प्रयागराज: धर्म नगरी कहे जाने वाले संगम तट पर हर वर्ष माघ मेला और 6 वर्ष पर अर्ध कुंभ और 12 वर्ष पर महाकुंभ लगता है. एक महीने से अधिक चलने वाले इस धार्मिक मेले में तंबुओं का एक शहर बसता है. मेले में कई साधु-संतों के पंडाल आकर्षण का केंद्र होते हैं. इन्हीं बाबाओं के बीच में प्रयागराज झूंसी पुल के पास पूज्य महायोगी श्री देवरहा बाबा का शिविर है. इस शिविर की खास बात निरंतर कई वर्षों से जल रही अखंड ज्योति है, जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है.
आस्था की नगरी प्रयागराज के संगम तट माघ मेला क्षेत्र में संगम लोअर मार्ग पर लगभग 67 फुट ऊंचाई पर जल रही अखंड ज्योति जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. मचान पर बनी कुटिया और आसपास बनी सरपत की झोपड़ियां किसी आश्रम का अहसास कराती हैं और पास जाने पर पता चलता है कि यह पूज्य महायोगी श्री देवरहा बाबा का शिविर है.
ऊंचे टावर पर जल रही है अखंड ज्योति
शास्त्री पुल के समीप स्थापित इस शिविर से अभी तक लोग अंजान थे. पुल पर से लोग मचान पर बनी कुटिया को निहारते जरूर थे, पर असल में वहां है क्या, इससे अनभिज्ञ थे. माघ मेले की तैयारियां शुरू होने के बाद लोग यहां की हकीकत से रूबरू हो पाए. इस शिविर में लकड़ी की मोटी बल्ली, साथ ही 65 के लगभग ऊंचा टावर बनाया गया है. करीब चार फुट वर्गाकार इस टावर को चारों ओर से शीशे से ढका गया है और बीच में अखंड ज्योति जल रही है.
पूज्य महायोगी श्री देवरहा बाबा के शिष्य रामदास जी कहते है. यह ज्योति लोक कल्याण, राष्ट्रकल्याण के लिए कुंडा के भदरी कोठी के सहयोग से जलाई गई है. यह ज्योति भदरी रियासत के महाराज ने अपने पूज्य श्री गुरु देव की स्मृति में ज्योति को जलाया है.
बाढ़ में भी जलती है ये ज्योति
माघ मेला क्षेत्र में अखंड ज्योति को इतनी ऊंचाई पर जलाने का मकसद यही था कि वह सदैव प्रकाशमान रहे. बाढ़ के समय शिविर जलमग्न हो जाता है. ऐसे में ज्योति का जलते रहना संभव नहीं था. इसे देखते हुए ज्योति को इतने ऊंचे जलाया गया है ताकि गंगा की बाढ़ उसको छू न सके और वो निरंतर जलती रहे. बता दें कि सुबह-शाम इसमें शुद्ध देसी घी भी डाला जाता है ताकि यह ज्योति निरंतर चलती रहे. अखंड ज्योति मानवता की रक्षा और सामाजिक हित के लिए प्रज्ज्वलित की गई थी जो आज भी निरंतर अविरल रूप से जल रही है.
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