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High court बार एसोसिएशन का 150 वां स्थापना दिवस आज

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का 150 वां स्थापना दिवस है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ही नहीं बार भी है एशिया में सबसे बड़ा है. इस बार का गौरवशाली इतिहास रहा है.

High court news
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Published : Feb 2, 2023, 11:02 PM IST

प्रयागराज: हाईकोर्ट बार एसोसिएशन शुक्रवार को अपनी 150वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के गौरवशाली इतिहास में बेंच के साथ बार का भी अहम योगदान है. यह हाईकोर्ट एशियाई का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है. वहीं, बार एसोसिएशन भी एशिया में सबसे बड़ा है. मात्र 12 सदस्यों से बने हाईकोर्ट बार एसोसिशन में इस समय 31 हजार 270 सदस्य हैं. कुछ सदस्य भी ऐसे, जिन्होंने देश को स्वतंत्र बनाने में ही अग्रणी भूमिका निभाई है. बल्कि देश व प्रदेश की विधायिका और सर्वोच्च न्यायपालिका सहित अधिवक्ताओं की सबसे बड़ी संस्था को भी नेतृत्व प्रदान किया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आगरा से स्थानांतरित होने के बाद जब इलाहाबाद में कामकाज शुरू हुआ, तो यहां दो तरह के अधिवक्ता नामित थे. एक हाईकोर्ट द बैरिस्टर्स ऑफ द इंग्लिश और दूसरे आयरिश बार्स एंड एडवोकेट्स ऑफ स्कॉटलैंड. इनके अलावा कई वकील व प्लीडर भी थे. तीन फरवरी 1873 को 12 यूरोपियन बैरिस्टर्स ने मिलकर बार एसोसिएशन की स्थापना की. बार के पहले अध्यक्ष जॉर्डन बनाए गए. स्थापना के बाद बार एसोसिएशन का नाम बदलकर बार लाइब्रेरी हो गया.

तब सदस्यों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश से इसका पदेन अध्यक्ष बनने का आग्रह किया. जिसे स्वीकार करते हुए उन्होंने पदेन अध्यक्ष का कार्यभार संभाला. उस समय बार लाइब्रेरी एक अलग इकाई थी. 1875 में यहां प्रैक्टिस कर रहे वकीलों ने अलग संगठन बनाकर अयोध्या नाथ को अध्यक्ष नियुक्त किया. यह संगठन वकील एसोसिएशन बना. इस एसोसिएशन में सर सुंदर लाल, जोगेंद्र नाथ चौधरी, पं मोतीलाल नेहरू, पं जवाहर लाल नेहरू, पं मदन मोहन मालवीय, सर तेज बहादुर सप्रू, डॉ. कैलाश नाथ काटजू, पुरुषोत्तम दास टंडन, डॉ. सतीश चंद्र बनर्जी, प्यारे लाल बनर्जी, पं श्याम कृष्ण धर, डॉ. नारायण प्रसाद अस्थाना, पं गोपाल स्वरूप पाठक, पं कन्हैया लाल मिश्र आदि सदस्य थे. यह संगठन 1928 तक कार्य करता रहा.

वर्ष 1926 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया का अधिनियम पारित होने के बाद 1928 में वकील एसोसिएशन का नाम बदलकर एडवोकेट एसोसिएशन कर दिया गया. बार लाइब्रेरी और एडवोकेट एसोसिएशन के अलावा एक अन्य संगठन था. जिसका नाम इंडियन बैरिस्टर था. इसमें वे लोग होते थे, जिनका सदस्यता प्रार्थनापत्र बार लाइब्रेरी की ओर से निरस्त कर दिया जाता था.

जब निहाल चंद का सदस्यता प्रार्थनापत्र बार लाइब्रेरी की ओर से निरस्त कर दिया गया. तब उन्होंने कई अन्य लोगों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया. उसे 1933 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की ओर से मान्यता प्रदान की गई. तब से इसे हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के नाम से जाना जाने लगा. इसमें एडवोकेट्स ओर बैरिस्टर्स दोनों शामिल थे. 1947 में जस्टिस बी मलिक मुख्य न्यायाधीश बने तो उन्होंने अधिवक्ताओं के लिए एक बिल्डिंग निर्माण की मंजूरी दी. इसी भवन में वर्तमान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन स्थित है.

