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प्रयागराज की वंशिका हैं बेजुबानों की 'मसीहा', घर को बना दिया पशु अस्पताल

प्रयागराज की रहने वाली बीए की छात्रा वंशिका गुप्ता ने लॉकडाउन के दौरान बेजुबानों को अपने घर पर पनाह दी और उनकी देखभाल की. वंशिका ने बताया कि इस कार्य को करने में उन्हें अच्छा अनुभव होता है. देखिए ये रिपोर्ट...

प्रयागराज की वंशिका हैं बेजुबानों की 'मसीहा'
प्रयागराज की वंशिका हैं बेजुबानों की 'मसीहा'
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Published : Aug 14, 2020, 11:13 AM IST

प्रयागराज: गाय, भैंस, बिल्ली और खरगोश जैसे पशुओं को हर कोई शौक से पलता है, लेकिन प्रयागराज की रहने वाली वंशिका गुप्ता सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा जानवरों को अपने घर में पनाह देती हैं. कोरोना काल में जहां लोग इंसानों से दूर भागने लगे, वहीं दूसरी ओर वंशिका गुप्ता ने घायल जानवरों को घर लाकर इलाज किया है. वंशिका अपने घर पर जानवरों का आश्रय स्थल बनाकर पूरे भाव के साथ सेवा करती हैं. वंशिका ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत.

स्पेशल रिपोर्ट.

घर को बनाया पशु चिकित्सालय
पशु प्रेमी वंशिका गुप्ता के घर में हर तरफ जानवर ही देखने को मिलेंगे. दरअसल वंशिका सड़कों पर आवारा घूमने वाले बेसहारा जानवरों को अपने घर पर लेकर आती हैं. साथ ही घायल जानवरों को घर पर लाकर इलाज करती हैं और सारा दिन उन्हीं के साथ खेलती रहती हैं. घायल जानवरों की पट्टी मलहम से लेकर खाना खिलाने तक का काम स्वयं करती हैं.

लॉकडाउन में 3500 जानवरों को खिलाया खाना
वंशिका गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान सारे दुकान बंद थे, लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे. ऐसे में बेजुबानों को खाना नहीं मिल रहा था. वंशिका और उनके साथियों ने मिलकर कुछ भूखे जानवरों को खाना खिलाना शुरू किया. बाद में यह संख्या बढ़कर 3500 हो गई. वंशिका का कहना है कि अब उनकी टीम रोजाना तकरीबन साढ़े तीन हजार से ज्यादा जानवरों को भोजन उपलब्ध कराती है. शहर के विभिन्न चौराहों-गलियों मोहल्लों में घूमकर जानवरों को खाना खिलाया जाता है.

कोरोना से डर जानवरों को घर से किया बाहर
वंशिका को बचपन से ही जानवरों से प्रेम था. वंशिका ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान लोगों ने कोरोना के डर से अपने पालतू पशुओं को भी छोड़ दिया था, हमारी टीम ऐसे जानवरों को घर लेकर आती है. घर पर इन जानवरों के लिए एक आश्रय स्थल बनाया गया है. वंशिका इस समय अपने घर में कुत्ता, बिल्ली, बंदर व बकरा आदि जानवरों की सेवा कर रही हैं.

परिवार का मिला पूरा सपोर्ट
वंशिका ने बताया कि जानवरों को घर लाने का काम जब शुरू किया तो घरवालों का पूरा सपोर्ट मिला. परिजनों के सहयोग से ही आज इतने जानवरों को घर में रखा गया है. आगे भी ऐसे ही जानवरों के लिए सेवा जारी रहेगी.

प्रयागराज: गाय, भैंस, बिल्ली और खरगोश जैसे पशुओं को हर कोई शौक से पलता है, लेकिन प्रयागराज की रहने वाली वंशिका गुप्ता सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा जानवरों को अपने घर में पनाह देती हैं. कोरोना काल में जहां लोग इंसानों से दूर भागने लगे, वहीं दूसरी ओर वंशिका गुप्ता ने घायल जानवरों को घर लाकर इलाज किया है. वंशिका अपने घर पर जानवरों का आश्रय स्थल बनाकर पूरे भाव के साथ सेवा करती हैं. वंशिका ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत.

स्पेशल रिपोर्ट.

घर को बनाया पशु चिकित्सालय
पशु प्रेमी वंशिका गुप्ता के घर में हर तरफ जानवर ही देखने को मिलेंगे. दरअसल वंशिका सड़कों पर आवारा घूमने वाले बेसहारा जानवरों को अपने घर पर लेकर आती हैं. साथ ही घायल जानवरों को घर पर लाकर इलाज करती हैं और सारा दिन उन्हीं के साथ खेलती रहती हैं. घायल जानवरों की पट्टी मलहम से लेकर खाना खिलाने तक का काम स्वयं करती हैं.

लॉकडाउन में 3500 जानवरों को खिलाया खाना
वंशिका गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान सारे दुकान बंद थे, लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे. ऐसे में बेजुबानों को खाना नहीं मिल रहा था. वंशिका और उनके साथियों ने मिलकर कुछ भूखे जानवरों को खाना खिलाना शुरू किया. बाद में यह संख्या बढ़कर 3500 हो गई. वंशिका का कहना है कि अब उनकी टीम रोजाना तकरीबन साढ़े तीन हजार से ज्यादा जानवरों को भोजन उपलब्ध कराती है. शहर के विभिन्न चौराहों-गलियों मोहल्लों में घूमकर जानवरों को खाना खिलाया जाता है.

कोरोना से डर जानवरों को घर से किया बाहर
वंशिका को बचपन से ही जानवरों से प्रेम था. वंशिका ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान लोगों ने कोरोना के डर से अपने पालतू पशुओं को भी छोड़ दिया था, हमारी टीम ऐसे जानवरों को घर लेकर आती है. घर पर इन जानवरों के लिए एक आश्रय स्थल बनाया गया है. वंशिका इस समय अपने घर में कुत्ता, बिल्ली, बंदर व बकरा आदि जानवरों की सेवा कर रही हैं.

परिवार का मिला पूरा सपोर्ट
वंशिका ने बताया कि जानवरों को घर लाने का काम जब शुरू किया तो घरवालों का पूरा सपोर्ट मिला. परिजनों के सहयोग से ही आज इतने जानवरों को घर में रखा गया है. आगे भी ऐसे ही जानवरों के लिए सेवा जारी रहेगी.

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