुलेंस का किराया 2 हजार तो बिना एसी का किराया 15 सौ रुपये तय किया गया. उसके बावजूद एम्बुलेंस वाले 4 से 5 हजार रुपये तक की मांग करते हैं जबकि किराया तय होने से पहले घाट तक ले जाने का किराया 10 हजार से अधिक तक मांगने के मामले सामने आए थे.
अंतिम संस्कार के बदले लिए जा रहे थे मनमाने पैसे
अप्रैल महीने में प्रयागराज में मौत ने ऐसा तांडव मचाया था कि दिन रात श्मसान घाट पर लाशें जलाई जा रही थी. यहां तक कि लोगों को अंतिम संस्कार के लिए भी घंटों इंतजार करना पड़ रहा था. जिनके घर में किसी की मौत कोरोना से हो रही थी, उन्हें तो एम्बुलेंस से लेकर घाट तक हर कोई लूटने को तैयार बैठा था. अप्रैल के मध्य में कोविड मरीज के अंतिम संस्कार के बदले 22 हजार रुपये मांगने का सनसनीखेज मामला सामने आया था. इतने रुपये मांगने पर अंतिम संस्कार कराने वाले और मृतक के परिजनों के बीच इतना विवाद हुआ था कि मौके पर पुलिस ने पहुंचकर मामल शांत करवाया था.
जिला प्रशासन ने 4 हजार तय किया अंतिम संस्कार का रेट
जिला प्रशासन ने शवों को जलाने के बदले मनमानी दाम वसूलने की शिकायत मिलने के बाद घाटों पर अंतिम संस्कार करने के लिए 4 हजार रुपये तय कर दिया, जिसमें 4 कुंतल लकड़ी के साथ दो किलो धूप और हजार रुपये शव को जलाने की मजदूरी तक शामिल है. प्रशासन की तरफ से हर घाट पर इस रेट लिस्ट का बोर्ड लगवाया गया है. इसके साथ ही दीवारों पर भी रेट लिखवा दिया गया है जिससे कि श्मसान घाट पर जाने वालों को अंतिम संस्कार का सरकारी रेट पता चल जाये और लोगों को अधिक रकम न खर्च करनी पड़े.
तय रेट के बावजूद वसूल लेते हैं अधिक रुपये
कहा जाता है कि श्मसान घाट पर लोग मुर्दो से व्यापार करते हैं और इसे सही साबित करके दिखाया है श्मसान घाट पर व्यापार करने वालों ने. जिला प्रशासन ने भले ही 4 हजार रुपये में अंतिम संस्कार करवाने का बोर्ड लगवा दिया हो, लेकिन रेट लिस्ट लगने के बाद भी हर आदमी ने इतने रुपये में अंतिम संस्कार नहीं किया है.
देनी पड़ी मुंहमांगी रकम
प्रयागराज के अल्लापुर के रहने वाले दीपक कुमार शर्मा ने बताया कि उनकी मां की मौत 30 अप्रैल को हो गई थी, जिसके बाद एम्बुलेंस वाले ने अस्पताल से घर तक 4 हजार और घर से श्मसान घाट तक ले जाने के नाम पर 2 हजार यानी कुल 6 हजार रुपये लिए. इसी तरह से दारागंज श्मसान घाट पर सिर्फ लकड़ी के नाम पर 4 हजार रुपये लिए गए. बाकि घाट पर शव जलाने व क्रिया कर्म के नाम पर पैसे लिए गए. उनका कहना है कि अंतिम संस्कार के बदले उन्हें 15 हजार से अधिक खर्च करने पड़े. उन्हें सरकारी दामों की जानकारी थी, लेकिन उस वक्त वो किसी विवाद करने की परिस्थिति में नहीं थे और जिसने जो मांगा, वह देकर अपनी मां का अंतिम संस्कार किया.