अधिवक्ताओं के लिए बिल्डिंग का निर्माण मुख्य न्यायमूर्ति ओएच मूथम के कार्यकाल में पूरा हुआ। इस दौरान उन्होंने एक सुझाव दिया क्यों न हाईकोर्ट के सभी अधिवक्ताओं का एक सम्मिलित संगठन बनाया जाए. 19 सितंबर 1957 को तत्कालीन महाधिवक्ता कन्हैयालाल मिश्र ने तीनों संगठन बार लाइब्रेरी, एडवोकेट एसोसिएशन एवं बार एसोसिएशन को पत्र लिखकर मुख्य न्यायाधीश के सुझाव की जानकारी दी कि तीनों संगठनों को सम्मिलित कर एक संगठन बनाया जाए. उसके बाद तीनों संगठनों ने 18 व 28 नवंबर 1957 को संयुक्त सभा में प्रस्ताव पारित किया. इन तीनों संगठनों को संयुक्त कर इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन नाम दिया गया. तबसे यही नाम चला आ रहा है.

सदस्य जो राजनीति के महारथी बने:पं जवाहर लाल नेहरू (प्रधानमंत्री), पुरुषोत्तम दास टंडन (कैबिनेट मंत्री), केशरी नाथ त्रिपाठी (विधानसभा अध्यक्ष व राज्यपाल), शांति भूषण (केंद्रीय कानून मंत्री), राम शिरोमणि शुक्ल (विधायक).न्याय पालिका के सर्वोच्च पद (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) पर पहुंचे जस्टिस केएन सिंह एवं न्यायमूर्ति वीएन खरे.

पदाधिकारी जिन्होंने न्यायाधीश बनकर बार का गौरव बढ़ाया:न्यायमूर्ति राजेश्वरी प्रसाद, न्यायमूर्ति मुरलीधर, न्यायमूर्ति आरसी श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति वीके चतुर्वेदी, न्यायमूर्ति वीके शुक्ल, न्यायमूर्ति अशोक भूषण (सुप्रीम कोर्ट), न्यायमूर्ति एके योग, न्यायमूर्ति आरआरके त्रिवेदी.

अधिवक्ताओं की सर्वोच्च संस्था का नेतृत्व करने वाले पदाधिकारी- हाईकोर्ट बार के सात बार अध्यक्ष रहे विनय चंद्र मिश्र यूपी बार कौंसिल के चेयरमैन होने के साथ बार काउंसिल ऑफ इंडिया के तीन बार अध्यक्ष रहे. वह प्रदेश के महाधिवक्ता भी रहे है. एनसी राजवंशी और टीपी सिंह ने यूपी बार कौंसिल का नेतृत्व किया. आनंद देव गिरि सॉलिसिटर जनरल रहे तो जाने माने विधिवेत्ता पं कन्हैयालाल मिश्र भी प्रदेश के महाधिवक्ता रहे.

प्रयागराज: हाईकोर्ट बार एसोसिएशन शुक्रवार को अपनी 150वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के गौरवशाली इतिहास में बेंच के साथ बार का भी अहम योगदान है. यह हाईकोर्ट एशियाई का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है. वहीं, बार एसोसिएशन भी एशिया में सबसे बड़ा है. मात्र 12 सदस्यों से बने हाईकोर्ट बार एसोसिशन में इस समय 31 हजार 270 सदस्य हैं. कुछ सदस्य भी ऐसे, जिन्होंने देश को स्वतंत्र बनाने में ही अग्रणी भूमिका निभाई है. बल्कि देश व प्रदेश की विधायिका और सर्वोच्च न्यायपालिका सहित अधिवक्ताओं की सबसे बड़ी संस्था को भी नेतृत्व प्रदान किया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आगरा से स्थानांतरित होने के बाद जब इलाहाबाद में कामकाज शुरू हुआ, तो यहां दो तरह के अधिवक्ता नामित थे. एक हाईकोर्ट द बैरिस्टर्स ऑफ द इंग्लिश और दूसरे आयरिश बार्स एंड एडवोकेट्स ऑफ स्कॉटलैंड. इनके अलावा कई वकील व प्लीडर भी थे. तीन फरवरी 1873 को 12 यूरोपियन बैरिस्टर्स ने मिलकर बार एसोसिएशन की स्थापना की. बार के पहले अध्यक्ष जॉर्डन बनाए गए. स्थापना के बाद बार एसोसिएशन का नाम बदलकर बार लाइब्रेरी हो गया.

