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ये हैं लावारिस लाशों की वारिस, 500 शवों का कर चुकीं दाह संस्कार

मुजफ्फरनगर जिले की रहने क्रांतिकारी शालू सैनी ने लोगों का उस वक्त साथ दिया, जब अपने ही लोग एक-दूसरे को छोड़कर जा रहे थे. सड़कों पर लावरिसों की तरह शव पड़े हुए थे. इस मुश्किल की घड़ी में शालू सैनी ने उन लाविरस शवों का दाह संस्कार किया और उनकी अस्थियों को गंगा में विसर्जित किया. आखिर शालू सैनी कौन हैं, यह सब करने के पीछे उनका क्या उद्देशय है, जानने के लिए पढ़िए ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट..

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शवों का दाह संस्कार
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Published : Aug 6, 2022, 5:47 PM IST

मुजफ्फरनगरः जिले के मोहल्ला दक्षिणी कृष्णापुरी की क्रांतिकारी शालू सैनी (बबिता सैनी) कोरोना काल से अब तक लगभग 500 शवों का दाह संस्कार कर चुकी हैं. अपने इस काम को लेकर वह काफी सुर्खियों में आईं. गौरतलब है कि कोरोना काल में जब परिजन, रिश्तेदार और पड़ोसी साथ छोड़ रहे थे उस वक्त शालू ने वह कर दिखाया, जिससे वह समाज की नजरों में छा गईं. वह मृतकों के शवों का दाह संस्कार करके उनकी अस्थियों को हरिद्वार शुक्रताल की गंगा में विसर्जन करतीं हैं. शालू सैनी की मानें तो कोरोना काल में करीब 200 लावारिस लाशों को कंधा देकर उनका अंतिम संस्कार किया.

कौन हैं क्रांतिकारी शालू सैनी ?
क्रांतिकारी शालू सैनी मुजफ्फरनगर के मोहल्ला दक्षिणी कृष्णापुरी के एक साधारण परिवार की रहने वाली हैं. उनके दो बच्चे हैं और घर पर ही ठाकुर जी (कृष्ण जी) भगवान की ड्रेस बनाकर बेचने व महिलाओं को भगवान की ड्रेस बनाने का कार्य सिखाती हैं. क्रांतिकारी शालू सैनी साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट नाम की संस्था भी चलाती हैं और वह उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. शालू सैनी अपनी संस्था के द्वारा सामाजिक कार्यों के अलावा शवों के दाह संस्कार का खर्च इसी से करती हैं. शालू सैनी का कहना है कि वह अभी तक लगभग 500 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से कर चुकी हैं व उनकी अस्थियों का विसर्जन शुक्रताल में करती हैं. इसी के चलते क्रांतिकारी शालू सैनी के सामाजिक कार्य के लिए उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका है.

पढ़ेंः वाराणसी: कक्षा 8 के छात्रों ने भूस्खलन से बचने की बनाई अनोखी डिवाइस, मलबे में फंसे जवान का लग जाएगा पता

शालू सैनी ने बताया कि क्रांतिकारी विचारधारा जब मन में होती है तभी हम क्रांतिकारी कार्य कर पाते हैं. उन्होंने ने बताया कि मैं एक एनजीओ चलाती हूं. करीब हम 500 शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं और करोना काल में अस्थियां श्मशान के बाहर तक मिली मैंने उनका विसर्जन किया. शालू ने बताया कि सामाजिक संस्कार उनके मन में बचपन से ही हैं. समाज से मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला और उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है लेकिन समाज भी उनका बहुत सहयोग करता है. उनकी संस्था द्वारा टोल फ्री नंबर जारी कर रखा है. इसमें उन्हें सभी थानों से सूचना मिलती है और इसमें पुलिस व प्रशासन भी उनकी सहायता करता है और वह वहां पहुंच जाती हैं.

शालू का कहना है कि उनके पड़ोसी भी उनके कार्य से बहुत खुश हैं. उनके पड़ोसी शैलेन्द्र, मनु व अन्य ने बताया कि उन्होंने कोरोना काल से अब तक लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया. उनका समाज में बहुत अच्छा संदेश जा रहा है और वह भी प्रयास करते हैं कि वह उनके साथ इस कार्य में जुड़ें.

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मुजफ्फरनगरः जिले के मोहल्ला दक्षिणी कृष्णापुरी की क्रांतिकारी शालू सैनी (बबिता सैनी) कोरोना काल से अब तक लगभग 500 शवों का दाह संस्कार कर चुकी हैं. अपने इस काम को लेकर वह काफी सुर्खियों में आईं. गौरतलब है कि कोरोना काल में जब परिजन, रिश्तेदार और पड़ोसी साथ छोड़ रहे थे उस वक्त शालू ने वह कर दिखाया, जिससे वह समाज की नजरों में छा गईं. वह मृतकों के शवों का दाह संस्कार करके उनकी अस्थियों को हरिद्वार शुक्रताल की गंगा में विसर्जन करतीं हैं. शालू सैनी की मानें तो कोरोना काल में करीब 200 लावारिस लाशों को कंधा देकर उनका अंतिम संस्कार किया.

कौन हैं क्रांतिकारी शालू सैनी ?
क्रांतिकारी शालू सैनी मुजफ्फरनगर के मोहल्ला दक्षिणी कृष्णापुरी के एक साधारण परिवार की रहने वाली हैं. उनके दो बच्चे हैं और घर पर ही ठाकुर जी (कृष्ण जी) भगवान की ड्रेस बनाकर बेचने व महिलाओं को भगवान की ड्रेस बनाने का कार्य सिखाती हैं. क्रांतिकारी शालू सैनी साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट नाम की संस्था भी चलाती हैं और वह उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. शालू सैनी अपनी संस्था के द्वारा सामाजिक कार्यों के अलावा शवों के दाह संस्कार का खर्च इसी से करती हैं. शालू सैनी का कहना है कि वह अभी तक लगभग 500 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से कर चुकी हैं व उनकी अस्थियों का विसर्जन शुक्रताल में करती हैं. इसी के चलते क्रांतिकारी शालू सैनी के सामाजिक कार्य के लिए उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका है.

पढ़ेंः वाराणसी: कक्षा 8 के छात्रों ने भूस्खलन से बचने की बनाई अनोखी डिवाइस, मलबे में फंसे जवान का लग जाएगा पता

शालू सैनी ने बताया कि क्रांतिकारी विचारधारा जब मन में होती है तभी हम क्रांतिकारी कार्य कर पाते हैं. उन्होंने ने बताया कि मैं एक एनजीओ चलाती हूं. करीब हम 500 शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं और करोना काल में अस्थियां श्मशान के बाहर तक मिली मैंने उनका विसर्जन किया. शालू ने बताया कि सामाजिक संस्कार उनके मन में बचपन से ही हैं. समाज से मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला और उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है लेकिन समाज भी उनका बहुत सहयोग करता है. उनकी संस्था द्वारा टोल फ्री नंबर जारी कर रखा है. इसमें उन्हें सभी थानों से सूचना मिलती है और इसमें पुलिस व प्रशासन भी उनकी सहायता करता है और वह वहां पहुंच जाती हैं.

शालू का कहना है कि उनके पड़ोसी भी उनके कार्य से बहुत खुश हैं. उनके पड़ोसी शैलेन्द्र, मनु व अन्य ने बताया कि उन्होंने कोरोना काल से अब तक लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया. उनका समाज में बहुत अच्छा संदेश जा रहा है और वह भी प्रयास करते हैं कि वह उनके साथ इस कार्य में जुड़ें.

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