प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बिजली चोरी के मामले में अधिशासी अभियंता को चोरी की गई बिजली का मूल्यांकन कर नोटिस जारी करने और वसूली करने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा है कि यूपी इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में स्पेशल कोर्ट के गठन का प्रावधान है. मगर, बिजली की चोरी के मामलों से निपटने की विस्तृत प्रक्रिया यूपी इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कोड में दी गई है. न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करेलाबाग प्रयागराज की आयशा बेगम की याचिका पर सुनवाई करते हुए कही. बिजली विभाग के अधिवक्ता नरेंद्र कुमार तिवारी ने याचिका का प्रतिवाद किया.
याची के परिसर में बिजली विभाग की टीम ने छापा मारकर बिजली चोरी करते हुए पकड़ा था. इसके बाद अधिशासी अभियंता ने प्रोविजनल मूल्यांकन आदेश जारी कर याची से 15 दिन के भीतर उसका जवाब मांगा. छापे में पाया गया कि मेन लाइन को टैप कर और मीटर बायपास करके बिजली चलाई जा रही थी. याची के अधिवक्ता का कहना था कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट और इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कोड में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे अधिशासी अभियंता को रिकवरी नोटिस जारी करने का अधिकार प्राप्त हो. ऐसे मामलों के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन का गठन का प्रावधान है, जो कि उपभोक्ता की सिविल देनदारी को तय कर सकता है. अधिशासी अभियंता का आदेश क्षेत्राधिकार से परे है. इसलिए उसे रद्द किया जाए.
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इस पर कोर्ट ने कहा कि हालांकि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में स्पेशल कोर्ट के गठन का प्रावधान है. मगर, बिजली चोरी के मामलों से निपटने की विस्तृत प्रक्रिया यूपी इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कोड में दी गई है. उसमें मूल्यांकन अधिकारी को यह अधिकार दिया गया है कि यदि उसे लगता है कि बिजली चोरी की गई है तो वह एक प्रोविजनल मूल्यांकन बिल जारी कर सकता है. साथ ही उपभोक्ता को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया जाएगा. जिसका उसे 15 दिन में जवाब दाखिल करना होगा. उसके बाद यदि प्राधिकृत अधिकारी को लगता है कि बिजली चोरी की गई है तो वह उपभोग की गई बिजली का मूल्यांकन एक्ट में दिए फार्मूले के आधार पर करने के बाद उपभोक्ता से बिजली का बिल वसूल कर सकता है. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याची को नियत समय में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
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