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हाईकोर्ट ने विवाहित महिला को लिव इन में रहने पर संरक्षण देने से किया इंकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने लिव इन रिलेशन में रह रही शादीशुदा महिला को संरक्षण देने से इंकार कर दिया है. साथ ही महिला की याचिका खारिज करते हुए जुर्माना भी लगाया है.

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Published : Jun 17, 2021, 10:36 PM IST

Allahabad High Court
इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने लिव इन रिलेशन में रह रही पहले से शादीशुदा महिला को संरक्षण देने से इंकार करते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी है. इसके साथ ही अदालत ने पांच हजार रुपये हर्जाना भी लगाया है. यह आदेश न्यायमूर्ति केजे ठाकर तथा न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने दिया है. कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि क्या हम ऐसे लोगों को संरक्षण देने का आदेश दे सकते हैं, जिन्होंने दंड संहिता व हिंदू विवाह अधिनियम का खुला उल्लंघन किया हो? अनुच्छेद 21 सभी नागारिकों को जीवन की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. लेकिन यह स्वतंत्रता कानून के दायरे में होनी चाहिए, तभी संरक्षण मिल सकता है.

यह भी पढ़ें-लखनऊ हाईकोर्ट: अनिवार्य सेवानिवृति की प्रक्रिया तय करने को लेकर दाखिल याचिका खारिज

अलीगढ़ की गीता की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट के समक्ष दलील दिया कि याची अपनी मर्जी से पति को छोड़ कर दूसरे व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही है. पति और उसके परिवार के लोग उसके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं. इसलिए उनको ऐसा करने से रोका जाए और याची को सुरक्षा दी जाए. इस पर कोर्ट ने कहा कि याची वैधानिक रूप से विवाहित महिला है. जो किसी भी कारण से वह अपने पति से अलग होकर दूसरे व्यक्ति के साथ रह रही है. क्या इस स्थिति में उसे अनुच्छेद 21 का लाभ दिया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि यदि महिला के पति के खिलाफ अप्राकृतिक कृत्य के खिलाफ कभी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई है. कोर्ट ने संरक्षण देने से इंकार करते हुए याची पर पांच हजार रुपये हर्जाना लगाया और हर्जाने की रकम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने का निर्देश दिया है.

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने लिव इन रिलेशन में रह रही पहले से शादीशुदा महिला को संरक्षण देने से इंकार करते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी है. इसके साथ ही अदालत ने पांच हजार रुपये हर्जाना भी लगाया है. यह आदेश न्यायमूर्ति केजे ठाकर तथा न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने दिया है. कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि क्या हम ऐसे लोगों को संरक्षण देने का आदेश दे सकते हैं, जिन्होंने दंड संहिता व हिंदू विवाह अधिनियम का खुला उल्लंघन किया हो? अनुच्छेद 21 सभी नागारिकों को जीवन की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. लेकिन यह स्वतंत्रता कानून के दायरे में होनी चाहिए, तभी संरक्षण मिल सकता है.

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अलीगढ़ की गीता की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट के समक्ष दलील दिया कि याची अपनी मर्जी से पति को छोड़ कर दूसरे व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही है. पति और उसके परिवार के लोग उसके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं. इसलिए उनको ऐसा करने से रोका जाए और याची को सुरक्षा दी जाए. इस पर कोर्ट ने कहा कि याची वैधानिक रूप से विवाहित महिला है. जो किसी भी कारण से वह अपने पति से अलग होकर दूसरे व्यक्ति के साथ रह रही है. क्या इस स्थिति में उसे अनुच्छेद 21 का लाभ दिया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि यदि महिला के पति के खिलाफ अप्राकृतिक कृत्य के खिलाफ कभी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई है. कोर्ट ने संरक्षण देने से इंकार करते हुए याची पर पांच हजार रुपये हर्जाना लगाया और हर्जाने की रकम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने का निर्देश दिया है.

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