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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई व बेटे को दी आंशिक राहत - minister Ramveer Upadhyay

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय (Allahabad High Court ) के भाई, बेटे को आंशिक राहत देते हुए 30 सितंबर तक सरेंडर करने पर गिरफ्तार न करने का आदेश दिया है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई व बेटे को दिया आंशिक राहत
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Published : Sep 19, 2022, 10:12 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court ) ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई व बेटे सहित 5 लोगों को जानलेवा हमले के मामले में हाथरस जिला अदालत द्वारा जारी गैर जमानती वारंट के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि यदि 30 सितंबर तक यह लोग सरेंडर कर देते हैं तो इनको गिरफ्तार न किया जाए तथा बांड ले कर जमानत पर रिहा कर दिया जाए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि याची गण ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमे से उनमोचन के लिए अर्जी दे सकते हैं. जिस पर ट्रायल कोर्ट 3 माह के भीतर निर्णय ले. यदि ट्रायल कोर्ट का निर्णय याची गण के खिलाफ आता है तो वह 15 दिन के भीतर सरेंडर कर के ट्रायल का सामना करें.

विनोद उपाध्याय व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने दिया. याचिका में 25 मार्च 2021 को जारी समन आदेश व 1 अप्रैल 2022 को जारी गैर जमानती वारंट को चुनौती दी गई थी. याचीगण ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पुलिस की फाइनल रिपोर्ट खारिज करने के फैसले को भी चुनौती दी थी.

याची के अधिवक्ता का कहना था कि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान 8 फरवरी 2017 को उनके जुलूस पर फायरिंग हुई जिसमें पुष्पेंद्र नाम के व्यक्ति की मौत हो गई. इसमें तत्कालीन समाजवादी पार्टी के एमएलए देवेंद्र अग्रवाल, अतुल अग्रवाल, चंदन अग्रवाल, राकेश अग्रवाल और पुनीत गुप्ता सहित 25 30 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई. एमएलए पक्ष की ओर से इस मुकदमे को कमजोर करने व क्रॉस एफ आई आर दर्ज कराने की नीयत से रिंकू ठाकुर की सीएचसी सेफू से फर्जी मेडिकल रिपोर्ट बनवाई गई. जिसमें दिखाया गया कि उसके पैर में गोली लगी है. रिंकू को आगे की जांच के लिए जिला चिकित्सालय आगरा भेज दिया गया. जहां से वह फरार हो गया. बाद में उसे गिरफ्तार कर अगले दिन दोबारा मेडिकल जांच के लिए सीएससी सेफू ले जाया गया.

वहां पर उसी डॉक्टर ने जिस ने पहले दिन मेडिकल जांच की थी दोबारा मेडिकल जांच में रिपोर्ट दी कि रिंकू ठाकुर के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई. इस दौरान क्रॉस मुकदमा दर्ज कराने के लिए रिंकू के पिता ने न्यायालय के समक्ष 156( 3) के तहत अर्जी दाखिल की जिस पर कोर्ट के आदेश से सेफू थाने में शशिकांत शर्मा, चिंटू गौतम, रामेश्वर उपाध्याय, विनोद उपाध्याय व चिराग वीर उपाध्याय सहित 40 50 लोगों अज्ञात लोगों के खिलाफ जानलेवा हमला करने, जान से मारने की धमकी देने व एससी एसटी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस मुकदमे में पुलिस ने जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी जिसके खिलाफ दाखिल प्रोटेस्ट अर्जी पर कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट रद्द कर अग्रिम विवेचना का आदेश दिया. अग्रिम विवेचना के बाद पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट को फर्जी पाया तथा कई डॉक्टरों का बयान लेने के बाद दोबारा फाइनल रिपोर्ट लगा दी. ट्रायल कोर्ट ने इसे भी खारिज करते हुए याचिगण को समन जारी किया हैं.

दूसरी ओर प्रतिपक्षी के अधिवक्ता का कहना था कि रामवीर उपाध्याय तत्कालीन कैबिनेट मंत्री व प्रभावशाली नेता थे इसलिए पुलिस उनके दबाव में काम कर रही थी. राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस ने मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी. रिंकू ठाकुर की मेडिकल रिपोर्ट फर्जी नहीं है क्योंकि दूसरे दिन की जांच में डॉक्टर ने लिखा है कि कोई नई चोट नहीं पाई गई. जबकि पहले दिन की जांच में उन्होंने बुलेट इंजरी का जिक्र किया है.

यह भी पढ़ें-मजदूरी मांगने पर मालिक ने मजदूर की धारदार हथियार से नाक काटी

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि मामला अभी बहुत शुरुआती स्तर पर है और इस स्थिति में कोई भी निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा. हालांकि अदालत ने इस बात पर सवाल उठाया कि 40 से 50 लोगों द्वारा मिलकर एक व्यक्ति को जातिसूचक शब्दों से अपमानित करने की बात अतिरंजित कर लगती है. यह एससी एसटी एक्ट के प्रावधानों का दुरुपयोग हो सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि रिंकू ठाकुर की मेडिकल रिपोर्ट ट्रायल का विषय है क्योंकि सीएससी के जिस डॉक्टर ने पहले बुलेट इंजरी होने की बात लिखी है. उसी ने दूसरे दिन अपनी जांच में कहा है कि कोई चोट नहीं पाई गई. कोर्ट ने कहा कि इस स्तर पर कोई भी निष्कर्ष निकालना या टिप्पणी करना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे मुकदमे का ट्रायल प्रभावित हो सकता है.

