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सैनिक की मौत के बाद पत्नी और सास के बीच राशि का बंटवारा सही: HC - इलाहाबाद हाई कोर्ट की खबर

हाई कोर्ट ने कहा कि बहू को अपना बेटा खोने वाली सास के प्रति सहानुभूति होनी चाहिए. उसे विभाग के धन राशि बंटवारे को स्वीकार करना चाहिए.

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हाई कोर्ट ने कहा कि बहू को अपना बेटा खोने वाली सास के प्रति सहानुभूति होनी चाहिए
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Published : Jul 25, 2022, 10:19 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सैनिक पति की मौत पर विभाग से मिलने वाली राशि की सेवा पुस्तिका में नामित पत्नी ट्रस्टी होती है. जिसका परिवार में उत्तराधिकार कानून के अनुसार वितरण किया जाना चाहिए. इसलिए पत्नी को 75फीसद व उसकी सास को 25 फीसद राशि का भुगतान करने का आदेश सही है.पत्नी की सौ फीसदी राशि का दावा करते हुए दाखिल याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी है.

कोर्ट ने कहा कि बहू को बेटा खो देने वाली अपनी सास के प्रति सहानुभूति के साथ विभाग द्वारा राशि के बंटवारे को स्वीकार करना चाहिए. कोर्ट ने एक उक्ति कही कि मां तुम्हें एक जीवन देती है. जबकि सास अपना जीवन सौंप देती है. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने श्रीमती सुनीता की याचिका पर दिया है.

याची के पति योगेन्द्र पाल सिंह की सेना में कार्यरत को दौरान मौत हो गई थी. विभाग ने मौत पर मिलने वाले आर्मी ग्रुप बीमा , केडीआईएस , एजीआईएफ मेच्योरिटी राशि व मृत्यु से मिलने वाली सारी धनराशि ब्याज की मांग की. जिसपर सास ने भी अपना हक मांगा. विभाग ने पत्नी को 75 फीसद व उसकी सास मृतक की मां को 25 फीसद भुगतान कर दिया.

यह भी पढ़ें-थानेदार को महंगा पड़ा आरोपी को बर्थडे का लड्डू खिलाना, हो गए लाइनहाजिर

जिसपर पत्नी द्वारा कोर्ट में चुनौती दे दी गई थी. पत्नी का कहना था कि नामित होने के कारण उसे पूरी राशि का भुगतान किया जाना चाहिए. भारत सरकार की तरफ से नियमों का हवाला दिया गया. जिसमें विवाद की दशा में दावे के विभाजन का नियम हैं. कोर्ट ने सेना द्वारा भुगतान को सही माना पत्नी की याचिका खारिज कर दी.

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प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सैनिक पति की मौत पर विभाग से मिलने वाली राशि की सेवा पुस्तिका में नामित पत्नी ट्रस्टी होती है. जिसका परिवार में उत्तराधिकार कानून के अनुसार वितरण किया जाना चाहिए. इसलिए पत्नी को 75फीसद व उसकी सास को 25 फीसद राशि का भुगतान करने का आदेश सही है.पत्नी की सौ फीसदी राशि का दावा करते हुए दाखिल याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी है.

कोर्ट ने कहा कि बहू को बेटा खो देने वाली अपनी सास के प्रति सहानुभूति के साथ विभाग द्वारा राशि के बंटवारे को स्वीकार करना चाहिए. कोर्ट ने एक उक्ति कही कि मां तुम्हें एक जीवन देती है. जबकि सास अपना जीवन सौंप देती है. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने श्रीमती सुनीता की याचिका पर दिया है.

याची के पति योगेन्द्र पाल सिंह की सेना में कार्यरत को दौरान मौत हो गई थी. विभाग ने मौत पर मिलने वाले आर्मी ग्रुप बीमा , केडीआईएस , एजीआईएफ मेच्योरिटी राशि व मृत्यु से मिलने वाली सारी धनराशि ब्याज की मांग की. जिसपर सास ने भी अपना हक मांगा. विभाग ने पत्नी को 75 फीसद व उसकी सास मृतक की मां को 25 फीसद भुगतान कर दिया.

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जिसपर पत्नी द्वारा कोर्ट में चुनौती दे दी गई थी. पत्नी का कहना था कि नामित होने के कारण उसे पूरी राशि का भुगतान किया जाना चाहिए. भारत सरकार की तरफ से नियमों का हवाला दिया गया. जिसमें विवाद की दशा में दावे के विभाजन का नियम हैं. कोर्ट ने सेना द्वारा भुगतान को सही माना पत्नी की याचिका खारिज कर दी.

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