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चंद्रशेखर आज़ाद 'द रियल हीरो'.. अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना

चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे जिन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही सज़ा को हंसते-हंसते भुगत लिया था. लेकिन उनके साहस और निडर रवैये को देखकर अंग्रेज़ी हुकूमत इतनी परेशान हो गई कि उन्हें 16 कोड़ों की सज़ा सुना दी.

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Published : Aug 15, 2021, 4:35 PM IST

चंद्रशेखर आज़ाद 'द रियल हीरो'
चंद्रशेखर आज़ाद 'द रियल हीरो'

प्रयागराज : आज पूरा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. ऐसे में जब भी आज़ादी की लड़ाई की बात होती है तो देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर देने वालों में चंद्रशेखर आज़ाद का नाम सबसे पहले लिया जाता है.

चंद्रशेखर आज़ाद ने कम उम्र से ही अपनी आजाद खयाली और अंग्रेजों के प्रति अपने गुस्से को दिखाना शुरू कर दिया था. तत्कालीन इलाहाबाद जनपद में आज़ाद ने देश के लिए लड़ते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी.

अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना
अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना

आज़ाद के बहादुरी के चर्चे आज भी होते हैं. चाहे किसी भी धर्म के लोग हों, अपने नाम के आगे या पीछे आज़ाद जोड़ते देखे जा सकते हैं. स्वतंत्रता दिवस पर चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी पर आधारित एक खास रोपोर्ट ..

चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही अंग्रेजों का विरोध शुरू कर दिया था. उनके साहस और निडर रवैये को देखकर अंग्रेज़ी हुकूमत इतनी परेशान हो गई कि उन्हें 16 कोड़े की सज़ा दी गई.

अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना
अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना

इतिहास के जानकार कहते हैं कि चंद्रशेखर आज़ाद में क्रांति का वो जज्बा था जिससे अंग्रेज़ी हुकूमत परेशान थी. सेंट्रल असेंबली में भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वॉयसराय की ट्रेन बम से उड़ाने की कोशिश करने जैसी बहादुराना घटनाओं के अगुवा वही थे. उन्होंने काकोरी कांड में सक्रिय रूप से भाग लिया था. पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए.

अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना
अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना
कांतिकारी आज़ाद ने धन की व्यवस्था के लिए अंग्रेज़ों का खज़ाना लूटने की योजना बनाई. उन्होंने 'काकोरी कांड' (इसे योगी सरकार अब 'काकोरी ट्रेन एक्शन' कहती है) की नीव रखी.

क्रांतिकारियों ने लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान पर सहारनपुर-लखनऊ रेल गाड़ी को रोककर उसमें रखा खज़ाना लूट लिया. बाद में एक-एक करके सभी क्रांतिकारी पकडे़ गए पर चंद्रशेखर आज़ाद कभी भी पुलिस के हाथ नहीं आए.

मध्यप्रदेश में था गांव

इतिहासकारों के अनुसार चंद्रशेखर का जन्म मध्यप्रदेश के एक गांव में हुआ था. उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के किसी गांव के रहने वाले थे. क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद बचपन से ही साहसी थे. जब थोड़ा बड़े हुए तो वह अपने माता-पिता को छोड़कर अध्ययन के लिए बनारस पहुंच गए. वहां 'संस्कृत विद्यापीठ ' में दाखिला लेकर संस्कृत का अध्यन करने लगे.

उन दिनों बनारस में असहयोग आंदोलन की लहर चल रही थी. जब वाराणसी में अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तो कम उम्र वाले चंद्रशेखर ने भी वह नज़ारा देखा. अंग्रेज़ों ने उन्हें पकड़ लिया और आंदोलनकरियों के बारे में बताने को कहा. उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया जहां उन्होंने बड़ी बहादुरी से सवालों का जवाब देकर खुद को राष्ट्रभक्त भारतवासी बताया.

उनसे पूछे गए सवाल और उनके जवाबों ने मजिस्ट्रेट को हिलाकर रख दिया था. अंग्रेजी हुकूमत के मजिस्ट्रेट ने उन्हें कोड़े की सजा दी जिसे उन्होंने मुस्कुराते हुए बर्दाश्त कर लिया. यहीं से उनके नाम के साथ आज़ाद जुड़ गया.

मजिस्ट्रेट के पूछे गए प्रश्न और उत्तर

● तुम्हारा नाम क्या है ?
- मेरा नाम आज़ाद है.


● पिता का नाम किया है?
- मेरा पिता का नाम आज़ाद है.

● माता का क्या नाम ?
- मेरे माता का नाम आजाद है.


● तुम्हारा घर कहां है ?
- मेरा घर जेलखाना है.


इतिहास के जानकार अभय अवस्थी बताते हैं कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद हमेशा साधारण कपड़ा पहनते थे. उनके कपड़े में एक पिस्टल हमेशा रहती थी. इलाहाबाद उनको बहुत पसंद था. वह हमेशा साइकिल से चला करते थे.

