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फर्जी मार्कशीट के सहारे करते रहे नौकरी, अग्रिम जमानत अर्जी खारिज - फर्जी मार्कशीट के आधार पर नौकरी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फर्जी मार्कशीट के आधार पर 11 वर्ष से नौकरी कर रहे सहायक अध्यापक की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दिया है. सहायक अध्यापक पर आरोप है कि वह आगरा विश्वविद्यालय से बीएड की फर्जी मार्कशीट के आधार पर टीचर नियुक्त हुआ और वर्ष 2009 से पढ़ा रहा था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Jun 11, 2021, 10:07 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फर्जी मार्कशीट के आधार पर 11 वर्ष से प्राथमिक विद्यालय में नौकरी कर रहे सहायक अध्यापक की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि फर्जी मार्कशीट बनाने वाले रैकेट सामाजिक ढांचे को पंगु बना रहे हैं और शिक्षा पद्धति के जड़ों को खोखला कर नुकसान पहुंचा रहे हैं. सहायक अध्यापक पर आरोप है कि वह आगरा विश्वविद्यालय से बीएड की फर्जी मार्कशीट के आधार पर टीचर नियुक्त हुआ और वर्ष 2009 से पढ़ा रहा था. फर्जी मार्कशीट को लेकर इसके खिलाफ थाना- अहमदगढ, बुलंदशहर में एफआईआर दर्ज करायी गई है.

इसे भी पढ़ें- बाहुबली विधायक विजय मिश्रा की जमानत अर्जी खारिज

याची ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अग्रिम जमानत की मांग की थी. याची के वकील का कहना था कि इस मार्कशीट को पाने में उसका कोई दोष नहीं है. उसे नहीं मालूम था कि उसे फर्जी मार्कशीट दी गयी है, जबकि अग्रिम जमानत अर्जी का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता विनोद कान्त का कहना था कि जाच मे पता चला कि आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेजो ने 2005 मे गलत ढंग से बी एड की फर्जी डिग्री और मार्कशीट बांटी है. उसी वर्ष की डिग्री के आधार पर नियुक्त हुआ. वह यह नहीं कह सकता कि उसे फर्जी मार्कशीट का ज्ञान नहीं था.

याची सुनील कुमार की अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने कहा कि "याची कोर्ट में समर्पण करे और विवेचना में सहयोग करे." कोर्ट ने कहा कि "फर्जी मार्कशीट बनाने वालो के रैकेट में बिचौलियों, मास्टरमाइंड और लाभार्थियों की लंबी चेन है. इसके जड़ों तक जाने के लिए जांच जरूरी है. ऐसे मामलों में जांच के लिए कस्टडी कभी-कभी जरूरी हो जाता है."

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फर्जी मार्कशीट के आधार पर 11 वर्ष से प्राथमिक विद्यालय में नौकरी कर रहे सहायक अध्यापक की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि फर्जी मार्कशीट बनाने वाले रैकेट सामाजिक ढांचे को पंगु बना रहे हैं और शिक्षा पद्धति के जड़ों को खोखला कर नुकसान पहुंचा रहे हैं. सहायक अध्यापक पर आरोप है कि वह आगरा विश्वविद्यालय से बीएड की फर्जी मार्कशीट के आधार पर टीचर नियुक्त हुआ और वर्ष 2009 से पढ़ा रहा था. फर्जी मार्कशीट को लेकर इसके खिलाफ थाना- अहमदगढ, बुलंदशहर में एफआईआर दर्ज करायी गई है.

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याची ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अग्रिम जमानत की मांग की थी. याची के वकील का कहना था कि इस मार्कशीट को पाने में उसका कोई दोष नहीं है. उसे नहीं मालूम था कि उसे फर्जी मार्कशीट दी गयी है, जबकि अग्रिम जमानत अर्जी का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता विनोद कान्त का कहना था कि जाच मे पता चला कि आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेजो ने 2005 मे गलत ढंग से बी एड की फर्जी डिग्री और मार्कशीट बांटी है. उसी वर्ष की डिग्री के आधार पर नियुक्त हुआ. वह यह नहीं कह सकता कि उसे फर्जी मार्कशीट का ज्ञान नहीं था.

याची सुनील कुमार की अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने कहा कि "याची कोर्ट में समर्पण करे और विवेचना में सहयोग करे." कोर्ट ने कहा कि "फर्जी मार्कशीट बनाने वालो के रैकेट में बिचौलियों, मास्टरमाइंड और लाभार्थियों की लंबी चेन है. इसके जड़ों तक जाने के लिए जांच जरूरी है. ऐसे मामलों में जांच के लिए कस्टडी कभी-कभी जरूरी हो जाता है."

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