प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि जब भी उनके समक्ष नाबालिग लड़कियों की सुरक्षा व संरक्षा का केस आए, वे जुवेनाइल जस्टिस (केयर एण्ड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) एक्ट 2015 के अन्तर्गत चीफ वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के मार्फत गर्ल्स चिल्ड्रेन होम में भेजें. कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में नाबालिग लड़कियों के लिए बना चिल्ड्रेन होम पर्याप्त नहीं है. सरकार ने अपने जवाबी हलफ़नामा में कोर्ट को आश्वस्त किया कि वह बच्चियों के लिए चिल्ड्रेन होम या तो खुद या एनजीओ के अधीन जल्दी खोलेगा.
यह आदेश जस्टिस एम एन भंडारी व जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने काजल व अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है. याचिका दाखिल कर सीजेएम, आगरा के 12 जनवरी 2018 के आदेश को चुनौती दी गई थी. मांग की गई थी कि याची आधार कार्ड के अनुसार बालिग है, इस कारण उसे पति के साथ रहने की अनुमति दी जाये. याची की शैक्षणिक सर्टिफिकेट के अनुसार जन्म तिथि 10 मई 2004 है. कहा गया था कि यदि पति के साथ भेजना सम्भव न हो तो उसे गर्ल्स चिल्ड्रेन होम में भेजा जाये.
सरकार ने अपने जवाबी हलफ़नामा में गर्ल्स चिल्ड्रेन होम का संख्या के अनुसार पर्याप्त न होने का जिक्र किया था. परन्तु कहा कि सरकार शीघ्र ही या तो खुद या एनजीओ के अधीन जल्द ही गर्ल्स चिल्ड्रेन होम खोलेगी. कोर्ट ने इस आधार पर याचिका को निस्तारित करते हुए कहा कि याची को उक्त 2015 के एक्ट के अन्तर्गत सीडब्ल्यूसी के मार्फत गर्ल्स चिल्ड्रेन होम भेजा जाये, ताकि एक्ट के तहत युक्तियुक्त आदेश पारित किया जा सके.
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