प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नैसर्गिक न्याय के हनन के मामले में अनुच्छेद 226 की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर याचिका की सुनवाई की जा सकती है. भले ही आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करने का वैकल्पिक उपचार प्राप्त हो. हाईकोर्ट ने कहा है कि कोर्ट वैकल्पिक उपचार उपलब्ध होने पर सुनवाई से इंकार भी कर सकती है अथवा सुनवाई भी कर सकती हैं. यह प्रत्येक केस के तथ्यों पर निर्भर होगा. वैकल्पिक उपचार की उपलब्धता याचिका की पोषणीयता पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती. यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने भारत मिंट एण्ड एलाइड केमिकल्स की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया.
हाईकोर्ट ने कहा कि यह कोई बाध्यकारी नियम नहीं है, बल्कि कोर्ट का विवेकाधिकार है. खंडपीठ ने जीएसटी कानून की धारा 75(4) के तहत टैक्स निर्धारण व पेनाल्टी लगाने से पहले सुनवाई का मौका नहीं देने को नैसर्गिक न्याय का उल्लघंन माना है और ब्याज सहित टैक्स व पेनाल्टी वसूली संबंधी आदेश रद कर दिया है. कोर्ट ने वाणिज्य विभाग बरेली को याची को सुनकर नये सिरे से आदेश पारित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने टैक्स विभाग के अधिकारियों के रवैये की आलोचना करते हुए 10 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है.
याची का कहना था कि बिना सुनवाई का अवसर दिए वसूली आदेश नैसर्गिक न्याय के खिलाफ है. सरकार की तरफ से कहा गया कि याची को आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करनी चाहिए थी. याचिका पोषणीय नहीं है. धारा 75(4) में स्पष्ट रूप से सुनवाई के लिखित अनुरोध पर या प्रतिकूल आदेश पर आदेश जारी करने से पहले सुनवाई का मौका दिया जाएगा. संयुक्त आयुक्त वाणिज्य कर विभाग ने जवाबी हलफनामे में कहा कि कर निर्धारण से पूर्व सुनवाई का मौका दिया जाना जरूरी नहीं है. इस पर कोर्ट ने कहा कि कानून में साफ लिखा है और सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई करने का आदेश दिया है. लगता है कि अधिकारियों ने कानून नहीं पढ़ा अथवा सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी समझ नहीं सके. सुप्रीम कोर्ट ने दर्जनों ऐसे मामलों का उल्लेख करते हुए कहा है कि वैकल्पिक उपचार उपलब्ध होने पर भी हाईकोर्ट अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर याचिका की सुनवाई कर सकता है. वैकल्पिक उपचार होने पर याचिका पर पूर्व रोक नहीं है,इसके कई अपवाद भी हैं. यह कोर्ट का विवेकाधिकार है.
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