प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कोई भी व्यक्ति राज्य सरकार के किसी आदेश से प्रभावित होता है, जो सिविल प्रकृति का है तो राज्य के लिए यह आवश्यक है कि वह उस व्यक्ति को सुनवाई का पर्याप्त अवसर दे. कोर्ट ने कहा कि सुनवाई का अवसर देना महज एक औपचारिकता नहीं है. बल्कि, वह व्यक्ति जिसके खिलाफ आदेश पारित किया जा रहा है, उसे सभी संबंधित दस्तावेज, शिकायत की प्रति, जांच रिपोर्ट आदि देना आवश्यक है. ताकि उस व्यक्ति को अपने ऊपर लगाए गए आरोपों की जानकारी हो सके. फतेहपुर की निषाद मत्स्यजीवी सहकारी समिति की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने दिया है.
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कोर्ट ने याची संस्था को यमुना में मछली पकड़ने के लिए आवंटित लाइसेंस बिना सुनवाई के रद्द करने के एडीएम वित्त फतेहपुर के आदेश को रद्द कर दिया है. याची संस्था का कहना था, कि उसे यमुना में मछली पकड़ने का पट्टा आवंटित किया गया था. जिसकी उसने एक किस्त भी जमा कर दी थीं. इस बीच कुछ शिकायतों के आधार पर जिला अधिकारी ने तीन सदस्य समिति को जांच करने का आदेश दिया. समिति ने जांच कर अपनी रिपोर्ट एडीएम वित्त को सौंप दी और उन्होंने 30 नवंबर 2023 को एकतरफा कार्रवाई करते हुए याची का पट्टा निरस्त कर दिया.
कार्रवाई से पूर्व यांची को उसका पक्ष रखना का मौका नहीं दिया गया. न ही उसे शिकायत की प्रति अथवा जांच रिपोर्ट की प्रति दी गई. कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन मानते हुए एडीएम वित्त द्वारा पारित पट्टा निरस्त करने का आदेश के साथ जांच रिपोर्ट को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही प्रशासन को छूट दी है कि वह नए सिरे से नियमानुसार कार्रवाई कर सकता है.
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