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प्रयागराज: 800 शहीद आंदोलनकारियों की याद दिलाता है ये नीम का पेड़

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक नीम का पेड़ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले 800 शहीद आंदोलनकारियों की याद दिलाता है. आंदोलनकारी गप्पू लाल भगत के तीसरी पीढ़ी के बेटे सूरज श्रीवास्तव ने ईटीवी भारत संवाददाता से खास बातचीत की.

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Published : Aug 15, 2019, 2:03 AM IST

शहीद आंदोलनकारियों की याद दिलाता है नीम का पेड़.

प्रयागराज: देश की आजादी के लिए भारत कितने वीर सपूतों ने अपनी जान गवाई. इन वीर सपूतों ने अंग्रेजी हुकूमत से लड़कर और उनके खिलाफ आंदोलन करके देश को फिरंगियों से आजाद किया था. प्रयागराज के कोतवाली स्थित एक ऐसा नीम का पेड़ है, जहां 1857 में 800 आंदोलनकारियों को अंग्रेजों ने कोतवाली स्थित नीम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दी थी. आजादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते अपनी जान की कुर्बानी देने वाले शहीदों की वीरता की कहानी ये नीम की पेड़ बयां कर रही है. जिला प्रशासन ने इस पेड़ के नीचे एक शिलापट लगा दिया है.

शहीद आंदोलनकारियों की याद दिलाता है नीम का पेड़.

800 लोगों को दी गई थी फांसी
आंदोलनकारी गप्पू लाल भगत के तीसरी पीढ़ी के बेटे सूरज श्रीवास्तव ने बताया कि 800 लोगों की फांसी इसी नीम के पेड़ में अंग्रेजों ने दी थी. इससे पहले इस जगह पर लाइन से सात पेड़ थे, लेकिन आज सिर्फ एक पेड़ बचा है. इस पेड़ को बचाने के लिए मेरे पिता ने कई बार अभियान चलाया था. इसी पेड़ के नीचे मेरे बाबा गप्पू लाल भगत को भी अंग्रेजों ने फांसी दी थी और उन्हीं 800 भारतीय में एक मेरे बाबा भी थे. आज भी उन्हें याद करके इस पेड़ को देखा करता हूं.

आज भी जीवित है आंदोलनकारियों कुर्बानी
सूरज श्रीवास्तव ने बताया कि प्रयागराज में जितने भी आंदोलन हुए और अंग्रेजों के हाथ लगने वाले सभी आंदोलकारियों को इसी नीम के पेड़ पर फांसी दिया गया था. इस नीम के पेड़ को देखने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आईं थीं. इसके साथ ही बड़े-बड़े दिग्गज नेता यहां आकर शहीदों को याद किया करते हैं. इस पेड़ का देखरेख मेरे बाबा के बड़े बेटे ने किया और अब उनके मारने के बाद मेरे पिता जी के भाई कर रहे हैं.

प्रयागराज: देश की आजादी के लिए भारत कितने वीर सपूतों ने अपनी जान गवाई. इन वीर सपूतों ने अंग्रेजी हुकूमत से लड़कर और उनके खिलाफ आंदोलन करके देश को फिरंगियों से आजाद किया था. प्रयागराज के कोतवाली स्थित एक ऐसा नीम का पेड़ है, जहां 1857 में 800 आंदोलनकारियों को अंग्रेजों ने कोतवाली स्थित नीम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दी थी. आजादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते अपनी जान की कुर्बानी देने वाले शहीदों की वीरता की कहानी ये नीम की पेड़ बयां कर रही है. जिला प्रशासन ने इस पेड़ के नीचे एक शिलापट लगा दिया है.

शहीद आंदोलनकारियों की याद दिलाता है नीम का पेड़.

800 लोगों को दी गई थी फांसी
आंदोलनकारी गप्पू लाल भगत के तीसरी पीढ़ी के बेटे सूरज श्रीवास्तव ने बताया कि 800 लोगों की फांसी इसी नीम के पेड़ में अंग्रेजों ने दी थी. इससे पहले इस जगह पर लाइन से सात पेड़ थे, लेकिन आज सिर्फ एक पेड़ बचा है. इस पेड़ को बचाने के लिए मेरे पिता ने कई बार अभियान चलाया था. इसी पेड़ के नीचे मेरे बाबा गप्पू लाल भगत को भी अंग्रेजों ने फांसी दी थी और उन्हीं 800 भारतीय में एक मेरे बाबा भी थे. आज भी उन्हें याद करके इस पेड़ को देखा करता हूं.