तब सदस्यों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश से इसका पदेन अध्यक्ष बनने का आग्रह किया. जिसे स्वीकार करते हुए उन्होंने पदेन अध्यक्ष का कार्यभार संभाला. उस समय बार लाइब्रेरी एक अलग इकाई थी. 1875 में यहां प्रैक्टिस कर रहे वकीलों ने अलग संगठन बनाकर अयोध्या नाथ को अध्यक्ष नियुक्त किया. यह संगठन वकील एसोसिएशन बना. इस एसोसिएशन में सर सुंदर लाल, जोगेंद्र नाथ चौधरी, पं मोतीलाल नेहरू, पं जवाहर लाल नेहरू, पं मदन मोहन मालवीय, सर तेज बहादुर सप्रू, डॉ. कैलाश नाथ काटजू, पुरुषोत्तम दास टंडन, डॉ. सतीश चंद्र बनर्जी, प्यारे लाल बनर्जी, पं श्याम कृष्ण धर, डॉ. नारायण प्रसाद अस्थाना, पं गोपाल स्वरूप पाठक, पं कन्हैया लाल मिश्र आदि सदस्य थे. यह संगठन 1928 तक कार्य करता रहा.

वर्ष 1926 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया का अधिनियम पारित होने के बाद 1928 में वकील एसोसिएशन का नाम बदलकर एडवोकेट एसोसिएशन कर दिया गया. बार लाइब्रेरी और एडवोकेट एसोसिएशन के अलावा एक अन्य संगठन था. जिसका नाम इंडियन बैरिस्टर था. इसमें वे लोग होते थे, जिनका सदस्यता प्रार्थनापत्र बार लाइब्रेरी की ओर से निरस्त कर दिया जाता था.

जब निहाल चंद का सदस्यता प्रार्थनापत्र बार लाइब्रेरी की ओर से निरस्त कर दिया गया. तब उन्होंने कई अन्य लोगों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया. उसे 1933 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की ओर से मान्यता प्रदान की गई. तब से इसे हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के नाम से जाना जाने लगा. इसमें एडवोकेट्स ओर बैरिस्टर्स दोनों शामिल थे. 1947 में जस्टिस बी मलिक मुख्य न्यायाधीश बने तो उन्होंने अधिवक्ताओं के लिए एक बिल्डिंग निर्माण की मंजूरी दी. इसी भवन में वर्तमान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन स्थित है.

अधिवक्ताओं के लिए बिल्डिंग का निर्माण मुख्य न्यायमूर्ति ओएच मूथम के कार्यकाल में पूरा हुआ। इस दौरान उन्होंने एक सुझाव दिया क्यों न हाईकोर्ट के सभी अधिवक्ताओं का एक सम्मिलित संगठन बनाया जाए. 19 सितंबर 1957 को तत्कालीन महाधिवक्ता कन्हैयालाल मिश्र ने तीनों संगठन बार लाइब्रेरी, एडवोकेट एसोसिएशन एवं बार एसोसिएशन को पत्र लिखकर मुख्य न्यायाधीश के सुझाव की जानकारी दी कि तीनों संगठनों को सम्मिलित कर एक संगठन बनाया जाए. उसके बाद तीनों संगठनों ने 18 व 28 नवंबर 1957 को संयुक्त सभा में प्रस्ताव पारित किया. इन तीनों संगठनों को संयुक्त कर इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन नाम दिया गया. तबसे यही नाम चला आ रहा है.

सदस्य जो राजनीति के महारथी बने:पं जवाहर लाल नेहरू (प्रधानमंत्री), पुरुषोत्तम दास टंडन (कैबिनेट मंत्री), केशरी नाथ त्रिपाठी (विधानसभा अध्यक्ष व राज्यपाल), शांति भूषण (केंद्रीय कानून मंत्री), राम शिरोमणि शुक्ल (विधायक).न्याय पालिका के सर्वोच्च पद (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) पर पहुंचे जस्टिस केएन सिंह एवं न्यायमूर्ति वीएन खरे.

पदाधिकारी जिन्होंने न्यायाधीश बनकर बार का गौरव बढ़ाया:न्यायमूर्ति राजेश्वरी प्रसाद, न्यायमूर्ति मुरलीधर, न्यायमूर्ति आरसी श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति वीके चतुर्वेदी, न्यायमूर्ति वीके शुक्ल, न्यायमूर्ति अशोक भूषण (सुप्रीम कोर्ट), न्यायमूर्ति एके योग, न्यायमूर्ति आरआरके त्रिवेदी.

अधिवक्ताओं की सर्वोच्च संस्था का नेतृत्व करने वाले पदाधिकारी- हाईकोर्ट बार के सात बार अध्यक्ष रहे विनय चंद्र मिश्र यूपी बार कौंसिल के चेयरमैन होने के साथ बार काउंसिल ऑफ इंडिया के तीन बार अध्यक्ष रहे. वह प्रदेश के महाधिवक्ता भी रहे है. एनसी राजवंशी और टीपी सिंह ने यूपी बार कौंसिल का नेतृत्व किया. आनंद देव गिरि सॉलिसिटर जनरल रहे तो जाने माने विधिवेत्ता पं कन्हैयालाल मिश्र भी प्रदेश के महाधिवक्ता रहे.

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