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DIOS शाहजहांपुर के मनमाने रवैये पर सख्त हुआ कोर्ट, सुनाया 50 हजार का जुर्माना

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) शाहजहांपुर के मनमाने रवैये पर कड़ा रुख अपनाते हुए उन पर पचास हजार रुपये का हर्जाना लगा दिया है. हालांकि कोर्ट की सख्त‌ी के बाद उन्होंने अपना आदेश वापस लेने का भरोसा दिया मगर उनके मनमाने रवैये को देखते हुए अदालत ने हर्जाना लगाने का आदेश दिया. माधवी ‌मिश्रा की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने दिया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Aug 19, 2021, 10:42 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) शाहजहांपुर के मनमाने रवैये पर कड़ा रुख अपनाते हुए उन पर पचास हजार रुपये का हर्जाना लगा दिया है. डीआईओएस (DIOS) ने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद मृतक आश्रित कोटे में विवाहित बेटी को नियुक्ति देने से इंकार करते हुए उसका प्रत्यावेदन दो बार खारिज कर दिया. हालांकि कोर्ट की सख्त‌ी के बाद उन्होंने अपना आदेश वापस लेने का भरोसा दिया मगर उनके मनमाने रवैये को देखते हुए अदालत ने हर्जाना लगाने का आदेश दिया. माधवी ‌मिश्रा की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने दिया.

याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहना था कि याची के पिता अश्वनी कुमार मिश्र विनोबा भावे इंटर कॉलेज काठ शाहजहांपुर में सहायक अध्यापक थे. सेवा काल में उनकी मृत्यु हो गई. याची उनकी विवाहित पुत्री है. उसने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने के लिए डीआईओएस शाहजहांपुर को प्रार्थनापत्र दिया, जिसे डीआईओएस ने यह कहते हुए रद़्द कर दिया कि ‌मृतक आश्रित नियमावली में परिवार की परिभाषा में विवाहित पुत्री शामिल नहीं है.

याची ने हाईकोर्ट के कई आदेश दिखा कर बताया कि अदालत ने विवाहित पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति पाने का हकदार माना है. मगर डीआईओएस ने इन आदेशों को नहीं माना. इसके खिलाफ याचिका दाखिल की गई. हाईकोर्ट ने 15 दिसंबर 20 को याचिका स्वीकार करते हुए डीआईओएस का आदेश रदद कर दिया और उनको नए सिरे से प्रत्यावेदन निस्तारित करने का आदेश दिया.

इस आदेश के बाद भी डीआईओएस ने याची का प्रत्यावेदन यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि विवाहित पुत्री मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की हकदार नहीं है. इस आदेश को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने इसे डीआईओएस द्वारा जानबूझकर की जा रही मनमानी करार देते हुए तलब किया. अदालत में मौजूद डीआईओएस इस बात पर कोई सफाई नहीं पेश कर सके कि क्यों उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद अनुकंपा नियुक्ति का प्रत्यावेदन निरस्त कर दिया.

कोर्ट ने उनकी इस सफाई को नहीं माना कि इस संबंध में कोई शासनादेश उपलब्ध नहीं है. डीआईओएस ने तीन दिन में अपना आदेश वापस लेने और एक माह में नियु‌क्ति पर निर्णय लेने का वादा किया. मगर कोर्ट का कहना था कि डीआईओएस द्वारा जानबूझकर बार-बार गलत आदेश पारित करने के कारण याची को अनावश्यक अदालत के चक्कर लगाने पड़े और उसका पैसा भी बर्बाद हुआ. कोर्ट ने डीआईओएस को पचास हजार रुपये चार सप्ताह में ‌हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति के खाते में जमा करने का निर्देश दिया है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) शाहजहांपुर के मनमाने रवैये पर कड़ा रुख अपनाते हुए उन पर पचास हजार रुपये का हर्जाना लगा दिया है. डीआईओएस (DIOS) ने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद मृतक आश्रित कोटे में विवाहित बेटी को नियुक्ति देने से इंकार करते हुए उसका प्रत्यावेदन दो बार खारिज कर दिया. हालांकि कोर्ट की सख्त‌ी के बाद उन्होंने अपना आदेश वापस लेने का भरोसा दिया मगर उनके मनमाने रवैये को देखते हुए अदालत ने हर्जाना लगाने का आदेश दिया. माधवी ‌मिश्रा की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने दिया.

याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहना था कि याची के पिता अश्वनी कुमार मिश्र विनोबा भावे इंटर कॉलेज काठ शाहजहांपुर में सहायक अध्यापक थे. सेवा काल में उनकी मृत्यु हो गई. याची उनकी विवाहित पुत्री है. उसने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने के लिए डीआईओएस शाहजहांपुर को प्रार्थनापत्र दिया, जिसे डीआईओएस ने यह कहते हुए रद़्द कर दिया कि ‌मृतक आश्रित नियमावली में परिवार की परिभाषा में विवाहित पुत्री शामिल नहीं है.

याची ने हाईकोर्ट के कई आदेश दिखा कर बताया कि अदालत ने विवाहित पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति पाने का हकदार माना है. मगर डीआईओएस ने इन आदेशों को नहीं माना. इसके खिलाफ याचिका दाखिल की गई. हाईकोर्ट ने 15 दिसंबर 20 को याचिका स्वीकार करते हुए डीआईओएस का आदेश रदद कर दिया और उनको नए सिरे से प्रत्यावेदन निस्तारित करने का आदेश दिया.

इस आदेश के बाद भी डीआईओएस ने याची का प्रत्यावेदन यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि विवाहित पुत्री मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की हकदार नहीं है. इस आदेश को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने इसे डीआईओएस द्वारा जानबूझकर की जा रही मनमानी करार देते हुए तलब किया. अदालत में मौजूद डीआईओएस इस बात पर कोई सफाई नहीं पेश कर सके कि क्यों उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद अनुकंपा नियुक्ति का प्रत्यावेदन निरस्त कर दिया.

कोर्ट ने उनकी इस सफाई को नहीं माना कि इस संबंध में कोई शासनादेश उपलब्ध नहीं है. डीआईओएस ने तीन दिन में अपना आदेश वापस लेने और एक माह में नियु‌क्ति पर निर्णय लेने का वादा किया. मगर कोर्ट का कहना था कि डीआईओएस द्वारा जानबूझकर बार-बार गलत आदेश पारित करने के कारण याची को अनावश्यक अदालत के चक्कर लगाने पड़े और उसका पैसा भी बर्बाद हुआ. कोर्ट ने डीआईओएस को पचास हजार रुपये चार सप्ताह में ‌हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति के खाते में जमा करने का निर्देश दिया है.

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