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बच्चों से ओरल सेक्स गंभीर अपराध नहींः इलाहाबाद हाईकोर्ट - oral sex

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि बच्चों से ओरल सेक्स गंभीर अपराध नहीं है. हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषी की सजा 10 साल से घटाकर 7 साल कर दी है.

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Published : Nov 22, 2021, 11:01 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बच्चों से ओरल सेक्स गंभीर अपराध नहीं है. बच्चे के साथ ओरल सेक्स के एक मामले में निचली अदालत से मिली सजा घटा दी है.

कोर्ट ने इस प्रकार के अपराध को पाक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय माना है, लेकिन कहा है कि यह कृत्य एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट या गंभीर यौन हमला नहीं है. लिहाजा ऐसे मामले में पॉक्सो एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती.

हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषी की 10 साल की कैद की सजा घटाकर 7 साल कर दी है. साथ ही 5 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है.

सोनू कुशवाहा ने सेशन कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा ने कुशवाहा की सजा के खिलाफ अपील पर यह फैसला सुनाया. सेशन कोर्ट ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) और धारा 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था.

अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या नाबालिग के मुंह में लिंग डालना और वीर्य गिराना पाक्सो एक्ट की धारा 5/6 या धारा 9/10 के दायरे में आएगी. फैसले में कहा गया कि यह दोनों धाराओं में से किसी के दायरे में नहीं आएगा, लेकिन यह पाक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय है.

ये भी पढ़ेंः पांच वर्षीय बच्ची से ओरल सेक्स करते हुए छेड़खानी की कोशिश, गिरफ्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि एक बच्चे के मुंह में लिंग डालना पेनेट्रेटिव यौन हमले की श्रेणी में आता है, जो यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पाक्सो) अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय है, परन्तु अधिनियम की धारा 6 के तहत नहीं.

मामले के अनुसार, सोनू कुशवाहा ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, झांसी द्वारा पारित निर्णय के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में आपराधिक अपील दायर की थी. दरअसल, अपीलकर्ता के खिलाफ मामला यह था कि वह शिकायतकर्ता के घर आया और उसके 10 साल के बेटे को साथ ले गया. उसे 20 रुपये देते हुए ओरल सेक्स किया था.

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बच्चों से ओरल सेक्स गंभीर अपराध नहीं है. बच्चे के साथ ओरल सेक्स के एक मामले में निचली अदालत से मिली सजा घटा दी है.

कोर्ट ने इस प्रकार के अपराध को पाक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय माना है, लेकिन कहा है कि यह कृत्य एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट या गंभीर यौन हमला नहीं है. लिहाजा ऐसे मामले में पॉक्सो एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती.

हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषी की 10 साल की कैद की सजा घटाकर 7 साल कर दी है. साथ ही 5 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है.

सोनू कुशवाहा ने सेशन कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा ने कुशवाहा की सजा के खिलाफ अपील पर यह फैसला सुनाया. सेशन कोर्ट ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) और धारा 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था.

अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या नाबालिग के मुंह में लिंग डालना और वीर्य गिराना पाक्सो एक्ट की धारा 5/6 या धारा 9/10 के दायरे में आएगी. फैसले में कहा गया कि यह दोनों धाराओं में से किसी के दायरे में नहीं आएगा, लेकिन यह पाक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि एक बच्चे के मुंह में लिंग डालना पेनेट्रेटिव यौन हमले की श्रेणी में आता है, जो यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पाक्सो) अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय है, परन्तु अधिनियम की धारा 6 के तहत नहीं.

मामले के अनुसार, सोनू कुशवाहा ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, झांसी द्वारा पारित निर्णय के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में आपराधिक अपील दायर की थी. दरअसल, अपीलकर्ता के खिलाफ मामला यह था कि वह शिकायतकर्ता के घर आया और उसके 10 साल के बेटे को साथ ले गया. उसे 20 रुपये देते हुए ओरल सेक्स किया था.

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