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हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणीः शादी से इंकार करना, खुदकुशी के लिए उकसाना नहीं - Allahabad high court comment

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि शादी से इंकार करने का मतलब आत्महत्या के लिए उकसना नहीं है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 25, 2023, 8:03 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि महज शादी करने से इनकार कर देने से खुदकुशी के लिए उकसाने का अपराध गठित नहीं होता है. कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 और धारा 107 को साथ पढ़ने से यह स्पष्ट है कि खुदकुशी के लिए उकसाने के अपराध में पहली शर्त यह है कि व्यक्ति को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया जाए. जबकि दूसरी शर्त है कि इस कार्य को करने के लिए एक या उससे अधिक लोग ऐसे षड्यंत्र में शामिल हो. उस षड्यंत्र के तहत किसी अवैधानिक कार्य को करने का इरादा होना चाहिए. कोर्ट ने खुदकुशी के लिए उकसाने के मुकदमे से वाराणसी के अंबेश मणि त्रिपाठी को बरी करते हुए उसके विरुद्ध चल रहे मुकदमे को रद्द कर दिया है. अंबेश मणि त्रिपाठी की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने याची के अधिवक्ता अभिनव गौर व अन्य को सुनकर दिया है.

याची पर आरोप है कि उसने युवती से शादी तय होने के बाद शादी करने से इनकार कर दिया. जिसकी वजह से लड़की ने खुदकुशी कर ली. लड़की के परिवार वालों ने अंबेश पर खुदकुशी के लिए उकसाने और दहेज मांगने का मुकदमा दर्ज कराया. इसमें पुलिस ने जांच के बाद आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर दिया. आरोप पत्र को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. कहा गया कि याची के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने का कोई अपराध नहीं बनता है. उस पर शादी से इनकार करने के अलावा और कोई आरोप नहीं है. मृतका के परिवार वालों के बयान और उसके सुसाइड नोट में भी ऐसा कुछ नहीं है. जिससे यह कहा जा सके कि उसने खुदकुशी के लिए उकसाया है.

दहेज मांगने का आरोप भी सिर्फ मृतका की मां ने लगाया है लेकिन उसके इन आरोपों की खुद उसके परिवार वालों के बयान और मृतका के सुसाइड नोट से पुष्टि नहीं होती है. कोर्ट ने कहा कि याची के विरुद्ध आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई साक्ष्य नहीं है. आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए जो तत्व आवश्यक है, वह याची पर लगाए गए आरोपों में नदारद हैं. कोर्ट ने उसके विरुद्ध वाराणसी की अदालत में चल रहे मुकदमे को रद्द कर दिया है.

इसे भी पढ़ें-अन्तर्जनपदीय ट्रांसफर में नियुक्ति प्राधिकारी का प्रमाणपत्र अनिवार्य नहींः हाईकोर्ट

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि महज शादी करने से इनकार कर देने से खुदकुशी के लिए उकसाने का अपराध गठित नहीं होता है. कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 और धारा 107 को साथ पढ़ने से यह स्पष्ट है कि खुदकुशी के लिए उकसाने के अपराध में पहली शर्त यह है कि व्यक्ति को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया जाए. जबकि दूसरी शर्त है कि इस कार्य को करने के लिए एक या उससे अधिक लोग ऐसे षड्यंत्र में शामिल हो. उस षड्यंत्र के तहत किसी अवैधानिक कार्य को करने का इरादा होना चाहिए. कोर्ट ने खुदकुशी के लिए उकसाने के मुकदमे से वाराणसी के अंबेश मणि त्रिपाठी को बरी करते हुए उसके विरुद्ध चल रहे मुकदमे को रद्द कर दिया है. अंबेश मणि त्रिपाठी की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने याची के अधिवक्ता अभिनव गौर व अन्य को सुनकर दिया है.

याची पर आरोप है कि उसने युवती से शादी तय होने के बाद शादी करने से इनकार कर दिया. जिसकी वजह से लड़की ने खुदकुशी कर ली. लड़की के परिवार वालों ने अंबेश पर खुदकुशी के लिए उकसाने और दहेज मांगने का मुकदमा दर्ज कराया. इसमें पुलिस ने जांच के बाद आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर दिया. आरोप पत्र को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. कहा गया कि याची के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने का कोई अपराध नहीं बनता है. उस पर शादी से इनकार करने के अलावा और कोई आरोप नहीं है. मृतका के परिवार वालों के बयान और उसके सुसाइड नोट में भी ऐसा कुछ नहीं है. जिससे यह कहा जा सके कि उसने खुदकुशी के लिए उकसाया है.

दहेज मांगने का आरोप भी सिर्फ मृतका की मां ने लगाया है लेकिन उसके इन आरोपों की खुद उसके परिवार वालों के बयान और मृतका के सुसाइड नोट से पुष्टि नहीं होती है. कोर्ट ने कहा कि याची के विरुद्ध आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई साक्ष्य नहीं है. आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए जो तत्व आवश्यक है, वह याची पर लगाए गए आरोपों में नदारद हैं. कोर्ट ने उसके विरुद्ध वाराणसी की अदालत में चल रहे मुकदमे को रद्द कर दिया है.

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