प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बैंक की नीलामी में बोली राशि के भुगतान पर विक्रय प्रमाणपत्र जारी होने के बाद ऐसा कोई कानून नहीं, जिससे प्रमाणपत्र निरस्त किया जा सके. बैंक का दायित्व है कि वह खरीदार को नीलाम भवन का कब्जा सौंपे. कोर्ट ने कहा कि जमीन खरीदने वाले को भी धारा 14 के तहत कब्जा लेने का दावा करने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि बैंक जबरन कब्जा जमाये कर्जदार से कब्जा वापस लेने की कार्यवाही की है. प्रक्रियात्मक देरी के कारण खरीदार को कब्जा नहीं दिया जा सका है.
कोर्ट ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया वाराणसी को निर्देश दिया है कि वह एक डीएम वित्त एवं राजस्व को एक हफ्ते में कब्जा दिलाने की अर्जी दे. इसे सुनकर वह 30 दिनों में आदेश दें और इसके 30 दिन के भीतर बैंक को कब्जा दिलाने की कार्यवाही पूरी की जाये. कोर्ट ने कहा कि यदि अन्य किसी का दावा भी है तो उसे भी 30 दिनों में तय किया जाये.
कोर्ट ने कहा कि कर्जदार की आपत्ति पर किसी वजह से फैसला नहीं हो पाता तो बैंक याची की जमा राशि का ब्याज सहित वापस करे. यह आदेश न्यायमूर्ति नाहिद आरा मुनीस तथा न्यायमूर्ति एसडी सिंह की खंडपीठ ने अंशु अग्रवाल की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है. याचिका पर राज्य सरकार के अधिवक्ता बीपी सिंह कछवाहा ने पक्ष रखा.
गौरतलब है कि इंदु भूषण जायसवाल और कलावती ने 7 लाख 79 हजार 279 रुपये का 30 नवंबर 2005 को गृह लोन लिया. लोन अदा नहीं कर सके तो बैंक ने 9 जनवरी 18 को ई-नीलामी की. याची की अधिकतम बोली 29.61 लाख की बोली मंजूर की गयी. पैसा जमा कर दिया गया और 20 जनवरी 18 को विक्रय प्रमाणपत्र जारी किया गया. लेकिन, न बैनामा किया, न ही वाराणसी के खजुरी गांव के मकान नं 8/335 का कब्जा सौंपा गया. इस पर याची ने 12 फीसदी ब्याज सहित जमा राशि वापस करने की मांग की और बैंक पर गुमराह करने का आरोप लगाया.
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बैंक का कहना था कि कोरोना लॉकडाउन के कारण कर्जदार ने बैंक का ताला तोड़ कर अवैध कब्जा कर लिया है, जिसकी एफआईआर दर्ज करायी गयी है और कब्जा वापसी की कार्यवाही चल रही है. याची को भी कब्जा लेने की कार्यवाही का अधिकार है. बैंक ने गुमराह नहीं किया है. प्रक्रियात्मक देरी हो रही है.
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