आजादी के दीवाने थे. प्रयागराज के कीडगंज इलाके में विक्टर गुरु हुआ करते थे. वह चंद्रशेखर आजाद के सहयोगी थे. उस जमाने में क्रांतिकारियों के खुफिया दस्ते के सदस्य और क्रांतिकारी आंदोलन में चंद्रशेखर आजाद के बहुत ही सहयोगी रहे.

चंद्रशेखर आजाद की जिस दिन शहादत हुई, उस दिन नेहरू से मिलने आनंदभवन गए थे. क्रांति के लिए चंद्रशेखर आजाद को कुछ नए पिस्टलों की खरीद करनी थी. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनको दो हजार रुपये दिया था. उन्होंने बताया कि क्रांतिकारियों को पंडित जवाहरलाल नेहरु हर चीज की मदद करते थे. चंद्रशेखर आजाद हों या भगत सिंह, क्रांतिकारियों को पैसे की फंडिंग वही करते थे.

अभय अवस्थी बताते हैं कि चंद्रशेखर आजाद कभी ब्रिटिश शासन के हाथ नहीं लगे. आजाद की जहां शहादत हुई, वह स्थल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साइंस विभाग के सामने स्थित है. अल्फेट पार्क के अंदर जमुनिया बाग जिसको अब कंपनी बाग के नाम से जाना जाता है, अंग्रेजी शासन की पुलिस ने इसी पार्क में आजाद को घेरा था.

चंद्रशेखर आजाद ने जमुनिया बाग में बैठकर पौन घंटे तक अकेले अंग्रेजी सिपाहियों से मोर्चा लिया था. इस दौरान पुलिस की एक भी गोली चंद्रशेखर आजाद को छू नहीं पाई. न ही अंग्रेज सिपाही उन्हें गिरफ्तार कर पाए. चंद्रशेखर आजाद आखिरी दम तक लड़े. जब उन्होंने देखा कि गोलियां खत्म हो चुकीं हैं तो उन्होंने आखिरी गोली से खुद को गोली मार ली.

आजाद का मानना था कि उन्हें किसी भी हाल में अंग्रेजी हुकूमत के हाथ नहीं आना है. वह कहते थे कि हम आजाद हैं, आजाद ही रहेंगे. हम सभी भारतवासी 75वें स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें नमन करते हैं.

इस पार्क में आज भी हजारों की संख्या में लोग आकर चंद्रशेखर को नमन करते हैं. एक्टर एवं मॉडल आंचल पांडे भी शहीद स्थल चंद्रशेखर आजाद पार्क पहुंची. उन्होंने भी चंद्रशेखर आजाद को नमन किया.

प्रयागराज : आज पूरा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. ऐसे में जब भी आज़ादी की लड़ाई की बात होती है तो देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर देने वालों में चंद्रशेखर आज़ाद का नाम सबसे पहले लिया जाता है.

चंद्रशेखर आज़ाद ने कम उम्र से ही अपनी आजाद खयाली और अंग्रेजों के प्रति अपने गुस्से को दिखाना शुरू कर दिया था. तत्कालीन इलाहाबाद जनपद में आज़ाद ने देश के लिए लड़ते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी.

अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना
अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना

आज़ाद के बहादुरी के चर्चे आज भी होते हैं. चाहे किसी भी धर्म के लोग हों, अपने नाम के आगे या पीछे आज़ाद जोड़ते देखे जा सकते हैं. स्वतंत्रता दिवस पर चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी पर आधारित एक खास रोपोर्ट ..

चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही अंग्रेजों का विरोध शुरू कर दिया था. उनके साहस और निडर रवैये को देखकर अंग्रेज़ी हुकूमत इतनी परेशान हो गई कि उन्हें 16 कोड़े की सज़ा दी गई.

अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना
अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना

इतिहास के जानकार कहते हैं कि चंद्रशेखर आज़ाद में क्रांति का वो जज्बा था जिससे अंग्रेज़ी हुकूमत परेशान थी. सेंट्रल असेंबली में भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वॉयसराय की ट्रेन बम से उड़ाने की कोशिश करने जैसी बहादुराना घटनाओं के अगुवा वही थे. उन्होंने काकोरी कांड में सक्रिय रूप से भाग लिया था. पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए.

अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना
अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से ज्यादा बेहतर समझा खुद को गोली मारकर शहीद होना
कांतिकारी आज़ाद ने धन की व्यवस्था के लिए अंग्रेज़ों का खज़ाना लूटने की योजना बनाई. उन्होंने 'काकोरी कांड' (इसे योगी सरकार अब 'काकोरी ट्रेन एक्शन' कहती है) की नीव रखी.

