प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि किसी परिवाद या बयान के आरोपों से अपराध का खुलासा नहीं होता तो कोर्ट अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर उसे रद्द कर सकता है. कानपुर की लक्ष्मी देवी व तीन अन्य की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिया है. हिंदी में दिए गए आदेश में कोर्ट ने कहा कि याची के विरुद्ध लगाया गया उद्दापन (धमकी) का आरोप प्रथम दृष्टया भी साबित नहीं होता है और न ही आरोपों या परिवाद में उद्दापन या अन्य अपराध के अवयव मौजूद हैं.
याची ने अपने दामाद रमाशंकर और उसके भाइयों व अन्य रिश्तेदारों पर अपनी बेटी बसंती देवी को प्रताड़ित करने, उसे फांसी पर लटकाकर मार देने का आरोप लगाते हुए परिवाद दर्ज कराया था. दूसरी तरफ दामाद रमाशंकर ने भी अपनी सास लक्ष्मी देवी और सालों पर जमीन हथियाने और डराने धमकाने का आरोप लगाते हुए परिवाद दाखिल किया. कोर्ट ने कानपुर के मजिस्ट्रेट द्वारा 27 फरवरी 2017 को जारी समन आदेश रद्द कर दिया.
रमाशंकर के अनुसार, उसकी मृतक पत्नी के नाम उसकी मां (याची) ने दो बीघा जमीन लिखी थी. मौत के बाद जमीन वापस मांगने पर केस में फंसाया जा रहा है. मजिस्ट्रेट ने रमाशंकर के परिवाद पर लक्ष्मीदेवी आदि को समन जारी किया है, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि परिवाद में लगाए गए आरोपों से किसी अपराध का होना दृष्टिगत नहीं होता है.
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