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विश्व कछुआ दिवस: खतरे में पड़ा कछुओं का भविष्य

पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य श्रृंखला को लेकर कछुओं की महत्तवपूर्ण भूमिका रही है. हालांकि पिछले कुछ समय से कछुओं की प्रजाति खतरे में है.

पीलीभीत
खतरे में कछुओं का भविष्य
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Published : May 23, 2020, 8:54 PM IST

पीलीभीत: विश्व में कछुओं की लगभग 300 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 29 प्रजातियां हमारे देश में पाई जाती हैं. उत्तर प्रदेश में कछुओं की 15 प्रजातियां पाई जाती हैं. पीलीभीत में भी 9 कछुओं की प्रजातियों की पहचान हुई है. जलीय कछुए नरम तथा कठोर कवच वाले दोनों प्रकार के होते हैं और धरती पर रहने वाले कूर्म कहलाते हैं. पहले यह प्रजातियां बहुतायत में पाई जाती थीं, परंतु पिछले कई दशकों से अवैध शिकार प्राकृतिक आवास में भारी क्षति के कारण इनकी अधिकांश प्रजातियां संकटग्रस्त हैं. कछुए जल तंत्र के गिद्ध होते हैं और नदी, तालाबों के दूषित पदार्थों और बीमार मछलियों को खाकर जल को प्रदूषण मुक्त कर हमारे उपयोग के लिए बनाए रखते हैं. कछुए परभक्षी होते हैं एवं खाद्य श्रंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

पौराणिक कथाओं में है विशेष महत्व

पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने कछप रूप धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया, तब जाकर देवताओं और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया. हमारी संस्कृति धर्म एवं लोकाचार में कछुओं का एक विशिष्ट स्थान है. हिंदू धर्म में कछुओं को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है. इन्हें यमुना नदी का वाहन भी माना जाता है. इस्लाम धर्म में इन्हें शापित जिन के रूप में माना जाता है.

वास्तुदोष में भी बड़ा महत्व

आज मनुष्य को सबसे ज्यादा धन की आवश्यकता है और उसका हर कार्य धन के लिए ही है. धन की प्राप्ति और अपने मनोरथ को पूर्ण करने के लिए वह धन के देवता कुबेर के प्रतीक कछुए को हाथ में मुद्रिका के रूप में पहनता है और धन यंत्र के रूप में अपने पूजा स्थान में जगह देता है. लेकिन आज बड़ी विडंबना है कि मनुष्य कछुए के प्रतीकों को तो बहुत अधिक महत्व दे रहा है परंतु साक्षात जीवित कछुओं के लिए काल साबित हो रहा है. कहीं वह इसके लिए प्रत्यक्ष रूप में तो कहीं वह अप्रत्यक्ष रूप में उनकी हत्या में शामिल है. कछुओं का अत्याधिक शिकार मांस भक्षण एवं औषधि निर्माण के लिए किया जाता है. कछुआ का स्थानीय स्तर पर भी शिकार किया जाता है और कुछ संगठित समूह इनकी तस्करी में भी लिप्त हैं.

बहुत सारे मछली का शिकार करने वालों के द्वारा निशप्रयोज जालों को समुद्र, नदियों में फेंक दिया जाता है. इनमें बहुत सारे कछुऐ उलझ कर मृत्यु को प्राप्त होते हैं, जो कि हमको प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं देता. कछुए समुंदरों, नदियों, जलाशयों, झीलों, छोटे तलाबों में निवास करते हैं, लेकिन मानव की उपभोग नीति के कारण जल संसाधनों की कमी हो रही है. नदिया दूषित हो रही हैं, जल संरचनाओं को मानव की विस्तार वाद नीति के कारण नष्ट किए जा रहे हैं. इससे कछुओं का प्राकृतिक वास नष्ट हो रहा है. बहुत सारा अजैविक कचरा नदियों में बहाये जाने के कारण पानी प्रदूषित हो रहा है.

खतरे में कछुओं का भविष्य

मांस भक्षण के लिए शिकार, दवा निर्माण के लिए तस्करी और प्राकृतिक वास का नष्ट होना, नदियों का प्रदूषित होना, समुद्रों में कचरे का एकत्रीकरण यह वह प्रमुख कारण हैं, जिनसे आज इस प्रजाति पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. यह स्थिति केवल एक देश में ही नहीं अपितु पूरे संसार में है, इसलिए पूरा विश्व इनके संरक्षण के लिए कार्य कर रहा है. ताकि पृथ्वी पर सबसे अधिक समय तक जीवित रहने वाले प्राणी को बचाया जा सके. इनके संरक्षण में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया, टीएसए जैसे संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और प्रथम पंक्ति के रूप में वन विभाग इनके संरक्षण में लगा हुआ है. प्रत्येक देशवासियों का कर्तव्य है कि हम प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को संरक्षण प्रदान कर सकें, ताकि पृथ्वी पर जैव विविधता का संतुलन बरकरार रहे.

