प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जल निगम और यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्यशैली पर तीखी नाराजगी जाहिर की. टिप्पणी की कि जब गंगा में हो रहे प्रदूषण की जांच और कार्रवाई नहीं हो रही है तो यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्यों गठित कर रखा है. कोर्ट ने कहा कि क्यों न इसे समाप्त कर दिया जाए.
हाईकोर्ट ने मामले में नमामि गंगे परियोजना के महानिदेशक को निर्देश दिया कि गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने में खर्च किए गए अरबों रुपये के बजट का ब्योरा प्रस्तुत करें. साथ ही पूछा कि गंगा अब तक साफ क्यों नहीं हो सकी? कोर्ट ने अगली सुनवाई पर परियोजना के महानिदेशक से इस परियोजना में खर्च हुए बजट का ब्योरा प्रस्तुत करने को निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी.
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स्वत: संज्ञान ली गई जनहित याचिका पर मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ सुनवाई कर रही थी. सुनवाई के दौरान याची अधिवक्ता ने बताया कि गंगा में शोधित जल नहीं जा रहा है. कानपुर में लेदर इंडस्ट्री, गजरौला में शुगर इंडस्ट्री की गंदगी शोधित हुए बगैर गंगा में समा रही है. शीशा, पोटेशियम और अन्य रेडियोएक्टिव चीजें गंगा को दूषित कर रही हैं. यूपी में एसटीपी के संचालन की जिम्मेदारी अडानी ग्रुप की कंपनी को दी गई है. लेकिन, संयंत्रों के काम न करने से गंगा मैली बनी हुई हैं.
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