यह भी पढ़ें- डेटिंग साइट से लड़की फंसाकर फ्लैट में बुलाकर किया रेप, गिरफ्तार

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court ) ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई व बेटे सहित 5 लोगों को जानलेवा हमले के मामले में हाथरस जिला अदालत द्वारा जारी गैर जमानती वारंट के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि यदि 30 सितंबर तक यह लोग सरेंडर कर देते हैं तो इनको गिरफ्तार न किया जाए तथा बांड ले कर जमानत पर रिहा कर दिया जाए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि याची गण ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमे से उनमोचन के लिए अर्जी दे सकते हैं. जिस पर ट्रायल कोर्ट 3 माह के भीतर निर्णय ले. यदि ट्रायल कोर्ट का निर्णय याची गण के खिलाफ आता है तो वह 15 दिन के भीतर सरेंडर कर के ट्रायल का सामना करें.

विनोद उपाध्याय व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने दिया. याचिका में 25 मार्च 2021 को जारी समन आदेश व 1 अप्रैल 2022 को जारी गैर जमानती वारंट को चुनौती दी गई थी. याचीगण ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पुलिस की फाइनल रिपोर्ट खारिज करने के फैसले को भी चुनौती दी थी.

याची के अधिवक्ता का कहना था कि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान 8 फरवरी 2017 को उनके जुलूस पर फायरिंग हुई जिसमें पुष्पेंद्र नाम के व्यक्ति की मौत हो गई. इसमें तत्कालीन समाजवादी पार्टी के एमएलए देवेंद्र अग्रवाल, अतुल अग्रवाल, चंदन अग्रवाल, राकेश अग्रवाल और पुनीत गुप्ता सहित 25 30 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई. एमएलए पक्ष की ओर से इस मुकदमे को कमजोर करने व क्रॉस एफ आई आर दर्ज कराने की नीयत से रिंकू ठाकुर की सीएचसी सेफू से फर्जी मेडिकल रिपोर्ट बनवाई गई. जिसमें दिखाया गया कि उसके पैर में गोली लगी है. रिंकू को आगे की जांच के लिए जिला चिकित्सालय आगरा भेज दिया गया. जहां से वह फरार हो गया. बाद में उसे गिरफ्तार कर अगले दिन दोबारा मेडिकल जांच के लिए सीएससी सेफू ले जाया गया.

वहां पर उसी डॉक्टर ने जिस ने पहले दिन मेडिकल जांच की थी दोबारा मेडिकल जांच में रिपोर्ट दी कि रिंकू ठाकुर के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई. इस दौरान क्रॉस मुकदमा दर्ज कराने के लिए रिंकू के पिता ने न्यायालय के समक्ष 156( 3) के तहत अर्जी दाखिल की जिस पर कोर्ट के आदेश से सेफू थाने में शशिकांत शर्मा, चिंटू गौतम, रामेश्वर उपाध्याय, विनोद उपाध्याय व चिराग वीर उपाध्याय सहित 40 50 लोगों अज्ञात लोगों के खिलाफ जानलेवा हमला करने, जान से मारने की धमकी देने व एससी एसटी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस मुकदमे में पुलिस ने जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी जिसके खिलाफ दाखिल प्रोटेस्ट अर्जी पर कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट रद्द कर अग्रिम विवेचना का आदेश दिया. अग्रिम विवेचना के बाद पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट को फर्जी पाया तथा कई डॉक्टरों का बयान लेने के बाद दोबारा फाइनल रिपोर्ट लगा दी. ट्रायल कोर्ट ने इसे भी खारिज करते हुए याचिगण को समन जारी किया हैं.

दूसरी ओर प्रतिपक्षी के अधिवक्ता का कहना था कि रामवीर उपाध्याय तत्कालीन कैबिनेट मंत्री व प्रभावशाली नेता थे इसलिए पुलिस उनके दबाव में काम कर रही थी. राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस ने मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी. रिंकू ठाकुर की मेडिकल रिपोर्ट फर्जी नहीं है क्योंकि दूसरे दिन की जांच में डॉक्टर ने लिखा है कि कोई नई चोट नहीं पाई गई. जबकि पहले दिन की जांच में उन्होंने बुलेट इंजरी का जिक्र किया है.

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कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि मामला अभी बहुत शुरुआती स्तर पर है और इस स्थिति में कोई भी निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा. हालांकि अदालत ने इस बात पर सवाल उठाया कि 40 से 50 लोगों द्वारा मिलकर एक व्यक्ति को जातिसूचक शब्दों से अपमानित करने की बात अतिरंजित कर लगती है. यह एससी एसटी एक्ट के प्रावधानों का दुरुपयोग हो सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि रिंकू ठाकुर की मेडिकल रिपोर्ट ट्रायल का विषय है क्योंकि सीएससी के जिस डॉक्टर ने पहले बुलेट इंजरी होने की बात लिखी है. उसी ने दूसरे दिन अपनी जांच में कहा है कि कोई चोट नहीं पाई गई. कोर्ट ने कहा कि इस स्तर पर कोई भी निष्कर्ष निकालना या टिप्पणी करना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे मुकदमे का ट्रायल प्रभावित हो सकता है.

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