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रामपुर तिराहा कांड, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आरोपियों और यूपी सरकार को जारी किया नोटिस

उत्तराखंड के लोगों के लिए 2 अक्टूबर 1994 का ये वो काला दिन है जब निरंकुश बनी पुलिस ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर अत्याचार की इंतेहा कर दी थी. रामपुर तिराहा कांड में 7 राज्य आंदोलनकारी पुलिस की गोली से शहीद हो गए थे. इसलिए उत्तराखंडवासी इसे शहादत दिवस के रूप में भी याद करते हैं. इस मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रामपुर तिराहा कांड के आरोपी मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह, सीबीआई जिला जज देहरादून, उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जबाव दाखिल करने को कहा है. इस मामले की अगली सुनवाई 5 सितंबर को होगी.

उत्तराखंड हाईकोर्ट
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Published : Aug 23, 2022, 10:53 AM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने रामपुर तिराहा कांड (Rampur Tiraha incident) के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. उच्च न्यायालय ने राज्य आंदोलन के दौरान रामपुर तिराहा कांड के आरोपी मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह, सीबीआई जिला जज देहरादून, उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जबाव दाखिल करने को कहा है. इस मामले की अगली सुनवाई 5 सितंबर को होगी.

हाईकोर्ट ने जिला जज/ विशेष जज सीबीआई देहरादून से इस मामले को देहरादून से मुजफ्फरनगर स्थानांतरित करने के आदेश की प्रमाणित प्रति पेश करने को कहा है. मामले की सुनवाई वरिष्ठ न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा की एकलपीठ में हुई. मामले के अनुसार, उत्तराखंड आंदोलनकारी अधिवक्ता मंच के अध्यक्ष रमन साह ने जिला जज व विशेष जज सीबीआई देहरादून की अदालत द्वारा मुजफ्फरनगर कांड से संबंधित मुकदमे को देहरादून से मुजफ्फरनगर कोर्ट में ट्रांसफर करने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है.
पढ़ें-रामपुर तिराहा कांड: शहीदों को दी श्रद्धांजलि, आंदोलनकारी बोले- नहीं हुआ न्याय

याचिकाकर्ता का कहना है कि 2 अक्टूबर 1994 को उत्तराखंड आंदोलन के दौरान दिल्ली जा रहे सैकड़ों उत्तराखंडियों के साथ रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर में बर्बरतापूर्ण व्यवहार हुआ था. इस मामले की सीबीआई जांच के बाद सीबीआई ने देहरादून की अदालत में उक्त आरोपियों के खिलाफ 304 के तहत चार्जशीट दाखिल की थी. जिसका कोर्ट ने 302 के तहत संज्ञान लिया था. इस मामले में अधिवक्ता रमन साह ने सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को हाईकोर्ट में दायर करने की छूट दी थी. जिसके बाद यह मामला हाईकोर्ट में दायर हुआ है, जबकि मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं.

मुजफ्फरनगर कांड: यह पूरा घटना क्रम 1 अक्टूबर, 1994 की रात से जुड़ा है, जब आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग कर पहाड़ी प्रदेश की मांग कर रहे थे. राज्य आंदोलनकारी दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए इस पर्वतीय क्षेत्र की अलग-अलग जगहों से 24 बसों में सवार हो कर 1 अक्टूबर को रवाना हो गये. देहरादून से आंदोलनकारियों के रवाना होते ही इनको रोकने की कोशिश की जाने लगी. इस दौरान पुलिस ने रुड़की के गुरुकुल नारसन बॉर्डर पर नाकाबंदी की, लेकिन आंदोलनकारियों की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और फिर आंदोलनकारियों का हुजूम यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गया. लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों को रोक दिया.
पढ़ें-1994 का मुजफ्फनगर कांड: दोषियों को 27 साल बाद भी नहीं मिल पाई सजा, जानिए पूरा घटनाक्रम

आंदोलन की कुचलने की साजिश: आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर में रोक तो लिया लेकिन आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़ गए. इस दौरान पुलिस से आंदोलनकारियों की नोकझोंक शुरू हो गई. इस बीच जब राज्य आंदोलनकारियों ने सड़क पर नारेबाजी शुरू कर दी तो अचानक यहां पथराव शुरू हो गया, जिसमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए, जिसके बाद यूपी पुलिस ने बर्बरता की सभी हदें पार करते हुए राज्य आंदोलनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई सौ से ज्यादा राज्य आंदोलनकारियों को हिरासत में भी ले लिया गया.

यूपी पुलिस की बर्बरता: उस रात ऐसा कुछ भी हुआ जिसने तमाम महिलाओं की जिंदगियां बर्बाद कर दीं. आंदोलन करने गईं तमाम महिलाओं से बलात्कार जैसी घटनाएं भी हुईं. यह सब कुछ रात भर चलता रहा. यह बर्बरता जब आंदोलनकारियों पर हो रही थी, तो उस रात कुछ लोग महिलाओं को शरण देने के लिए आगे भी आए. उस दिन पुलिस की गोलियों से देहरादून नेहरू कालोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, जबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी शहीद हुए थे.

