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जमानत के लिए अभियुक्त का भौतिक अभिरक्षा में होना जरूरी नहीं: हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court decision) ने जितेंद्र कुमार सिंह की जमानत अर्जी मामले पर अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि जमानत के लिए अभियुक्त का भौतिक अभिरक्षा में होना जरूरी नहीं है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Oct 3, 2022, 10:30 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court decision) ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि जमानत का आवेदन करते समय अभियुक्त का भौतिक रूप से अभिरक्षा में होना अनिवार्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि यदि अभियुक्त भौतिक अभिरक्षा से बाहर है, लेकिन उसकी स्वतंत्रता न्यायालय द्वारा अधिरोपित शर्तों के अधीन है. अर्थात अभियुक्त कंस्ट्रक्टिव कस्टडी में है, तो वह नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकता है. नोएडा के जितेंद्र उर्फ जितेंद्र कुमार सिंह की जमानत अर्जी पर यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ विद्यार्थी ने वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी के तर्कों को सुनने के बाद दिया.

आवेदक जितेंद्र के खिलाफ नोएडा के सेक्टर 39 थाने में 2 मई 2021 को आईपीसी की धारा 420 और 120 बी के तहत सीएमएस इन्फो सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से प्राथमिकी दर्ज कराई है. जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान कंपनी के अधिवक्ता ने प्रारंभिक आपत्ति करते हुए कहा आवेदक 21 जून 2021 को गिरफ्तार किया गया और 25 जून 2021 को पैरोल पर रिहा हो गया. क्योंकि आवेदक वर्तमान में अभिरक्षा में नहीं है इसलिए उसकी जमानत अर्जी पोषणीय नहीं है. अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय निरंजन सिंह बनाम प्रभाकर राजाराम खरोटे और संदीप कुमार बाफना बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र का उदाहरण प्रस्तुत किया.

कोर्ट ने कई न्यायिक निर्णयों का अवलोकन करने के बाद कहा कि जमानत का आवेदन करते समय अभियुक्त का अभिरक्षा में होना जरूरी है मगर उसका भौतिक रूप से अभिरक्षा में होना अनिवार्य नहीं है. यदि अभियुक्त पैरोल पर या अंतरिम जमानत पर है तो इसका अर्थ है कि वह न्यायालय द्वारा अधिरोपित शर्तों के अधीन है. इसलिए यह माना जाएगा कि अभियुक्त न्यायालय की कंस्ट्रक्टिव कस्टडी में है. इस स्थिति में उसका भौतिक रूप से अभिरक्षा में होना जरूरी नहीं है. कोर्ट ने आपत्ति खारिज कर दी.

मामले के अनुसार शिकायतकर्ता कंपनी इंफोसिस्टम प्राइवेट लिमिटेड बैंक ऑफ बड़ौदा के एटीएम में पैसे डालने और निकालने का काम करती है. कंपनी की ओर से 2 मई 2021 को तीन कर्मचारियों दीपेंद्र कुमार, सूरज सिंह और आयुष के खिलाफ बी एन ए मशीन से रकम निकालकर के लगभग 26 लाख 63 हजार पांच सौ रुपए के गबन करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई गई. आवेदक पर आरोप है कि निकाली गई रकम का कुछ हिस्सा उसके बैंक अकाउंट में जमा किया गया.

कोर्ट ने कहा कि आवेदक ना तो कंपनी का कर्मचारी है और ना ही बैंक का. बी एन ए मशीन तक उसकी पहुंच नहीं है. उसका नाम भी प्राथमिकी में दर्ज नहीं है, बल्कि एक अभियुक्त द्वारा दिए गए बयान के बाद सामने आया. आवेदक पर लगाए गए आरोपों से किसी अपराध का होना नहीं पाया जाता है. कोर्ट ने जितेंद्र की जमानत अर्जी मंजूर करते हुए नियमित जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.

यह भी पढ़ें: जेई को पुरानी पेंशन स्कीम में शामिल करने के आदेश पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court decision) ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि जमानत का आवेदन करते समय अभियुक्त का भौतिक रूप से अभिरक्षा में होना अनिवार्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि यदि अभियुक्त भौतिक अभिरक्षा से बाहर है, लेकिन उसकी स्वतंत्रता न्यायालय द्वारा अधिरोपित शर्तों के अधीन है. अर्थात अभियुक्त कंस्ट्रक्टिव कस्टडी में है, तो वह नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकता है. नोएडा के जितेंद्र उर्फ जितेंद्र कुमार सिंह की जमानत अर्जी पर यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ विद्यार्थी ने वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी के तर्कों को सुनने के बाद दिया.

आवेदक जितेंद्र के खिलाफ नोएडा के सेक्टर 39 थाने में 2 मई 2021 को आईपीसी की धारा 420 और 120 बी के तहत सीएमएस इन्फो सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से प्राथमिकी दर्ज कराई है. जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान कंपनी के अधिवक्ता ने प्रारंभिक आपत्ति करते हुए कहा आवेदक 21 जून 2021 को गिरफ्तार किया गया और 25 जून 2021 को पैरोल पर रिहा हो गया. क्योंकि आवेदक वर्तमान में अभिरक्षा में नहीं है इसलिए उसकी जमानत अर्जी पोषणीय नहीं है. अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय निरंजन सिंह बनाम प्रभाकर राजाराम खरोटे और संदीप कुमार बाफना बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र का उदाहरण प्रस्तुत किया.

कोर्ट ने कई न्यायिक निर्णयों का अवलोकन करने के बाद कहा कि जमानत का आवेदन करते समय अभियुक्त का अभिरक्षा में होना जरूरी है मगर उसका भौतिक रूप से अभिरक्षा में होना अनिवार्य नहीं है. यदि अभियुक्त पैरोल पर या अंतरिम जमानत पर है तो इसका अर्थ है कि वह न्यायालय द्वारा अधिरोपित शर्तों के अधीन है. इसलिए यह माना जाएगा कि अभियुक्त न्यायालय की कंस्ट्रक्टिव कस्टडी में है. इस स्थिति में उसका भौतिक रूप से अभिरक्षा में होना जरूरी नहीं है. कोर्ट ने आपत्ति खारिज कर दी.

मामले के अनुसार शिकायतकर्ता कंपनी इंफोसिस्टम प्राइवेट लिमिटेड बैंक ऑफ बड़ौदा के एटीएम में पैसे डालने और निकालने का काम करती है. कंपनी की ओर से 2 मई 2021 को तीन कर्मचारियों दीपेंद्र कुमार, सूरज सिंह और आयुष के खिलाफ बी एन ए मशीन से रकम निकालकर के लगभग 26 लाख 63 हजार पांच सौ रुपए के गबन करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई गई. आवेदक पर आरोप है कि निकाली गई रकम का कुछ हिस्सा उसके बैंक अकाउंट में जमा किया गया.

कोर्ट ने कहा कि आवेदक ना तो कंपनी का कर्मचारी है और ना ही बैंक का. बी एन ए मशीन तक उसकी पहुंच नहीं है. उसका नाम भी प्राथमिकी में दर्ज नहीं है, बल्कि एक अभियुक्त द्वारा दिए गए बयान के बाद सामने आया. आवेदक पर लगाए गए आरोपों से किसी अपराध का होना नहीं पाया जाता है. कोर्ट ने जितेंद्र की जमानत अर्जी मंजूर करते हुए नियमित जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.

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