प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अहम आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि कितनी विपरीत परिस्थितियां क्यों न हों, जिला अदालत के न्याय के दरवाजे जनता की पहुंच से बाहर नहीं रख सकते. ऐसा करना न केवल पहले से जूझ रहे हाईकोर्ट पर बोझ बढ़ाना है, अपितु कोविड में आर्थिक संकट का सामना कर रहे लोगों को हाईकोर्ट आने का खर्च उठाने को विवश करना है. कोर्ट ने कहा कि जब पुलिस अपराधियों को पकड़कर रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर सकती हैं और वह जेल भेज सकते हैं, तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए जमानत अर्जी की सुनवाई के लिए अदालत क्यों नहीं बैठ सकती.
अलीगढ़ जिला अदालत में जमानत अर्जी दाखिल करने में असमर्थ याची ने सीधे इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर सुनवाई की मांग की है. कोर्ट ने याची को अपना आपराधिक इतिहास दाखिल करने का समय दिया है. राज्य सरकार की तरफ से आपत्ति की गई थी. अर्जी 19 मई को दाखिल की गई थी. जिसमें कहा गया कि अलीगढ़ जिला अदालत में कोरोना लॉकडाउन की वजह से सिर्फ ऑनलाइन वर्चुअल सुनवाई हो रही है. इस लिए जमानत अर्जी स्वीकार नहीं की.
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जिसके बाद याची की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर सुनवाई की मांग की. याचिका पर राज्य सरकार के वकील ने आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि याची ने एक ही केस का खुलासा किया है. जब कि उसके खिलाफ पांच आपराधिक केस हैं. कोर्ट ने याची को अगली सुनवाई पर उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक केसों का खुलासा करने का निर्देश दिया है. जस्टिस जे जे मुनीर की एकल पीठ ने फैजान की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये अहम आदेश दिया है. कोर्ट ने याची को दर्ज अपराधों का खुलासा करने का निर्देश दिया है.