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श्मशान पर दिखी इंसानियत और सौहार्द की मिसाल - muslim youth helped in cremation of hindu

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जाति और धर्म से बड़ी इंसानियत नजर आई. कोरोना संक्रमित अनुभव शर्मा के अंतिम संस्कार में मोहम्मद युनूस बड़े भाई की तहर मौजूद रहे.

मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
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Published : Apr 27, 2021, 2:29 PM IST

मुजफ्फरनगर : कोरोना काल में जहां अपने ही अपनों से दूर हो रहे हैं, वहीं इंसानियत को जिंदा रखने वाले मंजर भी नजर आ रहे हैं. मजहब की दीवारों को लांघकर, आपसी रिश्तों को तरजीह देती इंसानियत का ऐसा ही मंजर, मंगलवार को पत्रकार शरद शर्मा के छोटे भाई अनुभव शर्मा के अंतिम संस्कार में नजर आया. मजहब की बंदिशों से दूर आपसी रिश्तों की हकीकत देखने को मिली.

अनुभव के साथ लंबे समय से काम कर रहे शहरवासी मो. युनूस अंतिम संस्कार के समय अपने को रोक नहीं सके. बड़े भाई की भांति चिता के पास मौजूद रहे और हाथ बंटाते रहे. इस दौरान उनकी आंखों से निकलते आंसू आपसी रिश्तों और भाईचारे की बुनियाद को बंया कर रहे थे.

जाति और धर्म से बड़ी इंसानियत

कोरोना के इस संकट ने यह भी दिखा दिया है कि आपसी रिश्तों को कभी खत्म न होने दें. छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करते हुए, एक दूसरे के साथ इंसानियत और भाईचारे की डोर को मजबूती के साथ पकड़कर चलना चाहिए. यह समाज एक दूसरे से मिलकर बना है.

आपसी रिश्ते, ताल्लुकात, भाईचारा, दोस्ती ऐसे शब्द हैं जो मजहबी दीवारों को तोड़कर भी एक दूसरे के करीब आते हैं. जब हिंदू और मुसलमान से अलग हटकर ऐसे नजारे सामने आते हैं. तो इंसानियत और भाईचारे का रूतबा बुलंद होता दिखाई देता है. काश इस जज्बे को समाज के सभी वर्ग समझ पाएं.

इसे भी पढ़ें-ऑक्सीजन संकट : पत्नी ने पति को बचाने के लिए मुंह से दी सांस, नहीं बचा पाई जान

मुजफ्फरनगर : कोरोना काल में जहां अपने ही अपनों से दूर हो रहे हैं, वहीं इंसानियत को जिंदा रखने वाले मंजर भी नजर आ रहे हैं. मजहब की दीवारों को लांघकर, आपसी रिश्तों को तरजीह देती इंसानियत का ऐसा ही मंजर, मंगलवार को पत्रकार शरद शर्मा के छोटे भाई अनुभव शर्मा के अंतिम संस्कार में नजर आया. मजहब की बंदिशों से दूर आपसी रिश्तों की हकीकत देखने को मिली.

अनुभव के साथ लंबे समय से काम कर रहे शहरवासी मो. युनूस अंतिम संस्कार के समय अपने को रोक नहीं सके. बड़े भाई की भांति चिता के पास मौजूद रहे और हाथ बंटाते रहे. इस दौरान उनकी आंखों से निकलते आंसू आपसी रिश्तों और भाईचारे की बुनियाद को बंया कर रहे थे.

जाति और धर्म से बड़ी इंसानियत

कोरोना के इस संकट ने यह भी दिखा दिया है कि आपसी रिश्तों को कभी खत्म न होने दें. छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करते हुए, एक दूसरे के साथ इंसानियत और भाईचारे की डोर को मजबूती के साथ पकड़कर चलना चाहिए. यह समाज एक दूसरे से मिलकर बना है.

आपसी रिश्ते, ताल्लुकात, भाईचारा, दोस्ती ऐसे शब्द हैं जो मजहबी दीवारों को तोड़कर भी एक दूसरे के करीब आते हैं. जब हिंदू और मुसलमान से अलग हटकर ऐसे नजारे सामने आते हैं. तो इंसानियत और भाईचारे का रूतबा बुलंद होता दिखाई देता है. काश इस जज्बे को समाज के सभी वर्ग समझ पाएं.

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