प्रयागराजः नोएडा के बिल्डर मुकेश खुराना को इलाहाबाद हाईकोर्ट से झटका लगा है. कोर्ट ने जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि याची ने स्वयं नहीं कोर्ट के निर्देश पर निवेशकों, खरीदारों के पैसे वापस करने शुरू किए. यह नहीं कह सकते कि खरीदारों के साथ धोखाधड़ी और कपट नहीं किया गया है. कोर्ट ने बीमारी के कारण अंतरिम जमानत पर छूटे याची की नियमित जमानत अर्जी खारिज कर दी है.
ये आदेश न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने दिया है. अधिवक्ता आर एन यादव ने अंतर्हस्तक्षेपी अर्जी पर पक्ष रखा. मालूम हो कि अपर सत्र न्यायाधीश गौतमबुद्ध नगर ने जमानत अर्जी खारिज कर दी. जिसपर यह अर्जी दाखिल की गई थी. हृदय रोग से इलाज कराने के लिए याची को 26 जून 2021 को अंतरिम जमानत मिली है. वह नियमित जमानत चाहता है.
याची का कहना था कि इसी मामले में दिल्ली में एफआईआर दर्ज कराई गई है. जिसमें उसे साकेत कोर्ट से जमानत मिली हुई है. ऐसे में उसी घटना को लेकर गौतमबुद्ध नगर में एफआईआर दर्ज नहीं कराई जा सकती. याची का यह भी कहना था कि 153 फ्लैट में से 107 के निवेशकों को पूरी या अधूरी धन राशि वापस कर दी गई है. शेष को वापस की जा रही है. इसलिए धोखाधड़ी का आरोप नहीं बनता. एक ही मामले में दो जगह कार्रवाई धारा 300 के खिलाफ है. एक अपराध में दो बार सजा नहीं दी जा सकती. मुख्य शिकायतकर्ता से समझौता हो गया है.
विपक्षी का कहना था कि दिल्ली का केस दूसरे प्रोजेक्ट को लेकर है. यह अलग है. याची ने जानबूझ कर एफआईआर और चार्जशीट दाखिल नहीं की है. कुछ लोगों को पैसे वापस करने से अपराध से मुक्ति नहीं मिलती. याची अंतरिम जमानत पर रिहा है. बिना समर्पण किए नियमित जमानत अर्जी दाखिल नहीं की जा सकती.
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कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा कि आर्थिक अपराध में जमानत नहीं दी जानी चाहिए. समझौता जमानत पर रिहा होने का आधार नहीं हो सकता. लोगों ने सपनों के घर के लिए पैसे जमा किए. 8-10 साल बाद उसकी कीमत घट गयी. पैसे वापस कर उनके घर के सपने को तोड दिया गया. प्रोजेक्ट 2012-13 में पूरा होना था. याची ने प्रोजेक्ट पूरा करने में असमर्थ होने पर धन वापसी की कोशिश नहीं की. इससे वह कपट और धोखाधड़ी के आरोप से बच नहीं सकता.