प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि स्पेशल एक्ट में उपबंधित अपराध से संबंधित आईपीसी की धाराएं प्रभावी नहीं मानी जाएंगी. संबंधित अपराध में स्पेशल एक्ट के तहत ही मुकदमा चलाया जाना चाहिए. यह आदेश न्यायमूर्ति साधना रानी ठाकुर ने कानपुर के गुटखा व्यवसायी संतोष सहगल की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है. इन पर नकली पान मसाला बनाने और असली से आधे दाम पर बेचने का आरोप है. अधिवक्ता उत्कर्ष मालवीय ने याचिका पर बहस की.
याची के खिलाफ शिकायत थी कि वह कई ब्रांडेड कंपनियों के नाम से नकली पान मसाला बनाकर आधे दाम पर बेच रहा है. इस शिकायत पर पुलिस ने छापा मारकर उसकी फैक्ट्री से नकली गुटखा बनाने का सामान और कई ब्रांडेड कंपनियों के पाउच बरामद किए. इस मामले में 3 लोगों को गिरफ्तार किया गया और उनके खिलाफ मिलावटखोरी, धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेज तैयार करने और अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया.
बाद में पुलिस ने नकली खाद्य सामग्री बनाने के आरोप में भी याची के खिलाफ आईपीसी की धारा 272 और 419 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. आईपीसी की अन्य धाराओं में याची जमानत पर है. पुलिस ने सभी धाराओं में चार्जशीट दाखिल कर दी, जिस पर कानपुर के चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते हुए याची को सम्मन जारी किया.
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उसके बाद हाजिर नहीं होने पर उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया. याचिका में गैर जमानती वारंट और आईपीसी की धारा 272 और 419 के तहत चार्जशीट की वैधानिकता को चुनौती दी गई. याची अधिवक्ता का कहना था कि मिलावटी खाद्य पदार्थ बनाने के मामले में सरकार ने विशेष अधिनियम फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट लागू किया है.
इस एक्ट में मिलावटी खाद्य पदार्थ बनाने के मामले में दंडात्मक प्रावधान भी है. ऐसी स्थिति में स्पेशल एक्ट आने के बाद आईपीसी की धाराओं के तहत चार्जशीट दाखिल करना अनुचित है और विशेष कानून के कारण आईपीसी की ये धाराएं अब प्रभावी नहीं मानी जा सकती. इस तर्क के समर्थन में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक नजीर पेश की गई.
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि स्पेशल एक्ट के गठन के बाद आईपीसी की धारा के तहत मुकदमा दर्ज करने का कोई औचित्य नहीं है, इसलिए कोर्ट ने आईपीसी की धारा 272 और 419 के तहत दर्ज मामला रद्द कर दिया. लेकिन अन्य धाराओं में याची के खिलाफ मुकदमा चलेगा. कोर्ट ने याची के खिलाफ जारी गैर जमानती वारंट के पर भी किसी प्रकार की राहत देने से इनकार कर दिया. कहा कि इस मामले में अधीनस्थ न्यायालय के पास आदेश वापस लेने की अधिकारिता है इसलिए इसमें हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है.
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