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बिना रिकॉर्ड के कोर्ट में आए भारत सरकार के अंडर सेक्रेटरी के आचरण से हाईकोर्ट खफा, सुनवाई टली - Court directs Under Secretary

प्रदेश के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत लगभग 27,000 से अधिक अनुदेशकों का मानदेय 17,000 रुपये प्रतिमाह देने के एकल जज के निर्णय के खिलाफ प्रदेश सरकार की अपीलों पर मंगलवार को भी सुनवाई पूरी नहीं हो सकी. भारत सरकार की ओर से मुख्य न्यायाधीश की बेंच में उपस्थित अंडर सेक्रेट्री स्वर्निश कुमार सुमन बिना किसी रिकॉर्ड के हाईकोर्ट में आए थे.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट
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Published : May 24, 2022, 10:10 PM IST

प्रयागराज : प्रदेश के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत लगभग 27,000 से अधिक अनुदेशकों का मानदेय 17,000 रुपये प्रतिमाह देने के एकल जज के निर्णय के खिलाफ प्रदेश सरकार की अपीलों पर मंगलवार को भी सुनवाई पूरी नहीं हो सकी. भारत सरकार की ओर से मुख्य न्यायाधीश की बेंच में उपस्थित अंडर सेक्रेट्री स्वर्निश कुमार सुमन बिना किसी रिकॉर्ड के हाईकोर्ट में आए थे.

अंडर सेक्रेटरी के इस व्यवहार से खफा कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार प्रयागराज आने का यात्रा भत्ता उन्हें न दे. यही नहीं, हाईकोर्ट ने अंडर सेक्रेट्री के बिना रिकॉर्ड कोर्ट में आने पर टिप्पणी की और कहा कि वह प्रयागराज घूमने आए हैं. हाईकोर्ट ने एएसजीआई, शशि प्रकाश सिंह के अनुरोध पर इस मुकदमे की सुनवाई को एक बार फिर टाल दिया. कोर्ट अब इस केस की सुनवाई 11 जुलाई को करेगी.

कोर्ट में आए अंडर सेक्रेट्री को भारत सरकार के एएसजीआई ने स्वयं कोर्ट से अनुरोध कर बुलाया था. केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में पर्याप्त कागजात न होने के कारण पिछली तिथि पर अनुरोध किया गया था कि कोर्ट एक मौका दें ताकि अगली तारीख पर किसी जिम्मेदार अधिकारी को बुलाकर कोर्ट को इस मामले में सहयोग किया जा सके. भारत सरकार के अधिवक्ता के अनुरोध पर 24 मई को चीफ जस्टिस की बेंच ने इस केस को सुनने का निर्देश दिया था. आज इस केस की सुनवाई होनी थी. परंतु कोर्ट में हाजिर अंडर सेक्रेट्री के पास इस केस से संबंधित कोई भी रिकॉर्ड न होने के चलते कोर्ट को एक बार फिर सुनवाई टालनी पड़ी.

इसे भी पढ़ेंः हाईकोर्ट ने विधवा की अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का दिया आदेश, ससुराल वालों पर की तल्ख टिप्पणी

केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में कोर्ट को यह बताना है कि केंद्र सरकार अनुदेशकों को दिए जाने वाले मानदेय के मद में उसने राज्य सरकार को कितना पैसा दिया. चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ इस मामले में राज्य सरकार द्वारा दाखिल अपीलों पर सुनवाई कर रही है. एकल जज के आदेश के खिलाफ सरकार ने अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट वह लखनऊ बेंच दोनों जगह कर रखी है. सरकार की इन अपीलों पर एक साथ सुनवाई हो रही है.

लखनऊ से वीडियो कांफ्रेंसिंग के मार्फत वहां के वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्रा तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी इस मामले में सरकार की तरफ से उपस्थित रहे. सरकार का कहना है कि अनुदेशकों की नियुक्ति कांट्रैक्ट के आधार पर की गई है. ऐसे में कांट्रैक्ट में दी गई शर्तें और मानदेय उन पर लागू होंगी. कहा गया कि केंद्र सरकार ने इस मद में आवश्यकतानुसार पैसा राज्य सरकार को अपने अंश का नहीं दिया है. ऐसे में सरकार अपने स्तर से अनुदेशकों का पेमेंट कर रही है.

