पीलीभीत: इंडो-नेपाल बॉर्डर पर नेपाल अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. पड़ोसी देश नेपाल की सीमा को लेकर उपजे विवाद के बाद सुतिया नदी में पानी के चलते इंडो-नेपाल सीमा व नो मेंस लैंड जमीन की निगरानी संभव नहीं थी. ऐसे में एसएसबी कमांडेंट के आग्रह पर ग्रामीणों ने चंदा एकत्र कर नदी पर बांस के पुल का निर्माण करा दिया. इससे अब सरहद की निगरानी हो पा रही है. ग्रामीणों के इस प्रयास की काफी सराहना हो रही है. वहीं नो मेंस लैंड की जमीन पर अतिक्रमण कर रहे नेपालियों में हड़कंप मचा हुआ है.
नेपाली नागरिकों ने किया अवैध कब्जा
इंडो-नेपाल बॉर्डर पर नो मेंस लैंड पर अधिकतर नेपाली लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है और उन पर खेती कर रहे हैं. कई स्थानों पर पक्के निर्माण भी किए गए हैं. हालांकि इसको लेकर आए दिन दोनों देशों के बीच विवाद बना रहता है, जिसके चलते अधिकारियों की बैठकें होती रहती हैं, लेकिन आज तक सीमा से अतिक्रमण नहीं हट सका.
रुकवाया था नेपाल की सड़क का काम
बीती 5 जुलाई को नेपाल द्वारा सीमा के पिलर नंबर 38 और 39 के बीच कराये जा रहे सड़क निर्माण को पीलीभीत के अधिकारियों द्वारा रुकवाया गया था. नो मेंस लैंड पर नेपाल द्वारा सड़क निर्माण की सूचना पाकर मौके पर तत्कालीन जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव अधिकारियों के साथ नाव से नाला पार करके पहुंचे थे. विवाद से दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण स्थिति हो गई थी. हालांकि बाद में सीमांकन होने तक निर्माण कार्य को रोक दिया गया था, लेकिन आज भी लगातार सड़क निर्माण की सामग्री ट्रकों से लाई जा रही है, लेकिन नो मेंस लैंड तक भारतीय सेना नहीं जा पा रही थी.
ग्राम प्रधान से कमांडेंट ने पुल बनाने का किया आग्रह
सुतिया नदी में जल स्तर अधिक होने के कारण सीमा की निगरानी संभव नहीं हो पा रही थी. ऐसे में एसएसबी 49वीं वाहिनी के कमांडेंट अजय कुमार ने ग्राम पंचायत बमनपुर भगीरथ के प्रधान गुरदेव सिंह से सुतिया नदी पर पुल निर्माण कराने का आग्रह किया. चूंकि सीमा पर ग्राम निधि से पुल का निर्माण नहीं हो सकता. ऐसे में गुरदेव सिंह ने ग्रामीणों से चंदा एकत्र कर पुल का निर्माण कराया, जो पांच दिन में पूर्ण हो गया. अब एसएसबी के जवान और क्षेत्रीय नागरिक आसानी से सीमा की निगरानी कर रहे हैं, ताकि नेपाल सरकार सीमा पर पुनः सड़क का निर्माण न शुरू कर दे. नेपाल की हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है.
ग्रामीणों ने दिया देशभक्ति का परिचय
ग्रामीणों ने देश की सुरक्षा में लगे जवानों को सीमा तक पहुंचाने के लिये पुल का निर्माण कर अपनी देशभक्ति का परिचय दिया. वहीं दोस्त कहे जाने वाले पड़ोसी देश नेपाल चीन की मदद से नो मेंस लैंड में सड़क का निर्माण करा रहा है. चीन का नाम इसलिए लिया जा रहा है, क्योंकि अभी तक नेपाल-भारत के मैत्री संबंध के चलते सीमा खुली थी और चौकसी कम थी और सड़क निर्माण कराने की हैसियत भी नहीं थी, लेकिन चीन भारत को हर तरफ से घेर कर डराना चाहता है. इसलिए नेपाल को अपनी गोद में बैठा लिया है.
नेपाल की करतूतों पर रखी जा सकेगी नजर
5 जुलाई को हुए विवाद के बाद सड़क का निर्माण तो रोक दिया गया, लेकिन सड़क निर्माण में लगने वाली सामग्री लगातर नो मेंस लैंड पर एकत्र की जा रही है. चीन-नेपाल के संबंध के बाद और सीमा पर सड़क का निर्माण होने से अब सीमा पर 24 घण्टे पेट्रोलिंग की जरूरत थी, जो कि इस पुल के बिना नहीं हो सकती थी. इसलिए एसएसबी के कहने पर गांव वालों के द्वारा वैकल्पिक पुल का निर्माण कराया गया. अब इस पुल से गुजर कर चीन की मदद से की जाने वाली नेपाल की करतूतों पर नजर रखी जा सकेगी. पुल निर्माण के बाद से एसएसबी के अधिकारी से लेकर जवान तक गांव वालों की देशभक्ति की तारीफ कर रहे हैं.
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सीमा की सुरक्षा के लिए करना होगा पुख्ता इंतजाम
भारत के गांव में बसने वाले लोगों ने भारत के दुश्मन को दिखा दिया कि वह अपनी सेना और अपने देश के लिए क्या-क्या कर सकते हैं. आज इस गांव की हर तरफ तारीफ हो रही है. वहीं ग्रामीणों के प्रयास से जनप्रतिनिधियों को सबक भी लेना चाहिए. भारत सरकार और प्रदेश सरकार को जल्दी पुख्ता इंतजाम करना होगा. वरना चीन-नेपाल से जुड़ी सीमा पर भारत को नुकसान पहुंचाने के लिये इन सड़कों का इस्तेमाल कर सकता है.