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राज्य औद्योगिक विकास निगम को मिली राहत, सिविल कोर्ट के मुआवजा जमा करने के आदेश पर लगी रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य औद्योगिक विकास निगम को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने सिविल कोर्ट के मुआवजा जमा करने के आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है.

allahabad high court
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Jan 8, 2021, 3:45 AM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र राज्य औद्योगिक विकास निगम को बड़ी राहत दी है. भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 28 ए के तहत सिविल कोर्ट के किसानों को अधिक मुआवजा देने के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है और किसानों को नोटिस जारी करते हुए राज्य सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति एम एन भंडारी तथा न्यायमूर्ति आर आर अग्रवाल की खंडपीठ ने उप्र राज्य औद्योगिक विकास निगम गाजियाबाद की याचिका पर दिया है.

याची निगम का कहना है कि भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 18 के तहत संदर्भित किए बगैर सिविल कोर्ट ने धारा 28 ए की किसानों की अर्जी स्वीकार कर ली. बिना याची को सुने आदेश जारी किया गया है. याची का यह भी कहना है कि निगम के लिए 1962 में जमीन अधिग्रहीत की गई थी और धारा 28 में संशोधन 1984 में किया गया है. इस संशोधित कानून को वर्षों पहले किए गए अधिग्रहण पर लागू नही किया जा सकता है. सिविल कोर्ट ने धारा 28ए की अर्जी की पोषणीयता पर विचार किए बगैर आदेश जारी किया है, जो विधि सम्मत नहीं है. कोर्ट ने इसे विचारणीय माना और सिविल कोर्ट के 15 जुलाई 2017 को पारित आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.

इससे पहले भी 2017 में जिलाधिकारी गाजियाबाद ने निगम के प्रबंध निदेशक को किसानों की धारा 28 ए की अर्जी पर मुआवजा जमा करने का निर्देश दिया था. उस आदेश पर भी कोर्ट ने रोक लगा रखी है, जिसके तहत जिलाधिकारी ने प्रबंध निदेशक को 30 करोड़ 94 लाख, 86 हजार 808 एवं 1 अरब, 14 करोड़, 71 लाख, 55 हजार, 108 रुपये जमा करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने दोनों याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए पेश करने का निर्देश दिया है.

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र राज्य औद्योगिक विकास निगम को बड़ी राहत दी है. भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 28 ए के तहत सिविल कोर्ट के किसानों को अधिक मुआवजा देने के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है और किसानों को नोटिस जारी करते हुए राज्य सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति एम एन भंडारी तथा न्यायमूर्ति आर आर अग्रवाल की खंडपीठ ने उप्र राज्य औद्योगिक विकास निगम गाजियाबाद की याचिका पर दिया है.

याची निगम का कहना है कि भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 18 के तहत संदर्भित किए बगैर सिविल कोर्ट ने धारा 28 ए की किसानों की अर्जी स्वीकार कर ली. बिना याची को सुने आदेश जारी किया गया है. याची का यह भी कहना है कि निगम के लिए 1962 में जमीन अधिग्रहीत की गई थी और धारा 28 में संशोधन 1984 में किया गया है. इस संशोधित कानून को वर्षों पहले किए गए अधिग्रहण पर लागू नही किया जा सकता है. सिविल कोर्ट ने धारा 28ए की अर्जी की पोषणीयता पर विचार किए बगैर आदेश जारी किया है, जो विधि सम्मत नहीं है. कोर्ट ने इसे विचारणीय माना और सिविल कोर्ट के 15 जुलाई 2017 को पारित आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.

इससे पहले भी 2017 में जिलाधिकारी गाजियाबाद ने निगम के प्रबंध निदेशक को किसानों की धारा 28 ए की अर्जी पर मुआवजा जमा करने का निर्देश दिया था. उस आदेश पर भी कोर्ट ने रोक लगा रखी है, जिसके तहत जिलाधिकारी ने प्रबंध निदेशक को 30 करोड़ 94 लाख, 86 हजार 808 एवं 1 अरब, 14 करोड़, 71 लाख, 55 हजार, 108 रुपये जमा करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने दोनों याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए पेश करने का निर्देश दिया है.

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