क्रांतिकारियों ने लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान पर सहारनपुर-लखनऊ रेल गाड़ी को रोककर उसमें रखा खज़ाना लूट लिया. बाद में एक-एक करके सभी क्रांतिकारी पकडे़ गए पर चंद्रशेखर आज़ाद कभी भी पुलिस के हाथ नहीं आए.

मध्यप्रदेश में था गांव

इतिहासकारों के अनुसार चंद्रशेखर का जन्म मध्यप्रदेश के एक गांव में हुआ था. उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के किसी गांव के रहने वाले थे. क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद बचपन से ही साहसी थे. जब थोड़ा बड़े हुए तो वह अपने माता-पिता को छोड़कर अध्ययन के लिए बनारस पहुंच गए. वहां 'संस्कृत विद्यापीठ ' में दाखिला लेकर संस्कृत का अध्यन करने लगे.

उन दिनों बनारस में असहयोग आंदोलन की लहर चल रही थी. जब वाराणसी में अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तो कम उम्र वाले चंद्रशेखर ने भी वह नज़ारा देखा. अंग्रेज़ों ने उन्हें पकड़ लिया और आंदोलनकरियों के बारे में बताने को कहा. उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया जहां उन्होंने बड़ी बहादुरी से सवालों का जवाब देकर खुद को राष्ट्रभक्त भारतवासी बताया.

उनसे पूछे गए सवाल और उनके जवाबों ने मजिस्ट्रेट को हिलाकर रख दिया था. अंग्रेजी हुकूमत के मजिस्ट्रेट ने उन्हें कोड़े की सजा दी जिसे उन्होंने मुस्कुराते हुए बर्दाश्त कर लिया. यहीं से उनके नाम के साथ आज़ाद जुड़ गया.

मजिस्ट्रेट के पूछे गए प्रश्न और उत्तर

● तुम्हारा नाम क्या है ?
- मेरा नाम आज़ाद है.


● पिता का नाम किया है?
- मेरा पिता का नाम आज़ाद है.

● माता का क्या नाम ?
- मेरे माता का नाम आजाद है.


● तुम्हारा घर कहां है ?
- मेरा घर जेलखाना है.


इतिहास के जानकार अभय अवस्थी बताते हैं कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद हमेशा साधारण कपड़ा पहनते थे. उनके कपड़े में एक पिस्टल हमेशा रहती थी. इलाहाबाद उनको बहुत पसंद था. वह हमेशा साइकिल से चला करते थे.

आजादी के दीवाने थे. प्रयागराज के कीडगंज इलाके में विक्टर गुरु हुआ करते थे. वह चंद्रशेखर आजाद के सहयोगी थे. उस जमाने में क्रांतिकारियों के खुफिया दस्ते के सदस्य और क्रांतिकारी आंदोलन में चंद्रशेखर आजाद के बहुत ही सहयोगी रहे.

चंद्रशेखर आजाद की जिस दिन शहादत हुई, उस दिन नेहरू से मिलने आनंदभवन गए थे. क्रांति के लिए चंद्रशेखर आजाद को कुछ नए पिस्टलों की खरीद करनी थी. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनको दो हजार रुपये दिया था. उन्होंने बताया कि क्रांतिकारियों को पंडित जवाहरलाल नेहरु हर चीज की मदद करते थे. चंद्रशेखर आजाद हों या भगत सिंह, क्रांतिकारियों को पैसे की फंडिंग वही करते थे.

अभय अवस्थी बताते हैं कि चंद्रशेखर आजाद कभी ब्रिटिश शासन के हाथ नहीं लगे. आजाद की जहां शहादत हुई, वह स्थल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साइंस विभाग के सामने स्थित है. अल्फेट पार्क के अंदर जमुनिया बाग जिसको अब कंपनी बाग के नाम से जाना जाता है, अंग्रेजी शासन की पुलिस ने इसी पार्क में आजाद को घेरा था.

चंद्रशेखर आजाद ने जमुनिया बाग में बैठकर पौन घंटे तक अकेले अंग्रेजी सिपाहियों से मोर्चा लिया था. इस दौरान पुलिस की एक भी गोली चंद्रशेखर आजाद को छू नहीं पाई. न ही अंग्रेज सिपाही उन्हें गिरफ्तार कर पाए. चंद्रशेखर आजाद आखिरी दम तक लड़े. जब उन्होंने देखा कि गोलियां खत्म हो चुकीं हैं तो उन्होंने आखिरी गोली से खुद को गोली मार ली.

आजाद का मानना था कि उन्हें किसी भी हाल में अंग्रेजी हुकूमत के हाथ नहीं आना है. वह कहते थे कि हम आजाद हैं, आजाद ही रहेंगे. हम सभी भारतवासी 75वें स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें नमन करते हैं.

इस पार्क में आज भी हजारों की संख्या में लोग आकर चंद्रशेखर को नमन करते हैं. एक्टर एवं मॉडल आंचल पांडे भी शहीद स्थल चंद्रशेखर आजाद पार्क पहुंची. उन्होंने भी चंद्रशेखर आजाद को नमन किया.

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