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गंगा प्रदूषण मामले में विभागों में तालमेल न होने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट तल्ख

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Published : Nov 2, 2022, 9:04 AM IST

गंगा प्रदूषण मामले में विभागों, निगमों व अधिकरणों में तालमेल न होने और विरोधाभासी हलफनामे दाखिल कर जवाबदेही एक दूसरे के कंधे पर डालने को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है. 3 न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र से कहा कि अब सभी विभागों, निगमों व प्राधिकरणों की ओर से केवल वही बहस करेंगे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले में विभागों, निगमों व अधिकरणों में तालमेल न होने और विरोधाभासी हलफनामे दाखिल कर जवाबदेही एक दूसरे के कंधे पर डालने को गंभीरता से लिया है. 3 न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र से कहा कि अब सभी विभागों, निगमों व प्राधिकरणों की ओर से केवल वही बहस करेंगे. कोर्ट ने उनसे आदेशों के अनुपालन पर पर्यावरण सचिव का हलफनामा दाखिल करने को कहा है. साथ ही मुख्य सचिव को जांच कर जरूरी दिशा निर्देश जारी करने का आदेश दिया है.

यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति एमके गुप्ता एवं न्यायमूर्ति अजित कुमार की पूर्णपीठ ने दिया है. कोर्ट ने राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल व केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के प्रदूषण मानकों में भिन्नता को लेकर एएसजीआई शशि प्रकाश सिंह व केंद्र सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी से जानकारी मांगी है.

एसजीआई ने जलशक्ति मंत्रालय के हलफनामे में गंगा स्वच्छता अभियान के लिए 3 हजार करोड़ रुपये देने व खर्च का ब्यौरा पेश करते हुए कहा कि केंद्र सरकार इसकी मॉनिटरिंग कर रही है. कोर्ट ने कहा रिपोर्ट बहुत अच्छी है लेकिन वास्तविकता कुछ और है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नाले बंद हैं और गंगा में गंदा पानी नहीं जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि गंगा का प्रदूषण कम नहीं हो रहा है, जितना उत्सर्जन है, शोधन क्षमता उससे काफी कम है. सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव व शैलेश सिंह ने कोर्ट के विभिन्न निर्देशों का पालन न किए जाने की बात कही.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 154 एसटीपी का निरीक्षण करने की बात कही है. बताया कि इनमें से 64 में एनजीटी मानक का पालन पाया गया लेकिन 42 में पालन नहीं पाया गया. जहां 48 एसटीपी बंद मिले.

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता डॉ. एचएन त्रिपाठी ने बताया कि प्रदूषण के लिए 61 उद्योगों को नोटिस दिया गया और राज्य सरकार से 44 अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की अनुमति मांगी गई है.

जल निगम के अधिवक्ता संजय ओम ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निरीक्षण रिपोर्ट को विरोधाभासी बताया. जल निगम ग्रामीण के अधिवक्ता ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व गंगाजल प्रदूषण की रिपोर्ट पर कहा कि आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट बोर्ड की रिपोर्ट से अलग है. कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताया और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता कुंवर बाल मुकुंद सिंह से स्थिति स्पष्ट करने को कहा.

महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने कहा कि विभागों की कार्रवाई से वह भी संतुष्ट नहीं हैं. साथ ही आश्वासन दिया कि आदेश का पालन कर रिपोर्ट पेश की जाएगी. बाद में कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 1 दिसंबर की तारीख लगा दी. बाद में ओमेक्स सिटी प्रोजेक्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने गंगा किनारे अधिकतम बाढ़ बिंदु से 500 मीटर तक निर्माण पर रोक लगाने पर कहा कि मास्टर प्लान के तहत केवल 200 मीटर तक निर्माण पर रोक है. कोर्ट का आदेश सरकार की नीति के विपरीत है. ऐसे में अगली सुनवाई पर उन्हें भी पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाए.

इसे भी पढे़ं- अदालत के कार्य का बहिष्कार करेंगे हाईकोर्ट के वकील

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले में विभागों, निगमों व अधिकरणों में तालमेल न होने और विरोधाभासी हलफनामे दाखिल कर जवाबदेही एक दूसरे के कंधे पर डालने को गंभीरता से लिया है. 3 न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र से कहा कि अब सभी विभागों, निगमों व प्राधिकरणों की ओर से केवल वही बहस करेंगे. कोर्ट ने उनसे आदेशों के अनुपालन पर पर्यावरण सचिव का हलफनामा दाखिल करने को कहा है. साथ ही मुख्य सचिव को जांच कर जरूरी दिशा निर्देश जारी करने का आदेश दिया है.

यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति एमके गुप्ता एवं न्यायमूर्ति अजित कुमार की पूर्णपीठ ने दिया है. कोर्ट ने राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल व केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के प्रदूषण मानकों में भिन्नता को लेकर एएसजीआई शशि प्रकाश सिंह व केंद्र सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी से जानकारी मांगी है.

एसजीआई ने जलशक्ति मंत्रालय के हलफनामे में गंगा स्वच्छता अभियान के लिए 3 हजार करोड़ रुपये देने व खर्च का ब्यौरा पेश करते हुए कहा कि केंद्र सरकार इसकी मॉनिटरिंग कर रही है. कोर्ट ने कहा रिपोर्ट बहुत अच्छी है लेकिन वास्तविकता कुछ और है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नाले बंद हैं और गंगा में गंदा पानी नहीं जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि गंगा का प्रदूषण कम नहीं हो रहा है, जितना उत्सर्जन है, शोधन क्षमता उससे काफी कम है. सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव व शैलेश सिंह ने कोर्ट के विभिन्न निर्देशों का पालन न किए जाने की बात कही.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 154 एसटीपी का निरीक्षण करने की बात कही है. बताया कि इनमें से 64 में एनजीटी मानक का पालन पाया गया लेकिन 42 में पालन नहीं पाया गया. जहां 48 एसटीपी बंद मिले.

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता डॉ. एचएन त्रिपाठी ने बताया कि प्रदूषण के लिए 61 उद्योगों को नोटिस दिया गया और राज्य सरकार से 44 अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की अनुमति मांगी गई है.

जल निगम के अधिवक्ता संजय ओम ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निरीक्षण रिपोर्ट को विरोधाभासी बताया. जल निगम ग्रामीण के अधिवक्ता ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व गंगाजल प्रदूषण की रिपोर्ट पर कहा कि आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट बोर्ड की रिपोर्ट से अलग है. कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताया और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता कुंवर बाल मुकुंद सिंह से स्थिति स्पष्ट करने को कहा.

महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने कहा कि विभागों की कार्रवाई से वह भी संतुष्ट नहीं हैं. साथ ही आश्वासन दिया कि आदेश का पालन कर रिपोर्ट पेश की जाएगी. बाद में कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 1 दिसंबर की तारीख लगा दी. बाद में ओमेक्स सिटी प्रोजेक्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने गंगा किनारे अधिकतम बाढ़ बिंदु से 500 मीटर तक निर्माण पर रोक लगाने पर कहा कि मास्टर प्लान के तहत केवल 200 मीटर तक निर्माण पर रोक है. कोर्ट का आदेश सरकार की नीति के विपरीत है. ऐसे में अगली सुनवाई पर उन्हें भी पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाए.

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