प्रतापगढ़: बहुजन समाज पार्टी का ब्राह्मण सम्मेलन आज होगा. प्रबुद्ध वर्ग के सम्मान में इस विचार गोष्ठी में बसपा के वरिष्ठ नेता व राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र शामिल होंगे. बसपा के कई और प्रमुख नेता भी इस गोष्ठी में शामिल होंगे. इसमें ब्राह्मणों को जोड़ने और बहुजन समाज पार्टी की सरकार में ब्राह्मणों को लेकर किए गए कामकाज को बताया जाएगा. साथ ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में ब्राह्मणों के उत्पीड़न का मुद्दा भी बहुजन समाज पार्टी उठाएगी.
पूर्व विधायक राम शिरोमणि शुक्ला ने कहा कि प्रतापगढ़ जिले की रानीगंज तहसील अंतर्गत रामनगर में आज बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्रा ब्राह्मण महासभा सम्मेलन को संबोधित करेंगे. 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर ब्राह्मणों को एकत्र किया जा रहा है. सम्मेलन में करीब 10 हजार ब्राह्मण इकट्ठा होने की उम्मीद है.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में करीब 14 साल बाद ब्राह्मण समाज को एक बार फिर से जोड़कर बसपा अध्यक्ष मायावती सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को जमीन पर उतारने की कोशिश कर रही हैं. ब्राह्मणों को बसपा से जोड़ने की जिम्मेदारी पार्टी के महासचिव सतीष चंद्र मिश्रा के कंधों पर है, लेकिन 2007 के आंकड़ों को दोहरा पाना बसपा के लिए इस बार के विधानसभा चुनाव में आसान नहीं होगा. बसपा के तमाम ब्राह्मण नेता 14 सालों में मायावती को छोड़कर, बीजेपी या दूसरे दलों में शामिल हो चुके हैं. बसपा महासचिव सतीष चंद्र मिश्रा ने 23 जुलाई को अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन शुरुआत की. इसके बाद अंबेडकरनगर, प्रयागराज में भी इस तरह से सम्मेलन किए गए. राज्य के सभी 18 मंडलों और उसके बाद सभी जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन किए जाने हैं.
सतीश चंद्र मिश्रा प्रत्येक ब्राह्मण सम्मेलन में यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बीएसपी के साथ अगर 13 प्रतिशत ब्राह्मण जुड़ता है तो 23 प्रतिशत दलित समाज के साथ मिलकर जीत पक्की है. इसी तरह का नारा 2007 में भी बीएसपी ने दिया था और पार्टी से 41 ब्राह्मण विधायक जीतकर आए थे, लेकिन एक-एक करके वो पार्टी छोड़ते गए. वर्तमान समय में बीएसपी के पास ब्राह्मण चेहरे के नाम पर सतीष चंद्र मिश्रा, नकुल दूबे, विनय तिवारी, रत्नेश पांडेय और पवन पांडेय प्रमुख हैं. जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज बसपा को विकल्प के तौर पर देख चुका है. सरकार बनने के बावजूद, ब्राह्मण समाज को कोई विशेष फायदा नहीं हुआ. साल 2007 में वोट तो बसपा को मिला, लेकिन लाभ और सुविधाएं ब्राह्मण समाज को नहीं मिलीं. उस दौर में तमाम ब्राह्मण नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. अब बसपा का ये राजनीतिक लॉलीपॉप ब्राह्मण समाज को कितना लुभा पाता है, ये देखने वाली बात होगी.
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2007 के उत्तर प्रदेश चुनाव में सीएसडीएस की रिपोर्ट के अनुसार केवल 17 प्रतिशत ब्राह्मणों ने ही मायावती को वोट दिया था. इसमें से भी अधिकतर वोट बसपा को उन सीटों पर मिले थे, जहां पार्टी ने ब्राह्मण उम्मीदवार खड़े किए थे. बसपा ने 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया था, जिनमें 41 बसपा से जीते थे और 15 मंत्री बने थे. हालांकि, 2007 के विधानसभा में बीजेपी को 40 प्रतिशत ब्राह्मण वोट मिले थे. ऐसे में अगर ब्राह्मण भाजपा से दूरी बनाते हैं, तब भी बसपा को सपा और कांग्रेस से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा. वहीं कांग्रेस और सपा भी ब्राह्मणों को लुभाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही हैं तो बीजेपी उन्हें अपने पाले में रखने की जुगत में लगी है.