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मारपीट में मौत के मामले में मिली सजा को हाईकोर्ट ने किया कम, कहा- अचानक हुए झगड़े से हुई मौत हत्या नहीं - इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि अचानक हुए झगड़े के दौरान हुई हत्या को हत्या नहीं माना जा सकता है. इसे गैर इरादत हत्या का मामला माना जाएगा.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Sep 22, 2022, 8:27 AM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अचानक हुए झगड़े के दौरान हुई हत्या की घटना को आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या नहीं माना जा सकता है. इसे आईपीसी की धारा 304 ए के तहत गैर इरादतन हत्या का मामला माना जाएगा. हाईकोर्ट ने हत्या के जुर्म में गाजियाबाद के सलीम और फिरोज की उम्रकैद की सजा को कम करने का निर्णय सुनाया.

हाईकोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में हत्या की वजह अचानक हुआ झगड़ा था. अभियुक्त ने गुस्से में आकर वार किया, जिससे मौत हुई. परिस्थिति का फायदा उठाते हुए क्रूरतापूर्ण व्यवहार नहीं किया, न ही वह योजनाबद्ध तरीके से हत्या के इरादे से गया था. हत्या करने का सामान्य आशय भी साबित नहीं होता है. गाजियाबाद के सलीम और फिरोज की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति एसएस प्रसाद की खंडपीठ ने दिया. ट्रायल कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों को हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा और हत्या के प्रयास में 10 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी. सजा के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.

मामले के अनुसार, मुकदमा वादी तहजीब अपने साथी सोहेल के साथ माजिद अली और उसके साले 65 दिन से मिलने उसकी वर्कशॉप पर गया था. वर्कशॉप पर माजिद का सहायक मोइनुद्दीन भी मौजूद था. घटना लगभग सुबह 9:30 बजे की है. माजिद का पड़ोसी सलीम, पप्पू, फिरोज और दिलशाद उसकी दुकान के सामने झाड़ू लगा रहे थे, जिससे धूल उड़ने लगी. माजिद ने इसका विरोध करते हुए कहा कि झाड़ू लगाने से पहले पानी छिड़क लो. ताकि घूल न उड़े. इस पर सलीम और फिरोज आदि झगड़ा करने लगे. कहासुनी के बीच सलीम, फिरोज और दिलशाद मस्जिद की वर्कशॉप में घुस आए. सलीम ने फैसुउद्दीन को पकड़ा और दिलशाद ने उसे चाकू मार दिया. जबकि, फिरोज ने माजिद को भी चाकू मारकर घायल कर दिया. इस घटना में फैसुउद्दीन की मौत हो गई.

यह भी पढ़ें: आरोपी को भी है वाद के जल्दी निस्तारण का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

बचाव पक्ष के अधिवक्ता का कहना था कि इस मामले में आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या का मामला नहीं बनता है और न ही धारा 34 के तहत सामान्य उद्देश्य का मामला है. आरोपी घटना पर हत्या के इरादे से किसी तैयारी के साथ नहीं गए थे. बल्कि, दोनों पक्षों में अचानक हुए झगड़े की वजह से यह घटना हो गई. हाईकोर्ट ने कहा कि उपरोक्त प्रकरण में गैर इरादतन हत्या का मामला ही बनता है. कोर्ट ने दोनों आरोपियों को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को कम करते हुए 10 वर्ष की सजा में तब्दील कर दी. आरोपी सलीम 1997 से जमानत पर है, जबकि फिरोज लगभग 25 वर्ष की सजा काट चुका है. कोर्ट ने फिरोज को जेल से रिहा करने और सलीम को गिरफ्तार कर बची हुई सजा काटने का निर्देश दिया है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अचानक हुए झगड़े के दौरान हुई हत्या की घटना को आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या नहीं माना जा सकता है. इसे आईपीसी की धारा 304 ए के तहत गैर इरादतन हत्या का मामला माना जाएगा. हाईकोर्ट ने हत्या के जुर्म में गाजियाबाद के सलीम और फिरोज की उम्रकैद की सजा को कम करने का निर्णय सुनाया.

हाईकोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में हत्या की वजह अचानक हुआ झगड़ा था. अभियुक्त ने गुस्से में आकर वार किया, जिससे मौत हुई. परिस्थिति का फायदा उठाते हुए क्रूरतापूर्ण व्यवहार नहीं किया, न ही वह योजनाबद्ध तरीके से हत्या के इरादे से गया था. हत्या करने का सामान्य आशय भी साबित नहीं होता है. गाजियाबाद के सलीम और फिरोज की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति एसएस प्रसाद की खंडपीठ ने दिया. ट्रायल कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों को हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा और हत्या के प्रयास में 10 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी. सजा के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.

मामले के अनुसार, मुकदमा वादी तहजीब अपने साथी सोहेल के साथ माजिद अली और उसके साले 65 दिन से मिलने उसकी वर्कशॉप पर गया था. वर्कशॉप पर माजिद का सहायक मोइनुद्दीन भी मौजूद था. घटना लगभग सुबह 9:30 बजे की है. माजिद का पड़ोसी सलीम, पप्पू, फिरोज और दिलशाद उसकी दुकान के सामने झाड़ू लगा रहे थे, जिससे धूल उड़ने लगी. माजिद ने इसका विरोध करते हुए कहा कि झाड़ू लगाने से पहले पानी छिड़क लो. ताकि घूल न उड़े. इस पर सलीम और फिरोज आदि झगड़ा करने लगे. कहासुनी के बीच सलीम, फिरोज और दिलशाद मस्जिद की वर्कशॉप में घुस आए. सलीम ने फैसुउद्दीन को पकड़ा और दिलशाद ने उसे चाकू मार दिया. जबकि, फिरोज ने माजिद को भी चाकू मारकर घायल कर दिया. इस घटना में फैसुउद्दीन की मौत हो गई.

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बचाव पक्ष के अधिवक्ता का कहना था कि इस मामले में आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या का मामला नहीं बनता है और न ही धारा 34 के तहत सामान्य उद्देश्य का मामला है. आरोपी घटना पर हत्या के इरादे से किसी तैयारी के साथ नहीं गए थे. बल्कि, दोनों पक्षों में अचानक हुए झगड़े की वजह से यह घटना हो गई. हाईकोर्ट ने कहा कि उपरोक्त प्रकरण में गैर इरादतन हत्या का मामला ही बनता है. कोर्ट ने दोनों आरोपियों को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को कम करते हुए 10 वर्ष की सजा में तब्दील कर दी. आरोपी सलीम 1997 से जमानत पर है, जबकि फिरोज लगभग 25 वर्ष की सजा काट चुका है. कोर्ट ने फिरोज को जेल से रिहा करने और सलीम को गिरफ्तार कर बची हुई सजा काटने का निर्देश दिया है.

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