अपनों ने अंतिम संस्कार करने से किया किनारा
महामारी के दौरान इंसानियत को शर्मसार करने वाले भी कई अवसर आए हैं, जब अपनों ने अपनों की अर्थी को कंधा देने से भी इंकार कर दिया, लेकिन तब फरिश्ते बनकर गैरों ने मानवता का धर्म निभाया है. जिले में 21 मई को एक बुजुर्ग की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई, जिसके बाद अस्पताल वालों ने मृतक के भाई भतीजों को कॉल करके बुलाया तो उन्होंने आने से इंकार कर दिया. मामले की जानकारी शाहगंज थाने की पुलिस को दी गई. पुलिस वालों ने परिजनों से अंतिम संस्कार करने को कहा तो वे राजी नहीं हुए जिसके बाद शाहगंज इलाके के दारोगा राजीव श्रीवास्तव ने अपनी टीम के साथ बुजुर्ग को कंधा देकर श्मसान घाट पर ले जाकर उसका अंतिम संस्कार करवाया.
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अप्रैल महीने में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के ज्वॉइंट रजिस्ट्रार हेम सिंह की कोरोना से मौत होने के बाद उनके परिवार वालों ने भी अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था. तब इटावा जिले से आकर उनके मुस्लिम दोस्त ने दोस्ती का फर्ज अदा करते हुए विधि विधान के साथ दोस्त का अंतिम संस्कार करके दोस्ती की अनोखी मिसाल पेश की थी.
अंतिम संस्कार करने घाट पर पहुंची महिलाएं
कोरोना काल के पहले तक जहां महिलाएं श्मसान घाट तक जाने से पहरेज करती थीं, वहीं इस महामारी के दौरान महिलाएं भी बेटी, बहन व पत्नी का फर्ज अदा करने घाट तक पहुंच रही थी. कुछ अप्रैल महीने में बेटियों ने चिंताओं को मुखाग्नि देकर भी अपना धर्म निभाया है.
अंतिम संस्कार में शामिल होने से कतरा रहे लोग
कोरोना काल से पहले तक लोग अपने परिचित रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त के गम में शामिल होकर उनका दु:ख बांटने के लिए पहुंचते थे. अंतिम यात्रा में शामिल होते थे, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर इन सभी रिश्तों पर भारी पड़ी और लोग अपने परिवार वालों की अर्थी तक को कंधा देने नहीं गए जिसका नतीजा श्मसान घाटों पर दिखा, जहां चार कंधे न मिलने की वजह से दो-तीन लोग शवों को एम्बुलेंस में रखकर घाटों पर गए और वहां के लोगों की मदद से अंतिम संस्कार किया. इस दौरान इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में भी जाकर लोग शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं.
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शादी का जोड़ा बेचने वाली दुकान पर बिकने लगा कफन और अर्थी का सामान
आपदा की इस घड़ी को भी कई लोगों ने अवसर में तब्दील करके दिखाया है. जहां कुछ लोगों ने आपदा में दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाया तो वहीं किसी ने दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में आपदा को इस तरह का अवसर बनाया कि उसकी कमाई बंद नहीं हुई. प्रयागराज के कोतवाली इलाके में सैकड़ों साल पुरानी श्रीवास्तव साफा कलगी की दुकान थी, जहां पर दूल्हे-दुल्हन के जोड़े और शादी का सामान बिकता था, लेकिन पिछले साल लगे लॉकडाउन के बाद से शादी विवाह के कपड़ों और समान की बिक्री कम हो गई थी, जिसके बाद श्रीवास्तव साफा हाउस नाम की इस दुकान में अर्थी का सामान बिकने लगा.
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दुकानदार का कहना है कि शादी की संख्या घटी और कोरोना की वजह से मौत की संख्या बढ़ी तो बाजार की जरूरत को देखते हुए उन्होंने शादी के सामान के साथ ही कफन और अर्थी का सामान भी बेचना शुरू कर दिया.