अनुदेशकों की तरफ से कहा गया कि केंद्र सरकार ने अपनी योजना के तहत परिषदीय विद्यालयों के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अनुदेशकों का मानदेय 2017 में 17 हजार कर दिया था. यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार द्वारा पैसा रिलीज करने के बावजूद उनको 17,000 प्रतिमाह की दर से पैसा नहीं दिया जा रहा है, जो गलत है.

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प्रयागराज : प्रदेश के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत लगभग 27,000 से अधिक अनुदेशकों का मानदेय 17,000 रुपये प्रतिमाह देने के एकल जज के निर्णय के खिलाफ प्रदेश सरकार की अपीलों पर मंगलवार को भी सुनवाई पूरी नहीं हो सकी. भारत सरकार की ओर से मुख्य न्यायाधीश की बेंच में उपस्थित अंडर सेक्रेट्री स्वर्निश कुमार सुमन बिना किसी रिकॉर्ड के हाईकोर्ट में आए थे.

अंडर सेक्रेटरी के इस व्यवहार से खफा कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार प्रयागराज आने का यात्रा भत्ता उन्हें न दे. यही नहीं, हाईकोर्ट ने अंडर सेक्रेट्री के बिना रिकॉर्ड कोर्ट में आने पर टिप्पणी की और कहा कि वह प्रयागराज घूमने आए हैं. हाईकोर्ट ने एएसजीआई, शशि प्रकाश सिंह के अनुरोध पर इस मुकदमे की सुनवाई को एक बार फिर टाल दिया. कोर्ट अब इस केस की सुनवाई 11 जुलाई को करेगी.

कोर्ट में आए अंडर सेक्रेट्री को भारत सरकार के एएसजीआई ने स्वयं कोर्ट से अनुरोध कर बुलाया था. केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में पर्याप्त कागजात न होने के कारण पिछली तिथि पर अनुरोध किया गया था कि कोर्ट एक मौका दें ताकि अगली तारीख पर किसी जिम्मेदार अधिकारी को बुलाकर कोर्ट को इस मामले में सहयोग किया जा सके. भारत सरकार के अधिवक्ता के अनुरोध पर 24 मई को चीफ जस्टिस की बेंच ने इस केस को सुनने का निर्देश दिया था. आज इस केस की सुनवाई होनी थी. परंतु कोर्ट में हाजिर अंडर सेक्रेट्री के पास इस केस से संबंधित कोई भी रिकॉर्ड न होने के चलते कोर्ट को एक बार फिर सुनवाई टालनी पड़ी.

इसे भी पढ़ेंः हाईकोर्ट ने विधवा की अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का दिया आदेश, ससुराल वालों पर की तल्ख टिप्पणी

केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में कोर्ट को यह बताना है कि केंद्र सरकार अनुदेशकों को दिए जाने वाले मानदेय के मद में उसने राज्य सरकार को कितना पैसा दिया. चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ इस मामले में राज्य सरकार द्वारा दाखिल अपीलों पर सुनवाई कर रही है. एकल जज के आदेश के खिलाफ सरकार ने अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट वह लखनऊ बेंच दोनों जगह कर रखी है. सरकार की इन अपीलों पर एक साथ सुनवाई हो रही है.

लखनऊ से वीडियो कांफ्रेंसिंग के मार्फत वहां के वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्रा तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी इस मामले में सरकार की तरफ से उपस्थित रहे. सरकार का कहना है कि अनुदेशकों की नियुक्ति कांट्रैक्ट के आधार पर की गई है. ऐसे में कांट्रैक्ट में दी गई शर्तें और मानदेय उन पर लागू होंगी. कहा गया कि केंद्र सरकार ने इस मद में आवश्यकतानुसार पैसा राज्य सरकार को अपने अंश का नहीं दिया है. ऐसे में सरकार अपने स्तर से अनुदेशकों का पेमेंट कर रही है.

अनुदेशकों की तरफ से कहा गया कि केंद्र सरकार ने अपनी योजना के तहत परिषदीय विद्यालयों के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अनुदेशकों का मानदेय 2017 में 17 हजार कर दिया था. यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार द्वारा पैसा रिलीज करने के बावजूद उनको 17,000 प्रतिमाह की दर से पैसा नहीं दिया जा रहा है, जो गलत है.

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