आज भी जीवित है आंदोलनकारियों कुर्बानी
सूरज श्रीवास्तव ने बताया कि प्रयागराज में जितने भी आंदोलन हुए और अंग्रेजों के हाथ लगने वाले सभी आंदोलकारियों को इसी नीम के पेड़ पर फांसी दिया गया था. इस नीम के पेड़ को देखने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आईं थीं. इसके साथ ही बड़े-बड़े दिग्गज नेता यहां आकर शहीदों को याद किया करते हैं. इस पेड़ का देखरेख मेरे बाबा के बड़े बेटे ने किया और अब उनके मारने के बाद मेरे पिता जी के भाई कर रहे हैं.

Intro:प्रयागराज: आजादी की लड़ाई लड़ने वाले आठ सौ शहीद आंदोलनकारियों की याद दिलाता है यह नीम का पेड़

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* 15 अगस्त पैकेज स्टोरी
सुमित यादव

प्रयागराज: देश की आजादी को लेकर भारत कितने वीर सपूतों अपनी जान गवाई. अंग्रेजी हुकूमत से लड़कर और उनके खिलाफ आंदोलन करके देश को फिरंगियों से आजाद किया गया था. आजादी दिवस के मौके आप को प्रयागराज के कोतवाली स्थित एक ऐसा नीम के पेड़ से रूबरू कराने वाले हैं जहां 1857ई. में आठ सौ आंदोलनकारियों को अंग्रेजों ने कोतवाली स्थित नीम के पेड़ पर लटकाकर फाँसी दिया था. आजादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते अपने जान की कुर्बानी देने वाले शहीदों की वीरता की कहानी बयां कर रही है. नीम के पेड़ के अलग-बगल से जाने वाले लोग आज भी नीम का पेड़ देखते ही उनकी यादें ताजी हो जाती हैं. इस पेड़ की देखरेख शहीद परिवार के तीसरी पीढ़ी द्वारा की जा रही है. इसके साथ ही जिला प्रशासन ने भी इस पेड़ के नीचे एक शिलापट लगा दिया है. जिसमें लिखा है कि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा आठ सौ भारतीयों को फाँसी देने की बात लिखी गई है.



Body:सात नीम के पेड़ में से बचा एक पेड़

नीम के पेड़ पर लटकाये गए इलाहाबाद के रहने वाले शहीद आंदोलनकारी गप्पू लाल भगत के तीसरी पीढ़ी के बेटे सूरज श्रीवास्तव ने बताया कि भारतीयों को फाँसी इसी नीम के पेड़ में अंग्रेजी हुकूमत दिया करती थी. पहले इस जगह पर लाइन से सात पेड़ थे लेकिन आज सिर्फ एक पेड़ बचा है. इस पेड़ को बचाने के लिए मेरे पिता जी ने कई बार अभियान चलाया था. इसी पेड़ के नीचे मेरे बाबा गप्पू लाल भगत को भी अंग्रेजों ने फांसी दी थी और उन्हीं आठ सौ भारतीय में एक मेरे बाबा जी भी थे. आज भी उन्हें यादकरके इस पेड़ को देखा करता हूँ.


Conclusion:आज भी जीवित है आंदोलनकारियों कुर्बानी

सूरज श्रीवास्तव ने बताया कि प्रयागराज में जितने भी आन्दोल हुए और अंग्रेजों के हाथ लगने वाले सभी आंदोलकारियों को इसी नीम के पेड़ पर लटका कर फाँसी दिया गया था. इस नीम के पेड़ को देखने के लिए जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरागांधी थी तब वह भी कोतवाली स्थित इस पेड़ पास आकर क्रांतिकारियों को याद किया था. इसके साथ ही बड़े-बड़े दिग्गज नेता यहां आकर शहीदों को याद किया करते हैं. इस पेड़ का देखरेख मेरे बाबा के बड़े बेटे ने किया और अब उनके मारने के बाद मेरे पिता जी के भाई कर रहे हैं.

बाईट- सूरज श्रीवास्तव, आंदोलनकारी का वंशज
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