यूपी पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं थमी. देर रात लगभग पौने तीन बजे यह सूचना आई कि 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे में यह खबर मिलते ही रामपुर तिराहे पर एक बार फिर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. जब 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंचे तो पुलिस और राज्य आंदोलनकारियों के बीच झड़प शुरू हो गई. इस दौरान आंदोलकारियों को रोकने के लिए यूपी पुलिस ने 24 राउंड फायरिंग की, जिसमें सात आंदोलनकारियों की जान चली गई और 17 राज्य आंदोलनकारी बुरी तरह घायल हो गए.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने रामपुर तिराहा कांड (Rampur Tiraha incident) के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. उच्च न्यायालय ने राज्य आंदोलन के दौरान रामपुर तिराहा कांड के आरोपी मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह, सीबीआई जिला जज देहरादून, उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जबाव दाखिल करने को कहा है. इस मामले की अगली सुनवाई 5 सितंबर को होगी.

हाईकोर्ट ने जिला जज/ विशेष जज सीबीआई देहरादून से इस मामले को देहरादून से मुजफ्फरनगर स्थानांतरित करने के आदेश की प्रमाणित प्रति पेश करने को कहा है. मामले की सुनवाई वरिष्ठ न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा की एकलपीठ में हुई. मामले के अनुसार, उत्तराखंड आंदोलनकारी अधिवक्ता मंच के अध्यक्ष रमन साह ने जिला जज व विशेष जज सीबीआई देहरादून की अदालत द्वारा मुजफ्फरनगर कांड से संबंधित मुकदमे को देहरादून से मुजफ्फरनगर कोर्ट में ट्रांसफर करने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है.
पढ़ें-रामपुर तिराहा कांड: शहीदों को दी श्रद्धांजलि, आंदोलनकारी बोले- नहीं हुआ न्याय

याचिकाकर्ता का कहना है कि 2 अक्टूबर 1994 को उत्तराखंड आंदोलन के दौरान दिल्ली जा रहे सैकड़ों उत्तराखंडियों के साथ रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर में बर्बरतापूर्ण व्यवहार हुआ था. इस मामले की सीबीआई जांच के बाद सीबीआई ने देहरादून की अदालत में उक्त आरोपियों के खिलाफ 304 के तहत चार्जशीट दाखिल की थी. जिसका कोर्ट ने 302 के तहत संज्ञान लिया था. इस मामले में अधिवक्ता रमन साह ने सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को हाईकोर्ट में दायर करने की छूट दी थी. जिसके बाद यह मामला हाईकोर्ट में दायर हुआ है, जबकि मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं.

मुजफ्फरनगर कांड: यह पूरा घटना क्रम 1 अक्टूबर, 1994 की रात से जुड़ा है, जब आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग कर पहाड़ी प्रदेश की मांग कर रहे थे. राज्य आंदोलनकारी दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए इस पर्वतीय क्षेत्र की अलग-अलग जगहों से 24 बसों में सवार हो कर 1 अक्टूबर को रवाना हो गये. देहरादून से आंदोलनकारियों के रवाना होते ही इनको रोकने की कोशिश की जाने लगी. इस दौरान पुलिस ने रुड़की के गुरुकुल नारसन बॉर्डर पर नाकाबंदी की, लेकिन आंदोलनकारियों की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और फिर आंदोलनकारियों का हुजूम यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गया. लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों को रोक दिया.
पढ़ें-1994 का मुजफ्फनगर कांड: दोषियों को 27 साल बाद भी नहीं मिल पाई सजा, जानिए पूरा घटनाक्रम

आंदोलन की कुचलने की साजिश: आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर में रोक तो लिया लेकिन आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़ गए. इस दौरान पुलिस से आंदोलनकारियों की नोकझोंक शुरू हो गई. इस बीच जब राज्य आंदोलनकारियों ने सड़क पर नारेबाजी शुरू कर दी तो अचानक यहां पथराव शुरू हो गया, जिसमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए, जिसके बाद यूपी पुलिस ने बर्बरता की सभी हदें पार करते हुए राज्य आंदोलनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई सौ से ज्यादा राज्य आंदोलनकारियों को हिरासत में भी ले लिया गया.

यूपी पुलिस की बर्बरता: उस रात ऐसा कुछ भी हुआ जिसने तमाम महिलाओं की जिंदगियां बर्बाद कर दीं. आंदोलन करने गईं तमाम महिलाओं से बलात्कार जैसी घटनाएं भी हुईं. यह सब कुछ रात भर चलता रहा. यह बर्बरता जब आंदोलनकारियों पर हो रही थी, तो उस रात कुछ लोग महिलाओं को शरण देने के लिए आगे भी आए. उस दिन पुलिस की गोलियों से देहरादून नेहरू कालोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, जबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी शहीद हुए थे.

यूपी पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं थमी. देर रात लगभग पौने तीन बजे यह सूचना आई कि 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे में यह खबर मिलते ही रामपुर तिराहे पर एक बार फिर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. जब 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंचे तो पुलिस और राज्य आंदोलनकारियों के बीच झड़प शुरू हो गई. इस दौरान आंदोलकारियों को रोकने के लिए यूपी पुलिस ने 24 राउंड फायरिंग की, जिसमें सात आंदोलनकारियों की जान चली गई और 17 राज्य आंदोलनकारी बुरी तरह घायल हो गए.

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