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हाईकोर्ट ने कहा- जवाबदेही से काम करे जीए कार्यालय, न कि खुशामदी करके - कारण बताओ नोटिस

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad high court) ने राज्य विधि परामर्शी (State Law Counsel) की कार्रवाई पर असंतोष व्यक्त किया है. हाईकोर्ट ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि आदेश का पालन करने में क्यों विफल रहे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Jul 30, 2021, 5:39 AM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad high court) ने प्रमुख सचिव न्याय एवं राज्य विधि परामर्शी (State Law Counsel) की कार्रवाई पर असंतोष व्यक्त किया है. हाईकोर्ट ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि आदेश का पालन करने में क्यों विफल रहे. कोर्ट ने विधि परामर्शी को दो अगस्त को तलब भी किया है.

हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी वकील सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद थे, फिर भी आदेश की सूचना अधिकारियों को नहीं दी. कोर्ट ने विधि परामर्शी को इस लापरवाही की जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. हाईकोर्ट ने शासकीय अधिवक्ता कार्यालय की कार्य प्रणाली पर भी तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि कार्यालय को जवाबदेही से काम करना चाहिए न कि खुशामदी पर. ऐसे रवैये की अनुमति नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने कहा कि वह अधिकारियों को तलब नहीं करना चाहता, लेकिन पत्रावली से साफ है अधिकारी आदेश का सम्मान नहीं कर रहे. इसलिए उन्हें बुलाना पड़ा. यह साफ नहीं कि अधिकारी अपनी टांग क्यों बीच में लड़ा रहे हैं. यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने शाहजहांपुर तबलीगी जमात से जुड़े विदेशी नागरिकों हसे उर्फ हंसना वाई और 11 अन्य की याचिका पर दिया. हाईकोर्ट ने विधि परामर्शी से कहा था कि पता करें, ऐसा जानबूझकर किया गया या लापरवाही में हो गया.

हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकारी वकील की ओर से इस घोर लापरवाही के कारण उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारियों को उनकी बिना किसी गलती के तलब करना पड़ा. पुलिस अधिकारियों की ओर से दाखिल हलफनामे में यह उल्लेख किया गया कि समय पर हलफनामा दाखिल करने में विफलता का कारण सरकारी वकील से सूचना न मिलना है. कोर्ट में तैनात सरकारी वकील ने स्पष्ट रूप से कोर्ट के आदेश की सूचना पुलिस अधिकारियों को नहीं दी, जबकि आदेश होने के समय सरकारी वकील कोर्ट के समक्ष उपस्थित थे.

पढ़ें: इलाहाबाद हाईकोर्ट के अनुभागों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्देश

कोर्ट ने कहा था कि मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है. इस तरह के आचरण से व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होता है और मामले की सुनवाई में भी बाधा उत्पन्न होती है. अपर शासकीय अधिवक्ता विभव आनंद ने कोर्ट को भ्रमित किया है. सही जानकारी नहीं दी. इसके कारण बिना अधिकारियों की गलती के तलब करना पड़ा. उनका कहना था कि वे अपर महाधिवक्ता विनोद कांत को सहयोग कर रहे थे, जिसे अपर महाधिवक्ता ने भी स्वीकार किया. आदेश को गंभीरता से न लेने पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. इस मामले में सुनवाई अब दो अगस्त को होगी.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad high court) ने प्रमुख सचिव न्याय एवं राज्य विधि परामर्शी (State Law Counsel) की कार्रवाई पर असंतोष व्यक्त किया है. हाईकोर्ट ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि आदेश का पालन करने में क्यों विफल रहे. कोर्ट ने विधि परामर्शी को दो अगस्त को तलब भी किया है.

हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी वकील सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद थे, फिर भी आदेश की सूचना अधिकारियों को नहीं दी. कोर्ट ने विधि परामर्शी को इस लापरवाही की जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. हाईकोर्ट ने शासकीय अधिवक्ता कार्यालय की कार्य प्रणाली पर भी तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि कार्यालय को जवाबदेही से काम करना चाहिए न कि खुशामदी पर. ऐसे रवैये की अनुमति नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने कहा कि वह अधिकारियों को तलब नहीं करना चाहता, लेकिन पत्रावली से साफ है अधिकारी आदेश का सम्मान नहीं कर रहे. इसलिए उन्हें बुलाना पड़ा. यह साफ नहीं कि अधिकारी अपनी टांग क्यों बीच में लड़ा रहे हैं. यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने शाहजहांपुर तबलीगी जमात से जुड़े विदेशी नागरिकों हसे उर्फ हंसना वाई और 11 अन्य की याचिका पर दिया. हाईकोर्ट ने विधि परामर्शी से कहा था कि पता करें, ऐसा जानबूझकर किया गया या लापरवाही में हो गया.

हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकारी वकील की ओर से इस घोर लापरवाही के कारण उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारियों को उनकी बिना किसी गलती के तलब करना पड़ा. पुलिस अधिकारियों की ओर से दाखिल हलफनामे में यह उल्लेख किया गया कि समय पर हलफनामा दाखिल करने में विफलता का कारण सरकारी वकील से सूचना न मिलना है. कोर्ट में तैनात सरकारी वकील ने स्पष्ट रूप से कोर्ट के आदेश की सूचना पुलिस अधिकारियों को नहीं दी, जबकि आदेश होने के समय सरकारी वकील कोर्ट के समक्ष उपस्थित थे.

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कोर्ट ने कहा था कि मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है. इस तरह के आचरण से व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होता है और मामले की सुनवाई में भी बाधा उत्पन्न होती है. अपर शासकीय अधिवक्ता विभव आनंद ने कोर्ट को भ्रमित किया है. सही जानकारी नहीं दी. इसके कारण बिना अधिकारियों की गलती के तलब करना पड़ा. उनका कहना था कि वे अपर महाधिवक्ता विनोद कांत को सहयोग कर रहे थे, जिसे अपर महाधिवक्ता ने भी स्वीकार किया. आदेश को गंभीरता से न लेने पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. इस मामले में सुनवाई अब दो अगस्त को होगी.

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