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बहस न करने के आपराधिक अपील को खारिज नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट - किशोर न्याय बोर्ड

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अपील दाखिल करने वाले की तरफ से बहस न करने के आपराधिक अपील को खारिज नहीं किया जा सकता है. दरअसल, एक मामले में अपीलार्थी की पुनरीक्षण याचिका को मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा ने यह आदेश दिया है. निचली अदालत ने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 101 के तहत आरोपी की अपील को बल न देने के कारण निरस्त कर दिया था.

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Published : Feb 10, 2022, 5:17 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अपील दाखिल करने वाले की तरफ से बहस न करने के आपराधिक अपील को खारिज नहीं किया जा सकता है. दरअसल, एक मामले में अपीलार्थी की पुनरीक्षण याचिका को मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा ने यह आदेश दिया है. निचली अदालत ने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 101 के तहत आरोपी की अपील को बल न देने के कारण निरस्त कर दिया था.मालूम हो कि किशोर न्याय बोर्ड ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 376 और 506 के तहत दोषी ठहराया था. दोष सिद्धि के खिलाफ अपीलीय कोर्ट में अपील दायर की गई थी. लेकिन अपील की सुनवाई पर बल नहीं दिया गया तो कोर्ट ने अपील निरस्त कर दिया था और दोष सिद्धि को बरकरार रखा. इसी आदेश को चुनौती दी गई थी.

हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता (याची) बिल्लू उर्फ आनंदी की दलील से सहमति व्यक्त की और हरियाणा राज्य बनाम जनक सिंह और गुरजंत सिंह बनाम पंजाब राज्य के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि आपराधिक अपील पर जोर अथवा बल न देने के आधार पर उसे खारिज नहीं किया जा सकता है.

इसे भी पढ़ें - अमनमणि को टिकट देने का विरोध, मधुमिता की बहन निधि और सारा की मां ने बसपा दफ्तर पर किया प्रदर्शन

मामले को कानून के अनुसार निपटाने के लिए अधीनस्थ न्यायालय को वापस भेज दिया. कोर्ट ने अपर सत्र न्यायाधीश को तीन महीने के भीतर अपील को मेरिट पर तय करने का निर्देश दिया है.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अपील दाखिल करने वाले की तरफ से बहस न करने के आपराधिक अपील को खारिज नहीं किया जा सकता है. दरअसल, एक मामले में अपीलार्थी की पुनरीक्षण याचिका को मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा ने यह आदेश दिया है. निचली अदालत ने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 101 के तहत आरोपी की अपील को बल न देने के कारण निरस्त कर दिया था.मालूम हो कि किशोर न्याय बोर्ड ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 376 और 506 के तहत दोषी ठहराया था. दोष सिद्धि के खिलाफ अपीलीय कोर्ट में अपील दायर की गई थी. लेकिन अपील की सुनवाई पर बल नहीं दिया गया तो कोर्ट ने अपील निरस्त कर दिया था और दोष सिद्धि को बरकरार रखा. इसी आदेश को चुनौती दी गई थी.

हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता (याची) बिल्लू उर्फ आनंदी की दलील से सहमति व्यक्त की और हरियाणा राज्य बनाम जनक सिंह और गुरजंत सिंह बनाम पंजाब राज्य के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि आपराधिक अपील पर जोर अथवा बल न देने के आधार पर उसे खारिज नहीं किया जा सकता है.

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मामले को कानून के अनुसार निपटाने के लिए अधीनस्थ न्यायालय को वापस भेज दिया. कोर्ट ने अपर सत्र न्यायाधीश को तीन महीने के भीतर अपील को मेरिट पर तय करने का निर्देश दिया है.

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