प्रतापगढ़: जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर लखनऊ-वाराणसी हाईवे पर रानीगंज बाजार से दो किलोमीटर की दूरी पर ऐतिहासिक और पौराणिक महत्ता को समेटे हुए अजगरा धाम है. यहां महाभारत कालीन यक्ष और युधिष्ठिर संवाद स्थल है. कहा जाता है कि यहीं पर नाराज होकर ऋषियों ने राजा नहुष को अजगर बन जाने का श्राप दिया था, जिसके कारण इसका नाम अजगरा पड़ गया.
ऐसी मान्यता है कि
ब्रम्ह हत्या का प्रायश्चित कर रहे राजा इंद्र के स्थान पर राजा नहुष को इंद्रलोक का आसन दिया जाने लगा. राजा नहुष इस बात से इतने अभिमान से भर गए कि उन्होंने पालकी उठाने के लिए सप्त ऋषियों को लगा दिया. ऋषियों के धीरे-धीरे चलने के कारण नहुष ने ऋषियों को अपमानित करते हुए कहा कि सांप की तरफ चलो रेंगो नहीं. जिससे नाराज होकर ऋषि अगस्त ने उन्हें अजगर हो जाने का श्राप दे दिया. तभी से इस स्थान का नाम अजगरा पड़ गया.
अजगरा धाम जिस सरोवर के तट पर बसा है यह वही सरोवर है, जहां प्यास लगने के कारण पांडवों ने पानी पीने का प्रयास किया और यक्ष के सही उत्तर नहीं देने पर एक-एक करके सभी मूर्क्षित हो गए. अंत मे युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देकर अपने भाइयों के प्राणों की रक्षा की और राजा नहुष को अजगर योनि से मुक्ति भी दी.
सरोवर के आस-पास बहुत से पुरातत्व के अवशेष मिलते हैं, जो राजा नहुष के किले का प्रमाण देते हैं. अजगरा में एक संग्रहालय भी है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं. कई पुरातत्व वैज्ञानिकों का मानना है कि अजगरा में समृद्ध इतिहास और उससे जुड़ी कई जानकारियां मिल सकती हैं.