पीलीभीत: विश्व में कछुओं की लगभग 300 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 29 प्रजातियां हमारे देश में पाई जाती हैं. उत्तर प्रदेश में कछुओं की 15 प्रजातियां पाई जाती हैं. पीलीभीत में भी 9 कछुओं की प्रजातियों की पहचान हुई है. जलीय कछुए नरम तथा कठोर कवच वाले दोनों प्रकार के होते हैं और धरती पर रहने वाले कूर्म कहलाते हैं. पहले यह प्रजातियां बहुतायत में पाई जाती थीं, परंतु पिछले कई दशकों से अवैध शिकार प्राकृतिक आवास में भारी क्षति के कारण इनकी अधिकांश प्रजातियां संकटग्रस्त हैं. कछुए जल तंत्र के गिद्ध होते हैं और नदी, तालाबों के दूषित पदार्थों और बीमार मछलियों को खाकर जल को प्रदूषण मुक्त कर हमारे उपयोग के लिए बनाए रखते हैं. कछुए परभक्षी होते हैं एवं खाद्य श्रंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

पौराणिक कथाओं में है विशेष महत्व

पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने कछप रूप धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया, तब जाकर देवताओं और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया. हमारी संस्कृति धर्म एवं लोकाचार में कछुओं का एक विशिष्ट स्थान है. हिंदू धर्म में कछुओं को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है. इन्हें यमुना नदी का वाहन भी माना जाता है. इस्लाम धर्म में इन्हें शापित जिन के रूप में माना जाता है.

वास्तुदोष में भी बड़ा महत्व

आज मनुष्य को सबसे ज्यादा धन की आवश्यकता है और उसका हर कार्य धन के लिए ही है. धन की प्राप्ति और अपने मनोरथ को पूर्ण करने के लिए वह धन के देवता कुबेर के प्रतीक कछुए को हाथ में मुद्रिका के रूप में पहनता है और धन यंत्र के रूप में अपने पूजा स्थान में जगह देता है. लेकिन आज बड़ी विडंबना है कि मनुष्य कछुए के प्रतीकों को तो बहुत अधिक महत्व दे रहा है परंतु साक्षात जीवित कछुओं के लिए काल साबित हो रहा है. कहीं वह इसके लिए प्रत्यक्ष रूप में तो कहीं वह अप्रत्यक्ष रूप में उनकी हत्या में शामिल है. कछुओं का अत्याधिक शिकार मांस भक्षण एवं औषधि निर्माण के लिए किया जाता है. कछुआ का स्थानीय स्तर पर भी शिकार किया जाता है और कुछ संगठित समूह इनकी तस्करी में भी लिप्त हैं.

बहुत सारे मछली का शिकार करने वालों के द्वारा निशप्रयोज जालों को समुद्र, नदियों में फेंक दिया जाता है. इनमें बहुत सारे कछुऐ उलझ कर मृत्यु को प्राप्त होते हैं, जो कि हमको प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं देता. कछुए समुंदरों, नदियों, जलाशयों, झीलों, छोटे तलाबों में निवास करते हैं, लेकिन मानव की उपभोग नीति के कारण जल संसाधनों की कमी हो रही है. नदिया दूषित हो रही हैं, जल संरचनाओं को मानव की विस्तार वाद नीति के कारण नष्ट किए जा रहे हैं. इससे कछुओं का प्राकृतिक वास नष्ट हो रहा है. बहुत सारा अजैविक कचरा नदियों में बहाये जाने के कारण पानी प्रदूषित हो रहा है.

खतरे में कछुओं का भविष्य

मांस भक्षण के लिए शिकार, दवा निर्माण के लिए तस्करी और प्राकृतिक वास का नष्ट होना, नदियों का प्रदूषित होना, समुद्रों में कचरे का एकत्रीकरण यह वह प्रमुख कारण हैं, जिनसे आज इस प्रजाति पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. यह स्थिति केवल एक देश में ही नहीं अपितु पूरे संसार में है, इसलिए पूरा विश्व इनके संरक्षण के लिए कार्य कर रहा है. ताकि पृथ्वी पर सबसे अधिक समय तक जीवित रहने वाले प्राणी को बचाया जा सके. इनके संरक्षण में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया, टीएसए जैसे संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और प्रथम पंक्ति के रूप में वन विभाग इनके संरक्षण में लगा हुआ है. प्रत्येक देशवासियों का कर्तव्य है कि हम प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को संरक्षण प्रदान कर सकें, ताकि पृथ्वी पर जैव विविधता का संतुलन बरकरार रहे.

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