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Allahabad High Court: चकबंदी अधिकारी के निलंबन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरठ के चकबंदी अधिकारी प्रभाकर का गलत आदेश पारित करने के कारण निलंबन करने के आदेश पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से इस मामले में जवाब तलब किया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Aug 15, 2021, 4:36 AM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरठ के चकबंदी अधिकारी प्रभाकर का गलत आदेश पारित करने के कारण निलंबन करने के आदेश पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से इस मामले में जवाब तलब किया है. प्रभाकर ने याचिका दाखिल कर 31 मार्च 2021 को पारित निलंबन आदेश को चुनौती दी थी. याचिका पर न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने सुनवाई की.

याची का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी और सहयोगी अधिवक्ता विभु राय का कहना था कि याची ने 3 सितंबर 2020 को एक आदेश पारित किया जो कि 19 जुलाई 2008 को पारित एक पक्षीय आदेश के संबंध में था. याची ने अपनी अर्ध न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक पक्षीय आदेश को रद्द कर दिया. इस पर विभाग ने यह कहते हुए कि याची द्वारा पारित आदेश से ग्रामसभा और प्रदेश सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ है और आदेश नियम विरुद्ध है याची को निलंबित कर दिया.

अधिवक्ता का तर्क था की सुप्रीम कोर्ट ने भीकाजी नागरकर केस में कहा है कि यदि अर्ध न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करने वाले अधिकारियों द्वारा कानून में की गई गलतियों को कदाचरण माना जाएगा तो कोई भी अधिकारी स्वतंत्र मस्तिष्क से आदेश पारित नहीं कर सकेगा. कोर्ट ने मामले को भी विचारणीय मानते हुए प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है और निलंबन आदेश पर रोक लगा दी है.

इसे भी पढे़ं- Allahabad High Court: असिस्टेंट प्रोफेसर चयन मामले में हाईकोर्ट में जवाब तलब

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरठ के चकबंदी अधिकारी प्रभाकर का गलत आदेश पारित करने के कारण निलंबन करने के आदेश पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से इस मामले में जवाब तलब किया है. प्रभाकर ने याचिका दाखिल कर 31 मार्च 2021 को पारित निलंबन आदेश को चुनौती दी थी. याचिका पर न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने सुनवाई की.

याची का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी और सहयोगी अधिवक्ता विभु राय का कहना था कि याची ने 3 सितंबर 2020 को एक आदेश पारित किया जो कि 19 जुलाई 2008 को पारित एक पक्षीय आदेश के संबंध में था. याची ने अपनी अर्ध न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक पक्षीय आदेश को रद्द कर दिया. इस पर विभाग ने यह कहते हुए कि याची द्वारा पारित आदेश से ग्रामसभा और प्रदेश सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ है और आदेश नियम विरुद्ध है याची को निलंबित कर दिया.

अधिवक्ता का तर्क था की सुप्रीम कोर्ट ने भीकाजी नागरकर केस में कहा है कि यदि अर्ध न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करने वाले अधिकारियों द्वारा कानून में की गई गलतियों को कदाचरण माना जाएगा तो कोई भी अधिकारी स्वतंत्र मस्तिष्क से आदेश पारित नहीं कर सकेगा. कोर्ट ने मामले को भी विचारणीय मानते हुए प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है और निलंबन आदेश पर रोक लगा दी है.

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