प्रयागराज : अतीक अहमद के आपराधिक साम्राज्य का वारिस उसका बेटा असद ही है. कहा जा रहा है कि अतीक अहमद अब अपना साम्राज्य अपने बेटे असद को सौंप चुका है. विरासत के ऐलान से पहले वह असद के लिए वैसा ही खौफ कायम करना चाहता था, जैसा कभी उसने चांद बाबा की हत्या के बाद कायम किया था. उमेश की हत्या के जरिये उसने असद को गुनाह की दुनिया में चर्चित कर दिया. हत्या के जरिये ही अतीक ने भी अपराध की सीढ़ियां चढ़ी थीं.
पूर्व आईपीएस लालजी शुक्ला का कहना है कि माफिया अतीक अहमद की जीवन की पूंजी अपराध ही है. वह अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए निरंतर अपराध करा रहा है. राजू पाल मर्डर केस में न्याय को प्रभावित करने के लिए ही उसने गवाह उमेश पाल की हत्या कराई. अतीक अहमद ने 1979 में पारिवारिक विवाद के दौरान झारखंड में रहने वाले रिश्तेदार की हत्या कराई थी. इसके बाद उसने राजनीतिक और सामाजिक जीवन में अपने प्रतिद्वंदियों को एक-एक करके रास्ते से हटा दिया. हत्याओं का सिलसिला उसने इस कदर जारी रखा कि लोग उससे खौफ खाने लगे.
एक के बाद एक हत्याओं से दहशत : पूर्व आईपीएस लाल जी शुक्ला बताते हैं कि अतीक अहमद भी चांद बाबा की हत्या के बाद माफिया बन गया था. एक समय था, जब चांद बाबा से उसकी दोस्ती थी. राजनीतिक टकराव के बाद उसने चांद बाबा की हत्या कराई. फिर उसने कुन्नू सभासद की हत्या कर इलाके में खौफ कायम किया. जेल में रहते हुए ही उसने बीजेपी से जुड़े मुस्लिम कार्यकर्ता अशरफ की हत्या कराई. अशरफ पर गोली अतीक के घर से चली थी. इसके अलावा चकिया में ही एक मोहम्मद कारी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत पर अतीक का नाम उछला. इन सभी मामलों में अतीक अहमद के खिलाफ संदेह के आधार पर मुकदमा कायम हुआ मगर साक्ष्य नहीं मिलने पर वह बरी हो गया. लालजी शुक्ला बताते हैं कि हत्या के कई मामलों में वादी पक्ष के लोगों ने ही अतीक से समझौता कर लिया, जिससे जांच और कानूनी कार्रवाई को ठेस पहुंची.
2003 में प्रयागराज के सिविल लाइंस में खुलेआम डॉ अबरार की उनके नर्सिंग होम के सामने ही हत्या हुई थी. इस केस में भी अतीक एंड कंपनी का नाम सामने आया. तत्कालीन सरकार ने अतीक के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी. मगर 2004 में प्रदेश की सत्ता बदल गई और अतीक ने कानून से बचने का तरीका ढूंढ लिया. 18 साल पहले 2005 में राजू पाल की हत्या के बाद माफिया अतीक अहमद अपराध की दुनिया का सबसे बड़ा बाहुबली बन गया.
खौफ का असर, पुलिस बजाती थी हुक्म : नाम न बताने की शर्त पर एक रिटायर्ड दरोगा बताते हैं कि अतीक अहमद परिवार का खौफ इतना बुलंद था कि उसके घर के सामने से निकलने वाली गाड़ियों के हॉर्न तक नहीं बजते थे. उसकी गाड़ी के आगे किसी को अपनी गाड़ी लगाने की हिम्मत नहीं थी. अतीक का राजनीतिक वर्चस्व इतना बड़ा था कि सूबे का मुखिया खुद उसके घर आए थे. एक वक्त ऐसा था कि अतीक अहमद के कार्यालय से निकला फरमान इलाहाबाद के जिला प्रशासन के होश फाख्ता कर देता था. माफिया का फरमान पत्थर की लकीर थी. अपने ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए बड़े-बड़े अधिकारी तक अतीक अहमद के चौखट पर सजदा करते थे.
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