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शाहजहांपुर में लिखी गई थी काकोरी एक्शन की पटकथा, जिले के 3 क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने दी थी फांसी - SHAHJAHANPUR REVOLUTIONARY

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान ने अंग्रेजों के खिलाफ की थी बगावत.

देश की आजादी के लिए क्रांतिकारियों ने दिया बलिदान.
देश की आजादी के लिए क्रांतिकारियों ने दिया बलिदान. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 26, 2025, 12:49 PM IST

शाहजहांपुर : देश की आजादी में जिले के क्रांतिकारियों का भी बड़ा योगदान है. यहां के वीर सपूतों ने अंग्रेजों से टक्कर ली थी. काकोरी एक्शन को अंजाम दिया था. इसमें शामिल पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खान और राजेंद्र लहरी को अलग-अलग जिलों में फांसी दी गई थी. इसमें शाहजहांपुर के भी तीन क्रातिकारी शामिल थे.

शाहजहांपुर के क्रांतिकारियों का भी देश की आजादी में योगदान. (Video Credit; ETV Bharat)

शाहजहांपुर में जन्मे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की. इसके बाद काकोरी एक्शन की रणनीति जिले में ही तैयार की गई. इसके बाद इस एक्शन को अंजाम दिया गया. अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया. 19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को अलग-अलग जेलों में फांसी दी गई. इसी मामले में राजेंद्र लहरी को भी फांसी दी गई थी.

अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमन जई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. उन्होंने शाहजहांपुर के एबी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की थी. यहां राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. यह दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. जिले का आर्य समाज मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. इस मंदिर के पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे.

यह आर्य समाज मंदिर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की दोस्ती की मिसाल पेश करता है. दोनों एक ही थाली में खाना खाया करते थे. मुस्लिम होते हुए भी अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे. देश की आजादी के लिए इसी मंदिर में नई-नई योजनाएं बनाया करते थे.

शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला ने बताया कि अशफाक उल्ला खान फांसी से पहले एक आखिर शेर में कहा था. 'कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह है. रख दे कोई जरा सी खाके वतन कफन में'. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन वीर सपूतों की शहादत को नमन किया जाता है. इस दिन अशफाक उल्ला खां की मजार पर विशेष कार्यक्रम होता है. हिंदुस्तान की आजादी के लिए जान देने वालों के बारे में नौजवानों को जानना चाहिए. पढ़ाई में इसका एक विषय होना चाहिए.

वहीं इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने बताया कि जिले के तीनों क्रांतिकारियों की शहादत के बाद भी यह आंदोलन खत्म नहीं हुआ. बिस्मिल की बनाई हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नेतृत्व भगत सिंह ने अपने हाथ में ले लिया. इसका नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया. इसी के तहत सांडर्स की गोली मारकर हत्या हुई. केंद्रीय असेंबली में बम फेंके गए थे. काकोरी कांड के बाद डेढ़ किलो की एक पिस्टल बरामद की गई थी. यह राम प्रसाद बिस्मिल की थी.

यह भी पढ़ें : अंग्रेजी हुकूमत को चकमा देकर 94 साल पहले 2 भाइयों ने आगरा किले पर फहराया था तिरंगा

शाहजहांपुर : देश की आजादी में जिले के क्रांतिकारियों का भी बड़ा योगदान है. यहां के वीर सपूतों ने अंग्रेजों से टक्कर ली थी. काकोरी एक्शन को अंजाम दिया था. इसमें शामिल पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खान और राजेंद्र लहरी को अलग-अलग जिलों में फांसी दी गई थी. इसमें शाहजहांपुर के भी तीन क्रातिकारी शामिल थे.

शाहजहांपुर के क्रांतिकारियों का भी देश की आजादी में योगदान. (Video Credit; ETV Bharat)

शाहजहांपुर में जन्मे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की. इसके बाद काकोरी एक्शन की रणनीति जिले में ही तैयार की गई. इसके बाद इस एक्शन को अंजाम दिया गया. अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया. 19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को अलग-अलग जेलों में फांसी दी गई. इसी मामले में राजेंद्र लहरी को भी फांसी दी गई थी.

अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमन जई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. उन्होंने शाहजहांपुर के एबी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की थी. यहां राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. यह दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. जिले का आर्य समाज मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. इस मंदिर के पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे.

यह आर्य समाज मंदिर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की दोस्ती की मिसाल पेश करता है. दोनों एक ही थाली में खाना खाया करते थे. मुस्लिम होते हुए भी अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे. देश की आजादी के लिए इसी मंदिर में नई-नई योजनाएं बनाया करते थे.

शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला ने बताया कि अशफाक उल्ला खान फांसी से पहले एक आखिर शेर में कहा था. 'कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह है. रख दे कोई जरा सी खाके वतन कफन में'. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन वीर सपूतों की शहादत को नमन किया जाता है. इस दिन अशफाक उल्ला खां की मजार पर विशेष कार्यक्रम होता है. हिंदुस्तान की आजादी के लिए जान देने वालों के बारे में नौजवानों को जानना चाहिए. पढ़ाई में इसका एक विषय होना चाहिए.

वहीं इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने बताया कि जिले के तीनों क्रांतिकारियों की शहादत के बाद भी यह आंदोलन खत्म नहीं हुआ. बिस्मिल की बनाई हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नेतृत्व भगत सिंह ने अपने हाथ में ले लिया. इसका नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया. इसी के तहत सांडर्स की गोली मारकर हत्या हुई. केंद्रीय असेंबली में बम फेंके गए थे. काकोरी कांड के बाद डेढ़ किलो की एक पिस्टल बरामद की गई थी. यह राम प्रसाद बिस्मिल की थी.

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