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इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी, कहा- समझौते के आधार पर खत्म हो सकता है दुष्कर्म का मुकदमा - प्रयागराज न्यूज

एक मामले में सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं तो अदालत सद्भावना पूर्वक विचार कर सकती है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Jun 13, 2023, 10:04 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म की धारा 376 के तहत दर्ज मुकदमा समझौते के आधार पर समाप्त किया जा सकता है, यदि अभियुक्त के विरुद्ध रिकॉर्ड पर कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है तथा पीड़िता ने भी किसी प्रकार का आरोप अपने बयान में नहीं लगाया है. कोर्ट का कहना था कि सामान्यतः हाईकोर्ट को यौन अपराधों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, लेकिन विशेष परिस्थिति में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्राप्त शक्तियों के तहत अदालत अपराध की गंभीरता, यौन हमले के प्रभाव, समाज पर इसके पड़ने वाले प्रभाव, अभियुक्त के विरुद्ध उपलब्ध साक्ष्य आदि तमाम बातों पर सद्भावना पूर्वक विचार कर सकती है.

बरेली के फखरे आलम की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देसवाल ने की. याची के खिलाफ बरेली के बारादरी थाने में दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज है . इसमें पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी है. सक्षम न्यायालय ने उस पर संज्ञान लेकर अभियुक्त को वारंट जारी कर दिया.

याची ने दी थी वारंट को चुनौती : हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चार्जशीट और सेशन कोर्ट द्वारा जारी वारंट को चुनौती दी गई. याची के अधिवक्ता का कहना था कि अभियुक्त के विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं है. पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए अपने बयान में कहा है कि वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी और अपनी इच्छा से उससे शादी की है. दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं. दोनों पक्षों के बीच समझौता हो चुका है. पीड़िता की आयु 18 वर्ष से अधिक है. स्पेशल जज पॉक्सो एक्ट ने समझौते की पुष्टि की. कोर्ट के समक्ष प्रश्न था कि क्या पॉक्सो एक्ट और धारा 376 के तहत दर्ज मुकदमा समझौते के आधार पर समाप्त किया जा सकता है.

पीठ का कहना था कि पॉक्सो एक्ट में यह स्पष्ट है कि पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम होनी चाहिए, यहां उपलब्ध रिकॉर्ड से पता चलता है कि पीड़िता 18 वर्ष से अधिक की है. इसलिए पॉक्सो एक्ट का कोई मामला नहीं बनता है. दूसरे पीड़िता ने अपने बयान में यह भी कहा है कि आरोपी ने कोई यौन अपराध नहीं किया है. शादी के बाद दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं. उसकी मां ने पांच लाख रुपये लेने के लिए झूठा केस दर्ज कराया. मेडिकल परीक्षण में भी पीड़िता के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई है. रिकॉर्ड में याची के विरुद्ध कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. पुलिस ने इस तथ्य पर गौर किए बिना रूटीन तरीके से चार्जशीट दाखिल कर दी. कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए याची के विरुद्ध दर्ज मामले को रद्द कर दिया.

यह भी पढ़ें : गांव के ही लड़कों ने नाबालिग के साथ किया गैंगरेप, बेहोश होने पर झाड़ियों में छोड़कर भागे

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म की धारा 376 के तहत दर्ज मुकदमा समझौते के आधार पर समाप्त किया जा सकता है, यदि अभियुक्त के विरुद्ध रिकॉर्ड पर कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है तथा पीड़िता ने भी किसी प्रकार का आरोप अपने बयान में नहीं लगाया है. कोर्ट का कहना था कि सामान्यतः हाईकोर्ट को यौन अपराधों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, लेकिन विशेष परिस्थिति में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्राप्त शक्तियों के तहत अदालत अपराध की गंभीरता, यौन हमले के प्रभाव, समाज पर इसके पड़ने वाले प्रभाव, अभियुक्त के विरुद्ध उपलब्ध साक्ष्य आदि तमाम बातों पर सद्भावना पूर्वक विचार कर सकती है.

बरेली के फखरे आलम की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देसवाल ने की. याची के खिलाफ बरेली के बारादरी थाने में दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज है . इसमें पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी है. सक्षम न्यायालय ने उस पर संज्ञान लेकर अभियुक्त को वारंट जारी कर दिया.

याची ने दी थी वारंट को चुनौती : हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चार्जशीट और सेशन कोर्ट द्वारा जारी वारंट को चुनौती दी गई. याची के अधिवक्ता का कहना था कि अभियुक्त के विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं है. पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए अपने बयान में कहा है कि वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी और अपनी इच्छा से उससे शादी की है. दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं. दोनों पक्षों के बीच समझौता हो चुका है. पीड़िता की आयु 18 वर्ष से अधिक है. स्पेशल जज पॉक्सो एक्ट ने समझौते की पुष्टि की. कोर्ट के समक्ष प्रश्न था कि क्या पॉक्सो एक्ट और धारा 376 के तहत दर्ज मुकदमा समझौते के आधार पर समाप्त किया जा सकता है.

पीठ का कहना था कि पॉक्सो एक्ट में यह स्पष्ट है कि पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम होनी चाहिए, यहां उपलब्ध रिकॉर्ड से पता चलता है कि पीड़िता 18 वर्ष से अधिक की है. इसलिए पॉक्सो एक्ट का कोई मामला नहीं बनता है. दूसरे पीड़िता ने अपने बयान में यह भी कहा है कि आरोपी ने कोई यौन अपराध नहीं किया है. शादी के बाद दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं. उसकी मां ने पांच लाख रुपये लेने के लिए झूठा केस दर्ज कराया. मेडिकल परीक्षण में भी पीड़िता के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई है. रिकॉर्ड में याची के विरुद्ध कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. पुलिस ने इस तथ्य पर गौर किए बिना रूटीन तरीके से चार्जशीट दाखिल कर दी. कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए याची के विरुद्ध दर्ज मामले को रद्द कर दिया.

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