प्रयागराज: कश्मीर और शिमला जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में तो सेब की खेती होती है, लेकिन प्रयागराज के जसरा ब्लॉक के रामपुर निवासी किसान रुद्र प्रताप सिंह ने जिले में सेब की खेती कर दिखाई है. गर्म प्रदेशों में तो सेब की खेती के बारे में कोई सोचता भी नहीं है. किसान आरपी सिंह ने कड़ी मेहनत और पूरी लगन के साथ इसे कर दिखाया है. ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए किसान आरपी सिंह ने बताया कि लगातार 10 सालों से प्रयास करने के बाद अब जाकर उन्हें सफलता मिली है. इस बार उनके 20 पेड़ों में सेब लगे हैं, जिसके बाद उन्होंने अब 150 पेड़ लगाए हैं, जो एक साल बाद तैयार हो जाएंगे.
एक फूल दो माली फिल्म से मिली प्रेरणा
किसान आरपी सिंह ने बताया कि बहुत पहले उन्होंने 'एक फूल दो माली' फिल्म देखी थी, जिसमें सेब के बगीचे में एक गाना फिल्माया गया था. तभी से उनके मन में सेब की खेती करना का विचार आया. उन्होंने बताया कि तब वह छोटे थे, इसलिए ये सपना संजोया था. जब वह बड़े हुए तो अपने सपने को पूरा करने के लिए जुट गए. मुंबई में नौकरी करने के बावजूद वह सेब के पेड़ की जानकारी लेकर गांव आते थे और पेड़ लगाते, लेकिन सफलता नहीं मिलती थी.
10 सालों बाद पूरा हुआ सपना
आरपी सिंह ने बताया कि सेब की खेती का करने के लिए मन बना लिया था, लेकिन बार-बार असफल होने के बावजूद 10 साल बाद सेब के पेड़ लगे और उसमें फूल, फल दोनों आए. इस बार उन्होंने अन्ना गोल्ड किस्म के पौधे लगाए और पौधों को उसी पुराने पेड़ में ड्राफ्टिंग करके तैयार किया. एक साल एक महीने बाद पेड़ में फूल लगे और कुछ महीने बाद फल निकल आए. इसके बाद जब फल का स्वाद चखा तो वह बहुत मीठा था. ऐसे में उनके बचपन का सपना पूरा हो गया. इसके बाद वह 20 पेड़ के अलावा सेब के 150 पेड़ का बगीचा तैयार करने में जुट गए हैं.
पागल समझने लगे थे गांव के लोग
किसान आरपी सिंह ने बताया कि जब वह परिवार में सेब की खेती की बात करते थे, तो घर वाले बहुत नाराज होते थे. घर वाले कहते थे कि ठंडे प्रदेश में होने वाले फल यहां कैसे होंगे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सेब की खेती करने में जुटे रहे. कुछ समय बाद गांव वाले उन्हें पागल समझने लगे थे. खेती में सफलता मिलने के बाद आज वही लोग सेब की खेती देखने आते हैं और तारीफ करते हैं.
किसानों को आगे आना होगा
आरपी सिंह ने बताया कि अन्ना गोल्ड किस्म के सेब का पेड़ संगमनगरी के वातावरण में आसानी से जीवित रह सकता है, इसलिए सभी किसानों को सेब की खेती करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि एक-दो बीघे में चार हजार कमाना किसानों को मुश्किल पड़ रहा है, लेकिन सेब की खेती में एक पेड़ से 4000 रुपये कमाए जा सकते हैं, इसलिए सेब की खेती करने के लिए हर किसान को अब आगे आना होगा. उन्होंने बताया कि इसके साथ ही इस खेती में पेड़ के खर्च के अलावा कोई खर्च नहीं है.
50 हजार रुपये हुए खर्च
किसान आरपी सिंह ने बताया कि उन्होंने सेब की खेती करने में उन्हें सिर्फ पौधे खरीदने में खर्च आता था. उन्होंने इस बार कश्मीर से अन्ना गोल्ड के 150 पौधे मंगवाए हैं, जिसकी कीमत 50 हजार थी. साथ ही सेब के पेड़ में रासायनिक खाद नहीं बल्कि गोबर की खाद का प्रयोग किया जाता है. अधिक गर्मी पड़ने पर इन पौधों में सिंचाई की जरूरत पड़ती है. आरपी सिंह ने बताया कि 20 सेब के पेड़ों में लगभग एक पेड़ में 15 फल लगे थे. उन्होंने बताया कि जब पेड़ों में फल लगा तो गांव के लोग देखने के लिए भीड़ लगा लिया करते थे. आरपी सिंह ने बताया कि अन्ना गोल्ड किस्म के सेब के पेड़ में मई-जून तक फल लगाना समाप्त हो जाता है.
सेब की खेती के नाम पर बेटे को लगाई थी फटकार
किसान के पिता केशव बहादुर सिंह ने बताया कि जब उनके बेटे ने सेब की खेती करने की बात की तो सबसे पहले उन्होंने उसे तेजी से फटकार लगाई और कहा कि पैसा बर्बाद मत करो, यह ठंडे प्रदेशों में होने वाले फल है. उन्होंने बताया कि बेटे ने उनका कहना नहीं माना और मुंबई में रहते हुए कश्मीर से फल का पौधा मंगवाकर यहां लगवाता था. कई बार पेड़ खराब हुए, लेकिन बेटे ने हिम्मत नहीं हारी और इस बार पेड़ों में फूल भी लगे और फल भी लगा.
ट्रांसप्लांट करने के बाद संभव
इस बारे में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. दिवेन्द्र कुमार चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रयागराज का वातावरण सेब की खेती के लिए बिल्कुल उपयोगी नहीं है. मुख्य रूप से सेब की खेती ठंडे एरिया में होती है. लेकिन अगर कश्मीर में मिलने वाले सेब की अन्ना गोल्ड वैरायटी को देशी वैरायटी के पेड़ों में ग्राफ्टिंग करके लगाया जाए तो यह सम्भव है. इसी तरह की तकनीक का प्रयोग करके रामपुर के किसान ने सेब की खेती की है.